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चाचा चौधरी एंड कंपनी

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पश्चिमोत्तर बिहार के उस जिले में बिजली का न होना रोजमर्रा की बात थी और पर इससे हम स्कूल गोइंग बच्चों को कोई शिकायत भी नहीं थी। रात को लालटेन की रोशनी में किताबों के बीच में आठ आने फी कॉमिक्स मिला करती और इसका गणित भी एकदम साफ़-सफ्फाक था। मसलन कॉमिक्स पाँच रुपये की तो उसका किराया उस मूल्य का दस फीसदी होता था यानी पचास पैसा। यह किराए का कॉमिक्स अट्ठारह से चौबीस घंटे के लिए लिया जाता था। जिसे जैसा है, वैसी ही हालत में लौटाया जाना अनिवार्य होता था। शहर में बेशक कॉन्वेंट और सरकारी स्कूलों के बच्चों के बीच के भेद को हम कई तरह से आंक सकते हैं पर कॉमिक्स के मामले में छात्र एकता का कोई सानी नहीं था। होता भी कैसे उन कॉमिक्सों के किरदारों ने हम सभी बच्चों में नाभि-नाल संबंध जोड़ा था। हम सबकी दिनचर्या लगभग एक-सी थी। दिन-भर स्कूल और शाम को हमलोग कभी अपने शहर के अभय पुस्तकालय तो कभी राज पुस्तकालय तो कभी किसी नई-नई खुली कॉमिक्स लाइब्रेरी से मनोज कॉमिक्स , राज कॉमिक्स , तुलसी कॉमिक्स , इंद्रजाल कॉमिक्स लाते थे , लेकिन इन सभी कॉमिक्स में जिस कॉमिक्स का क्रेज हममें सबसे अधिक था या यूँ कहें कि जिससे हम ...

न्याय के पक्ष में भारत सरकार का दोहरा मानदंड-आनंद जान बनाम अन्य

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आज दोपहर दैनिक भास्कर की खबर पढ़कर मैं थोडा चौंका.खबर थी-'दुबई में हत्या के आरोप में मौत की सज़ा पाने वाले पंजाब और हरियाणा के विभिन्न जिलों के १७ युवकों के मामलों को लेकर ६ अप्रैल को विदेश मामलों की सचिव दिल्ली जा रही हैं.विदेश राज्यमंत्री परनीत कौर ने ये बातें कहीं.इन युवकों के परिजनों से मिलने के बाद इस मामले को संजीदा मानते हुए विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ,विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा संयुक्त अरब अमीरात(UAE) सरकार के लगातार संपर्क में हैं,साथ ही इन युवकों को बचाने के लिए लोक भलाई पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान बलवंत सिंह रामूवालिया तीन सदस्यीय कमिटी के साथ ८ अप्रैल को दुबई जा रहे हैं. भारत सरकार का यह कदम काबिले तारीफ़ हैं और उनके इस कदम से हमारा विश्वास और भी पुख्ता हुआ है कि अन्य देशों की ही तरह हमारी सरकार भी हमारे विदेश में काम के लिए गए नागरिकों के लिए,उनके हकों के लिए कितनी गंभीर है.पर तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है.पिछले वर्ष एक माँ और बहन विभिन्न रसूख वाले लोगों तथा हमारे ऊपर लिखित राजनयिकों तक से यहाँ तक की विभिन्न संस्थाओं के दरवाज़े पर लगातार दौड़ रहीं हैं और केवल आश्वासन के स...

संगीनों के साये में नाटक..जिन्ने लाहौर नई वेख्या ...

जैसा कि आप सभी जानते हैं,राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का भारत रंग महोत्सव इन दिनों राजधानी में चल रहा है,इसमे देश-विदेश के कुछ बेहतरीन ड्रामे प्रर्दशित हो रहे हैं या होने वाले हैं।इसी कड़ी में कल रात पाकिस्तान के "तहरीक-ऐ-निसवां(कराची)की नाट्य-प्रस्तुति थी-'जिन्ने लाहौर नई वेख्या'-इस नाटक के लेखक अपने ही देश के (क्या करें ऐसा कहना पड़ रहा है)असग़र वजाहत हैं। इस नाटक में ऐसा कुछ नहीं है जो किसी ख़ास मुल्क या धर्म को लेकर कुछ अनाप-शनाप लिखा गया हो,चुनांचे ये जरुर है कि ये नाटक धार्मिक कठमुल्लेपन के ऊपर इंसानियत का पैगाम देती है। कहानी बस इतनी है कि 'विभाजन के बाद लखनऊ का एक मुस्लिम परिवार काफ़ी समय रिफयूजी कैम्पों में बिताने के बाद अपने बसाहट के लिए नए आशियाने की तलाश में है। लाहौर में सरकारी तौर पर उन्हें एक रईस हिंदू परिवार की छोड़ी हुई हवेली उन्हें मिल जाती है। पर परेशानी ये है कि उस हवेली में उस हिंदू परिवार के मुखिया की माँ अभी भी रह रही है। पहले थोड़े हिल-हुज्जत के बाद सब उस बुढ़िया को घर के बुजुर्ग की तरह मानने लगते हैं यहाँ तक कि मोहल्ला भी उसे इसी तरह से इज्ज़त देता ...

सरहद पार मर रहा है संगीत ...

आज सुबह के अखबार में पढने को मिला ,कि'पाकिस्तानी अधिकारियों ने मशहूर और हर दिल अज़ीज़ ग़ज़ल गायक ज़नाब गुलाम अली साहब को इंडिया आने से रोक दिया है'-इस ख़बर से जितना झटका मुझे लगा उससे अधिक गुलाम अली साहब की बात दिल को चीर गई-'मैं सदमे की हालत में हूँ,मुझे रोका गया है ,हालात ठीक नहीं हैं'-अब तक आतंकी चाहे कितनी भी घटनाओं को अंजाम देते रहे हों पर संगीत को दोनों मुल्कों में नफरत की खाई को पाटने वाली कड़ी माना जाता रहा .और चाहे गुलाम अली साहब हों .नूरजहाँ बेगम,नुसरत साहब,मुन्नी बेगम ,फरीदा खानम जी ,लता जी,रफी-मुकेश-किशोर,आशा जी -ये किसी मुल्क की ख़ास अपनी बपौती नहीं हैं .इनके चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं.फ़िर ये कौन-सी मानसिकता के लोग हैं जो ऐसा कर रहे हैं.पाकिस्तानी सरकार सिर्फ़ ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि कट्टरपंथियों का काम है ..क्योंकि इस बार मामला ख़ुद सरकार के शर्मनाक कदम का है...गुलाम अली साहब को ऐसी कैद में डालना उनके साथ बेहद ना-इंसाफी ही नहीं बल्कि एक कलाकार को मार देने जैसा है.ये बहुत बुरा दौर है ..वाकई. पाकिस्तानी स्कोलार्स और इंटेलेक्चुअल्स कहाँ सोय...