डी यु में चिपको आन्दोलन .....(रग्बी बनाम हरियाली)

दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी बड़े जोर-शोर से चल रही है । हर जगह बड़े आकर्षक होर्डिंग्स और पोस्टर -बैनर लगे हुए हैं और लग रहे हैं। हर तरफ़ फील गुड जैसा कुछ-कुछ लग रहा है। मुख्यमंत्री महोदया का महकमा भी ऐसे चिल्लपों मचा रहा है मानो२०१० न हुआ कोई कारूँका का खजाना दिल्ली वालों को मिलने ही वाला है ..यूँ किबस -बस मिला ही चाहता है। लो अब तो बस कुछ ही सौ दिन रह गए हैं...अजी दिल्ली वालोंजब इतना वेट किया अच्छे दिन और लाइफ स्टाइल के लिए तो थोड़ा सा और वेट नही किया जाता तुमसे -हद है बेताबी की। अब क्या करें ,इतने बड़े और बेमिसाल खेल के आयोजन का सुख -सौंदर्य थोड़ा पेसेंस और कुर्बानी की डिमांड तो करेगा ना?सो हर जगह गंदे -भद्दे ,बुरे ,ख़राब आदि -आदि जैसे चीजों को या तो रंग पोता जा रहा है या फ़िर हटाया जा रहा है ताकि आपकी ,हमारी ,हम सबकी दिल्ली नई-नवेली दुल्हन की तरह सजी -धजी और साफ़ -सुथरी ..आं ...आं ...आं ...(विश्वस्तरीय) लगे । अतः इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन और दिल्ली यूनिवर्सिटी ने यूनिवर्सिटी के वी .सी.ऑफिस के सामने लगे सैकडो पेडोको काटने की योजना बनाई है। ताकि यूनिवर्सिटी के ग्राउंड में २०१० में होने वाले रग्बी गेम्स सफलतापूर्वक संपन्न हो सके। अब आप सोच रहे होंगे की रग्बी मैच का पेडो की कटाई से क्या सम्बन्ध है ?तो इसका जवाब है -कि यहाँ का स्टेडियम पेडो से घिरा हुआ है । पेडो कि वजह से यहाँ की सुन्दरता खिल कर सामने नही आती । प्रशासन को इस बात की चिंता भी नही है कि यहाँ के कई पेड़ तो १०० साल से भी पुराने हैं। वैसे भी जब हर तरफ ग्लोबल वार्मिंग का स्वर उठ रहा है ऐसे में यहाँ के माननीय उच्च पदाधिकारिओं के कान पर जू नही रेंग रही है । वैसे भी एक पेड़ को डेवेलप होने में कई साल लगते हैं। बचपन में एक स्लोगन कहीं पढ़ा था -"एक वृक्ष दस पुत्र समान "-पता नही कि इस बात में कितनी सच्चाई है पर हाँ इतना तो है कि हमलोग पेडो की महत्ता को नकार नही सकते । विश्वविद्यालय प्रशासन ने भले ही अपने लेवल से पेडो की कीमत पर सुन्दरता को बढ़ाने का जिम्मा ले लिया हो मगर अब विश्वविद्यालय के कुछ पर्यावरण -प्रेमी मित्र और टीचर्स ने मिलकर प्रशासन के इस कदम का विरोध करने का आह्वान सभी स्टूडेंट्स , टीचर्स, कर्मचारियो को एक साथ इस मुहीम में आने को कहा है .....उम्मीद है हम सभी अपने इस प्रयास में कामयाब होंगे और हमे ही नही उन पेडो को भी हमारी जरुरत है । आपसे भी गुजारिश है ...आइये दिल्ली प्रशासन और दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस खेल को हमारे आने वाले कल के लिए बंद करे "एक चिपको आन्दोलन यूनिवर्सिटी में भी चाहिए " चलिए शुरू करते हैं .........इंशा अल्लाह हम कामयाब होंगे..

Comments

बिलकुल। पेड़ काटने का देश स्तर पर विरोध होना चाहिए क्योंकि एक पेड़ की बात नहीं हैं।
माँ धरती करे पुकार, पेड़ लगाओ कई हजार।
अगर अपने आनेवाली पिढ़ियों को बचाना है, तो हमें अधिकाधिक पेड़ लगाना है।
जय भारत। जय भारती।
बिल्कुल मैं सहमत हूँ.
प्रशासन या दुशाशन जो कहे के इस ग़लत कदम का पुरजोर विरोध होना चाहिए.
आपको क्या लगता है भाइजी कि यूनिवर्सिटी सरकार और सरकार की राजनीति से अलग होकर काम करती है। स्लम को हटाए जाने और फिर वहां के लोगों को दूसरी जगह बसाने के क्रम में जो पेड़ कटते , कभी इस पर भी विचार करें तो आपको अंदाजा लग जाएगा कि क्रंक्रीट के जंगल बिना जंगलों के काटे नहीं बन पाए. अब आप ही सोचिए कि कहां-कहां सुंदरता के नाम पर कितने पेड़ कटे होंगे।
pravin kumar said…
antarrasria chhavi bada banane me sabse badi baadha ye viriksh hi hain.. dekhana pental saheb ek bhi pedh bache nahi

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