आइये जाने 'गंगोत्री'को


उत्तराखंड के जनपद उत्तरकाशी में समुद्रतल से ३१४० मीटर की ऊँचाई और जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से १०० कि.मी. की दूरी पर स्थित गंगोत्री हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ क्षेत्र है | उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री धाम, गंगा 'उतरी' से बना है ,यानी वह जगह जहाँ गंगा उतरीं | हिन्दुओं के अन्यतम तीर्थों में से गंगा के इस उद्गोम स्त्रोत को ही अन्यतम तीर्थ की संज्ञा प्राप्त है | पुराणों के अनुसार यहीं पर राजा भागीरथ  ने एक शिला पर बैठ कर ५५०० वर्षों तक तपस्या की थी | ऐसा माना जाता है कि बाद में पांडवों ने भी कुरुक्षेत्र के महासंग्राम के बाद कुछ समय तक यहाँ वास करके  अपने सम्बन्धियों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए यज्ञ किया था | इसके प्रमाण के तौर पर गंगोत्री मंदिर से १.५ कि.मी. की दूरी पर एक गुफा वाली जगह है जिसे स्थानीय सन्यासी और लोग पांडव गुफा के नाम से पुकारते हैं | यहीं पर पास ही 'पांडव शिला' है,जिसके बारे में यहाँ प्रचलित है कि,यहाँ पांडवों ने तप आदि किया था | गंगोत्री एक तीर्थ स्थल होने के साथ साथ एक खूबसूरत पर्वतीय स्थल भी है,जो चारों ओर से देवदार,चीड़ और ऊँचे पर्वतों से घिरा है \ सर्दियों में यहाँ बहुत अधिक बर्फ़बारी होती है,तब यह सारा क्षेत्र सफ़ेद बर्फ की मोटी चादर ओढ़ लेता है | इसी समय गंगोत्री मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं और देवी गंगा की प्रतिमा हर्षिल के निकट 'मुखबा'गाँव में लाकर रख दी जाती है और उसकी वहीँ पूजा-अर्चना आदि होती है | गंगोत्री का एक बड़ा आकर्षण गंगोत्री मंदिर है | इसका निर्माण सर्वप्रथम गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने १८ वी शताब्दी में प्रारंभ करवाया था,जिसे बाद में २० वीं शताब्दी के शुरुआत में जयपुर नरेश माधोसिंह ने पूरा करवाया | गंगोत्री मंदिर सफ़ेद रंग के चित्तीदार ग्रेनाईट पत्थरों को तराशकर बनाया गया है | मंदिर यद्यपि २० फीट ही ऊँचा है पर बावजूद इसके बेहद आकर्षक और खूबसूरत है | ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए गंगोत्री एक ख़ास बेस कैम्प की तरह है | यहाँ से दो ट्रेकिंग पॉइंट हैं पहला-गोमुख (दूरी-१८ कि.मी.) और दूसरा - केदार ताल (दूरी-१८ कि.मी.) | गंगोत्री में ट्रेकिंग के लिए जरुरी सामान और गाईड ,कुली,खच्चर आदि मिल जाते जाते हैं,जिनके साथ यह रोमांचक जोखिम यात्रा थोड़ी आसान हो जाती है | इस पूरे क्षेत्र में आक्सीजन लेवल कम होने से यहाँ की ट्रेकिंग टफ मानसिक और शारीरिक स्थिति की मांग करता है | जिन्हें ब्लड प्रेशर,सुगर,सांस सम्बन्धी परेशानी इत्यादि हो उन्हें इस तरह के रोमांच से बचना चाहिए | बहुत