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Showing posts from January, 2019

हर्षिल डायरी - 2

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गतांक से आगे  ...सुकी गाँव में दिल्ली वाले नेटवर्क को समस्या हो रही थी लेकिन बीती शाम में ही ऋचा के सलाह अनुसार होटल वाले के फ़ोन में मैंने देहरादून में ऋचा के पिता जी को अपनी लोकेशन और गाड़ी की स्थिति बता दी थी. पहले तो उन्होंने जोर का ठहाका लगाया कि हमलोग जाकर एक जगह फंस गए हैं लेकिन ठीक हैं. मामला यह था था कि मैंने चंबा से आगे आते समय उनको फ़ोन करके खूब चिढ़ाया था कि आप देहरादून ही रह गए और देखिए हमने बिना प्लान के गंगोत्री तक का रास्ता नापने निकल गए और उसी बातचीत में ऋचा के पापा ने कहा आज रात आप उत्तरकाशी रुकोगे तो सुबह हमलोग आपको पीछे से ज्वाइन कर लेंगे, लेकिन मैंने कहाँ अजी आज की रात तो हर्षिल ही रुकेगी यह गाड़ी और संयोग देखिए न उत्तरकाशी ना हर्षिल गाड़ी सुकी गाँव के पास सुस्ती में आई और शायद विधाता ने यही मिलने का करार तय किया हुआ था. शायद इसे ही कहते हैं अपना चेता होत नहीं प्रभु चेता तत्काल. अब सुकी की रात भी गज़ब बीती. ऋचा के पापा भी देहरादून से सुबह दास बजे के करीब सुकी आ गए और नीचे उत्तरकाशी में एक मिस्त्री को बोल आए थे. एक और कमाल बात थी कि बाहर के नम्बर की ख़राब कार को देखते

हर्षिल डायरी - 1

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जाना मंदाकिनी वाली गंगा के इलाके में हर्षिल डायरी : भाग - 1  बिना किसी बड़ी योजना के यूँ ही   Joginder   ने उस दिन तैयार कर लिया कि कम से कम चीला होकर आ जाएँगे. लेकिन चीला में दो रातों बाद ऋषिकेश के पहाड़ों ने ऊपर आने के लिए डाक देना शुरू किया और वह यह काम पहले दिन की सुबह से ही करने लगे थे. उन्हें पता था कि इस आदमी (मैं ही) के भीतर बेचैनी बैठी रहती है कि गढ़वाल हिमालय के दुर्गम इलाकों की झलक ना ली तो क्या उतराखंड आए. मुझे हमेशा लगता है हरिद्वार ऋषिकेश आना गढ़वाल आना नहीं बस गंगा दर्शन और डुबकी , संध्या आरती के लिए आना भर ही है यह मुहाने से लौटना है इसलिए ऋषिकेश से उपर चढ़ते लगता है किसी रोगी को ऑक्सीजन दे दिया गया हो. नीत्शे बबवा कह गया था ' मैं यायावर हूँ और मुझे पहाड़ों पर चढ़ना पसंद है. ' लेकिन मेरे लिए भी सच यही है. चीला से आगे जाने की बात सुन फारेस्ट गेट के टपरी वाले चाय दूकान पर पंडित जी ने पूछा था कहाँ की ओर ? अनमने ढंग से पहले कहा - सोचा है खिर्सू लेकिन हम हर्षिल (गंगोत्री) चल दिए. वैसे हर्षिल वाली बात सुनकर पंडित जी ने वही कहा होता जो खिर्सू सुनकर मुस्कुराकर क

हीरा मन अभिनेता : पंकज त्रिपाठी

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एक बेहतर अभिनेता वह है जो अपने रचे हुए फार्म को बार बार तोड़ता है , उसमें नित नए प्रयोग करता है और अपने दर्शकों , आलोचकों , समीक्षकों को चौंकाता है।   अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने लगातार इस तरह के प्रयोग करते हुए अपने ही रचे फार्म को बार-बार तोड़ा है। आप हमेशा पाएंगे कि इस अभिनेता का काम कैसे एक से दूसरे में अलग तरह से ही ट्रासंफार्म हो जाता है और वह भी सहज सरलता से दिखता हुआ लेकिन जादुई तरीके से आपको ठिठकने पर मज़बूर करता हुआ लेकिन आपकी आंखों और होंठों पर आश्चर्यमिश्रित मुस्कान के साथ। यानी नरोत्तम मिश्रा के सामने मुन्ना माइकल का गुंडा और नील बट्टे का प्रिंसिपल , सुल्तान से कैसे जुदा हो जाता है वैसे ही तीन ग्रे शेड्स वाले अलग किरदार पाउडर का नावेद अंसारी , गुडगाँव का केहरी सिंह और मिर्ज़ापुर के अखंडानंद त्रिपाठी एक खास मनोवृति के दिखने वाली दुनिया में रहते हुए पर्दे पर नितांत अलग-अलग हैं और जब मैं अलग कह रहा हूँ तो वह ठीक पूरब और पश्चिम वाले अलग हैं। यह अभिनेता पंकज त्रिपाठी के अभिनय शैली की उत्कृष्टता के विभिन्न सोपान और छवियाँ हैं। अब The Man म

जिसके लिए तवायफों ने अपने गहने उतार दिए : पूरबी सम्राट महेंद्र मिश्र

[यह पोस्ट द लल्लनटॉप वेब पोर्टल पर पहले ही प्रकाशित है. यहाँ उसी लेख का पुनर्प्रस्तुतिकरण है. इसके किसी भी हिस्से (आंशिक या पूर्ण) का मोडरेटर की सहमति के बिना प्रकाशित न करे - सादर] मुजफ्फरपुर के एक कोठे पर गाने वाली ढेलाबाई की बड़ी धूम थी, सारण के बाबू हलिवंत सहाय के लिए महेंद्र मिश्र ने उसका अपहरण कर लिया. बाद में अपने इस कर्म पर उन्हें बड़ा क्षोभ हुआ और फिर उन्होंने ढेलाबाई कि मदद में कोई कसर नहीं छोड़ी. घर, परिवार और गायक का उभार पुरबी सम्राट महेंदर मिसिरजी के बिआह रुपरेखा देवी से भईल रहे जिनका से हिकायत मिसिर के नाव से एगो लईका भी भईल , बाकी घर गृहस्थी मे मन ना लागला के   कारन महेन्दर मिसिर जी हर तरह से गीत संगीत कीर्तन गवनई मे जुटि गईनी । बाबुजी के स्वर्ग सिधरला के बाद जमीदार हलिवंत सहाय जी से जब   ढेर   नजदीकी भईल त उहा   खातिरमुजफ्फरपुर के एगो गावे वाली के बेटी ढेलाबाई के अपहरण कई के सहाय जी के लगे चहुंपा देहनी । बाद मे एह बात के बहुत दुख पहुंचल आ पश्चाताप भी कईनी संगे संगे सहाय जी के गइला के बाद , ढेला बाई के हक दियावे   खातिर   महेन्दर मिसिर जी कवनो कसर बाकी ना रखनी !