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हिंदी लोकनाट्य : विविधता में एकता

भारत बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक, बहुरंगी देश है | अनेक लोक कलाएँ, लोकनाट्य रूप(ज्ञात और अज्ञात) इसके विभिन्न प्रान्तों में बिखरे पड़े हैं | आश्चर्यजनक रूप से इतनी विविधता के बावजूद भारतीय लोकनाटकों में एक जबरदस्त एका दिखाई देती है | यह एका शिल्प के स्तर पर पूर्वरंग, संगीत की प्रधानता, कथावस्तु अथवा सूत्रधार या विदूषक के रूप में दिखाई देती है | लगभग सभी लोकनाटक किसी-न-किसी रूप में नाट्यशास्त्र के पूर्वरंग की विधि का पालन करते हैं | सूत्रधार, नट-नटी, विदूषक इत्यादि नाट्यशास्त्र से ही इधर आये हैं | यही वह धागे हैं, जिनसे बंधकर एक भौगोलिक स्थितियों में ना होने के बावजूद भारत जैसे विशाल देश में जातीय संस्कृति की एकता दिखायी देती है | इस विशिष्टता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, डॉ.वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी अपनी पुस्तक "भारतीय लोकनाट्य" की भूमिका में लिखते हैं – “लोकक़ला रुपों की जातीय संस्कृति से गहरी निकटता रही है | ये कला रूप अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी विशिष्टता के अनुरूप परस्पर भिन्न शैल्पिक निजता रखने के बावजूद अंतर्वस्तु के स्तर पर गहरे एकात्म होते हैं | लोकगीतों, कलाओं और लोक