'अबाउट राम'- राम कथा की निराली प्रस्तुति

कहानी कहने का या सम्प्रेषण की दृष्टि से रंगमंच एक जीवंत और बहुत सशक्त माध्यम है यह सीधे तौर पर अभिनेता और दर्शक के बीच संवाद करता है और यह संवाद विविध रूपों में होता है-जैसे अनेक प्रकार की ध्वनियाँ ,शारीरिक मुद्राएं आदि अभिनेता अपने अभिनय से अपना सम्प्रेषण सामाजिकों तक प्रेषित करता है कभी गाकर, कभी नाच कर तो कभी अपने अभिनय से परन्तु ,मंच से अभिनेता अदृश्य हो और उसकी जगह कठपुतलियों,मुखौटो,तथा तकनीक को सामने लाया जाए तो संवाद के लिए एक कुशल और अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता होती है मानव के सहयोग से इनमें गतियाँ उत्पन्न होती हैं और यह बेजान होते हुए भी मंच पर बोल पड़ती हैं ,दर्शकों का जुड़ाव उससे हो जाता है इस तरह की प्रस्तुति कठिन तपस्या और निरंतर अभ्यास की मांग करती है नाटक की पश्चमी परंपरा में यूनानी देवता डायोनिशस के उत्सवों में मुखौटों को लगाने की परिपाटी थी जो आगे चलकर अभिनेताओं के मुंह पर लगाकर मंचासीन होने की परम्परा में आ गयी जापान की 'नोह'शैली या काबुकी में, तो अपने यहाँ ठेरुकुट्टू कुडी अट्टम आदि में इनका प्रयोग देखने को मिलता है यह मुखौटें सभी प्रयोगों में कथा के पा...