से उत्साही और दक्ष ट्रेकर्स गोमुख से आगे नंदन वन,तपोवन,कालिंदी पास,शिवलिंग बेस आदि तक की उंचाईयों तक ट्रेक करते हैं और वहाँ टेंटों में कुछ दिन बिताते हैं | पर यह अधिक साजो-सामान और पुख्ता तैयारी के बिना संभव नहीं | गोमुख गंगा का उद्गम स्थान है पर गंगोत्री में इसे भागीरथी कहा जाता है | जब भागीरथी आगे चलती हुई देवप्रयाग में बद्रीनाथ की ओर से आने वाली नदी अलकनंदा से मिल जाती है,तब इसका नाम 'गंगा'हो जाता है | गंगोत्री के निकट कई रमणीय स्थल हैं,हर्षिल उन्ही में  से एक है | हर्षिल २६३३ मी. की ऊँचाई पर बसा खूबसूरत कस्बा है | यह गंगोत्री से २५ कि.मी. पहले पड़ता है | यहाँ रहने-खाने की तमाम सुविधायें हैं | यहाँ के सेब और आलू बहुत प्रसिद्द हैं | अँगरेज़ शिकारी विल्सन ने सबसे पहले यहाँ नदी पर झूलने वाला रस्सी का पुल बनाया था और उसी ने सेब और आलू का उत्पादन भी शुरू किया था | फिल्मकार राज कपूर ने अपनी फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली'की शूटिंग हर्षिल की खूबसूरत पहाड़ियों,वादियों,नदियों,झरनों में की है | इसके अलावा गंगोत्री के आसपास कई बुग्याल और ताल भी है जिन्हें साहसिक पर्यटन के दीवाने ट्रेक करते रहते हैं मसलन-डोडीताल (उत्तरकाशी  से दूरी- ९ कि.मी./ट्रेकिंग मार्ग-२२ कि.मी./ऊँचाई- २९९९ मी./प्रसिद्धि-महासीर और अन्य रंगीन मछलियाँ तथा यहाँ से बन्दर पूंछ,ब्लैक पीक,हनुमान पीक आदि पर्वत श्रेणियों के नयनाभिराम दृश्यों के  लिए ),दयारा बुग्याल (उत्तरकाशी से दूरी-२९ कि.मी./१६-१७ कि.मी ट्रेक/ऊँचाई - १२००० फीट से ऊपर/चौड़ाई लगभग- ०५ कि.मी.और लम्बाई-१० कि.मी./शरद ऋतू में यहाँ की तीखी मैदानी ढाल पर उत्साही युवक स्कीइंग करने आते हैं और यहाँ से गढ़वाल की कई नामचीन पर्वत श्रृंखलाएं नज़र आती हैं | इस बुग्याल के उपरी भाग को 'बकरा टॉप'कहा जाता है |) ,हरौन्ता बुग्याल (ऊँचाई २८००मी.) केदार ताल (ऊँचाई लगभग ४१०० मी.)अलेथ बुग्याल (ऊँचाई १८०० मी.) नचिकेता ताल ( ऊँचाई २३७० मी.) आदि कुछेक गंगोत्री तथा उत्तरकाशी के बेहद खूबसूरत ट्रेकिंग पॉइंट हैं | उत्तरकाशी जनपद धार्मिक पर्यटन नगरी है और उच्च हिमालयी क्षेत्र होने के कारण यहाँ सांस्कृतिक पर्यटन,इकोलोजिकल पर्यटन,ग्रामीण पर्यटन,एग्रो पर्यटन,क्यूरेटिव पर्यटन, इन्क्लेव पर्यटन जैसे प्रयास सरकारी और जनता के सामूहिक प्रयासों से चलाये जा रहे हैं | हिम और घने वन आच्छादित इस अंचल की आमदनी का एक बड़ा जरिया पर्यटन है | लोग सीधे और मेहनती हैं | तो देर किस बात की है -बनाईये प्लान इस बार गंगोत्री और उत्तरकाशी का | हिमालय बाहें पसारे आपका इंतज़ार कर रहा है | 

Comments

Popular posts from this blog

विदापत नाच या कीर्तनिया

लोकनाट्य सांग

लोकधर्मी नाट्य-परंपरा और भिखारी ठाकुर : स्वाति सोनल