'सिनेमची'-विमर्श वाया सिनेमा
२३ दिसंबर २०१०,एक ख़ास तारीख,एक ख़ास दिन पर, इस खास दिन पर बातचीत से पहले २० तारीख जेहन में है जब दिल्ली विश्वविद्यालय के दोस्तों का एक समूह जिनमें अमितेश,धर्मेन्द्र प्रताप सिंह,मिहिर पंड्या,अभय रंजन सर,पल्लव सर (हिन्दू कालेज के अस्सिटेंट प्रोफेसर्स) और इस नाचीज़ ने ,जेएनयु से उमाशंकर ने मिलकर एक ऐसा मंच खडा करने की सोची जिसके मार्फत हम दैनंदिन जीवन में अपने आसपास के गतिविधियों के पर नज़र रखते हुए हफ्ते,महीने में एक या दो बार किसी जगह (वह जगह विश्वविद्यालय कैम्पस भी हो सकता है अथवा या किसी कालेज का सेमिनार रूम अथवा ऑडिटोरियम पर ऐसी फिल्मों और डाक्युमेंटरी फिल्मों को दिखाएं जो आम दर्शकों तक आसानी से नहीं पहुँचती.और फिर इसके साथ एक बेबाक बातचीत का, जो फिल्म के कांटेक्स्ट या उस फिल्म से उपजे सवालों को केंद्र में रखकर हो ,मंच दें.जहां अकादमिक और शैक्षणिक दबाव से परे छात्र अपनी बात करें की उस ख़ास फिल्म ने उनको क्या दिया,अथवा वह क्या जान पाए ,उन्होंने क्या लिया?इसकी चर्चा वह इस 'सिनेमची'के मंच से करें.वैसे यह सिनेमची नाम भी 'अमितेश'के ही दिमाग की खुराफात है.अमितेश हिंदी विभाग