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महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय ( भाग - ६ )

गतांक से आगे ... ...रामचरित मानस और रामायण उन्हें बहुत कंठाग्र था । जिस तरह तुलसी ने पांडित्य संस्कृत का त्याग कर अवधी भाषा का प्रयोग किया और रामकथा को जन-जन तक पहुँचाया,उसी प्रकार महेंद्र मिश्र ने भोजपुरी भाषा में कथावाचक शैली में जीवन भर रामकथा का प्रचार-प्रसार किया । जब वे रामकथा का कीर्तन करते तो २०-२० हजार श्रोता मन्त्रमुग्ध हो उनको रात भर सुनते रहते । यही कारण है कि महेंद्र मिश्र की कविताओं को सुनने जानने की उत्कंठापूर्ण लालसा सुदूर अंचलों प्रान्तों तक की जनता में रही है । प्रसाद गुण और माधुर्य गुण से पुष्ट उनकी भाषा मानो आत्मा के लिए प्रकाश की खोज करती रही है । रामकथा के इस व्याख्याता सर्जक को राम काव्य परंपरा का प्रमुख कवि माना जाना चाहिए । अंतिम समय में वे मात्र आठ दिन बीमार रहे । आँख की रौशनी,मनुष्य को पहचानने की क्षमता तथा कविता से प्रेम उनके अंतिम क्षण तक बने रहे । २६ अक्टूबर १९४६ ईस्वी को मंगलवार की सुबह में बिहाग गाना और भैरवी की तान उठाना थम गया । छपरा में सम्मानित शिवमंदिर में कवि ने अपने नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया । महेंद्र मिश्र का रचना काल १९१०-१९३५ हिंदी स