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यादें: दो बाँके, एक फिल्म और जूही चावला की "मैं तेरी रानी तू राजा मेरा"

डिस्केलमर : ग्लोब के किसी हिस्से में नब्बे के दो दीवाने हुए। दो असल गंजहे। पर कानूनन यही कहना है कि इस किस्से का मजमून काल्पनिक माना जाए और किसी से इसका कोई हिस्सा जुड़ता है तो वह महज संयोग है। वह तीन भाई थे। पर बीच वाले और छोटे वाले की उम्र में महज एक साल का फासला होने की वज़ह से उनका रिश्ता बड़े-छोटे के बजाए दोस्ताना अधिक था। बड़े वाले भाई कुछ अधिक ही बड़े थे और इसकी वजह उनके और बाकी दो भाईयों के बीच तीन बहनों का लम्बा फ़ासला था। इस कारण वह अनुभव एवं व्यवहार में पिता के आसपास ठहरते थे। किस्से में दोनों छोटों का नाम लेना ठीक नहीं है पर ये जानने की बात है कि दोनों के शौक में इतनी साम्यता थी कि वे आपस में फिल्मों, नाच और तिरंगा/पांच हजार गुटखा के ईमानदार साझीदार थे। सिनेमची ऐसे कि उनसे राजा बाबू, दिलवाले, जान तेरे नाम, मोहरा,बाजीगर, चीता से लेकर नसीब और रंग जैसी एक फ़िल्म न छूटी थी। उनको दौर-ए-नब्बे के तमाम नशीले गीत कंठस्थ थे। सिनेमा देखने के लिए वह कैसा भी झूठ रच लेते, प्रपंच कर लेते। हालांकि परिवार में उनकी शराफत का आलम यह था कि उनकी आँखों में दिखाने को ही सही पर बाबूजी और भैया का डर अवश्य ...