Posts

Showing posts from May, 2011

जनकवि भिखारी ठाकुर : रघुवंश नारायण सिंह

(यह मूल लेख भोजपुरी में लिखित है.जो भोजपुरी की बंद हो चुकी पत्रिका 'अंजोर'के अक्टूबर-जनवरी १९६७ अंक से साभार लिया गया है.मूल लेख जनकवि भिखारी ठाकुर नाम के पुस्तक जिसके लेखक श्री महेश्वर प्रसाद जी हैं ,की समीक्षा भी है और अपनी तरफ से कुछ टिप्पणियां भी.पाठकों की सुविधा के लिए हमने इसे हिंदी में रूपांतरित करके प्रस्तुत किया है,ताकि भोजपुरी नहीं जानने वाले भी भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले इस महान रंगधुनी के और बिदेसिया के रचयिता के बारे में जान सकें.पर भिखारी ठाकुर के बारे में सभी उल्लिखित राय ,लेखक महोदय की है,इससे रूपांतरणकार की  रजामंदी  जरुरी नहीं .रूपांतरण/अनुवादक - मुन्ना कुमार पाण्डेय  ) बहुत दिन पहले आरा से निकलने वाले 'भोजपुरी'में श्री बीरेंद्र किशोर का एक लेख छपा था 'भोजपुरी के शेक्सपियर  भिखारी ठाकुर' | बहुत लोगों ने जब उसे पढ़ा तो अचरज में पड़ गए,सिहर गए  कि कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली | यह तो अजब मेल बैठाया गया ,ऐसा बहुत लोगों ने कहा | बात सही भी थी बाकी राहुल बाबा ( सांकृत्यायन जी ) भिखारी को महाकवि कह चुके थे | अब हम ल...

हंगामा है क्यों बरपा " देसवा"और पक्ष-विपक्ष

इंडिया हैबिटेट सेंटर में 'देसवा'के प्रदर्शन के बाद जितनी चर्चा इस फिल्म को लेकर उठी है या सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक पर जबरदस्त टिप्पणियों (जो व्यक्तिगत हमलों तक पहुँच गयी या ले ली गयी  ) का जो दौर चला है,उसे मैं एक सकारात्मक कदम मानता हूँ | जिसका प्रभाव आगे आने वाली इस तरह की भोजपुरी फिल्मों पर पड़ेगा इसकी थोड़ी उम्मीद की जा सकती है | देसवा को लेकर अविनाश (मोहल्ला लाईव ) और अमितेश के अपने अपने पक्ष रहे और बाद में स्वप्निल जी ने भी चवन्नी पर अपनी राय दी है |  मेरी बात पहले अमितेश के लिखे से है,फिर स्वप्निल जी के और तब मेरी बात 'देसवा' को लेकर है की क्यों मैं देसवा के पक्ष में हूँ | अमितेश ने 'देसवा' के पक्ष में नहीं होने के अपने कारण गिनाये हैं और देसवा को एक बेहतर सिनेमा बनते बनते एक औसत सिनेमा रह जाने को लेकर पूरी बात रखते दिखाई देते हैं | जिसपर कईयों ने उनके साथ नूराकुश्ती शुरू कर दी | यह भी दुरुस्त स्थिति नहीं है | हम कोई लक्ष्मण रेखा नहीं खींच सकते कि कौन हमारे सिनेमा के पक्ष में खड़ा  होगा , कौन नहीं या किसे नहीं खड़ा होना चाहिए | अमितेश सिर्फ देसवा को ...

डराने की निरीह कोशिश और थ्री-डी का लालीपाप -HAUNTED

अगर आप भूतिया फिल्मों के शौक़ीन हैं और चाहते हैं फिल्म को देखकर डर का रोमांच महसूस करें तो मेरी एक सलाह है कि कम-से-कम हमारी हिंदी फिल्मों के भूतिया इफेक्ट को न देखें | haunted  इस तरह की एक फिल्म है | इस फिल्म की कहानी पर नज़र ना डाले यह एक साथ ही कई फिल्मों जो कि जाहिर है भट्ट की ही फिल्मों का कोकटेल है | डरावना माहौल तैयार करने में उन्होंने वही सारी तिकड़में आजमाई हैं,जिन्हें हम बार बार देखते रहे हैं | थ्री डी का लालीपाप इस फिल्म को कितना आगे ले जायेगा इसमें संदेह की भरपूर गुंजाईश है | ले दे कर हमारे पास इन फिल्मों के चुनिन्दा फार्मूले होते हैं -मसलन  (१) हीरो एक लश ग्रीन पर्वतीय स्थल पर एक खूबसूरत किन्तु सुनसान जगह पर बने भूतिया बंगले में आता है ,जहां एंटिक सामनों और आदमकद शीशे के खिडकियों-दरवाजों का भरपूर प्रयोग हुआ होता है | (२) जलती हुई मोमबत्तियां ,खुबसूरत झूमर के इर्द-गिर्द चक्कर काटकर कैमरा हीरो के चेहरे के पास आता है और पार्श्व में बजता संगीत एक भय का वातावरण निर्मित करता है...एक घोर सन्नाटे के माहौल में औरत की दर्दनाक चीख और फिल्म दौड़ने लगती है | (३...