गढ़वाल का नीलम : हर्षिल
हर्षिल पहली बार मेरी जेहन में राजकपूर की फ़िल्म ' राम तेरी गंगा मैली ' की वजह से आया था । बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के क्रम में जब गंगोत्री-गोमुख-तपोवन ट्रेकिंग पर गया तो इस इलाके में दो हफ्ते से अधिक समय तक रहा । फिर तो यह जगह उत्तराखण्ड के मेरे महबूब जगहों में से एक हो गई । देवदारों में खो जाना , दूर तक फैले साफ और इस ऊँचाई पर आश्चर्यजनक रूप से लगभग मैदानी इलाकों की तरह समतल भागीरथी के किनारों पर कैंपिंग करना , देर तक टहलना , बतकुच्चन करना , आग जलाना , अहले सुबह दूर दूधिया हिमालय पर सूरज की पहली रोशनी को आंखमिचौली खेलते देखना , कभी धुंध को देवदारों में अटका हुआ देख देर तक निहारना , रेजिमेंट से शाम की घंटी सुनकर ठंड को महसूसते लौटना । शाम को बाजार में पकौड़ियाँ और चाय - क्या ही कहना , हर्षिल के । रात के भोजन के बाद स्टीरियो पर कानों में ' हुस्न पहाड़ों का क्या कहना कि बारह महीने यहां मौसम जाड़ों का ' को हल्की आवाज में सुनते किसी मदहोशी में टहलना एक अलग ही दुनिया में ले जाता । सच कहा जाए तो यही वह समय है जब आप दुनिया की सबसे प्यारी जगहों में से एक दुनियावी द...