सरहद पार मर रहा है संगीत ...

आज सुबह के अखबार में पढने को मिला ,कि'पाकिस्तानी अधिकारियों ने मशहूर और हर दिल अज़ीज़ ग़ज़ल गायक ज़नाब गुलाम अली साहब को इंडिया आने से रोक दिया है'-इस ख़बर से जितना झटका मुझे लगा उससे अधिक गुलाम अली साहब की बात दिल को चीर गई-'मैं सदमे की हालत में हूँ,मुझे रोका गया है ,हालात ठीक नहीं हैं'-अब तक आतंकी चाहे कितनी भी घटनाओं को अंजाम देते रहे हों पर संगीत को दोनों मुल्कों में नफरत की खाई को पाटने वाली कड़ी माना जाता रहा .और चाहे गुलाम अली साहब हों .नूरजहाँ बेगम,नुसरत साहब,मुन्नी बेगम ,फरीदा खानम जी ,लता जी,रफी-मुकेश-किशोर,आशा जी -ये किसी मुल्क की ख़ास अपनी बपौती नहीं हैं .इनके चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं.फ़िर ये कौन-सी मानसिकता के लोग हैं जो ऐसा कर रहे हैं.पाकिस्तानी सरकार सिर्फ़ ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि कट्टरपंथियों का काम है ..क्योंकि इस बार मामला ख़ुद सरकार के शर्मनाक कदम का है...गुलाम अली साहब को ऐसी कैद में डालना उनके साथ बेहद ना-इंसाफी ही नहीं बल्कि एक कलाकार को मार देने जैसा है.ये बहुत बुरा दौर है ..वाकई.
पाकिस्तानी स्कोलार्स और इंटेलेक्चुअल्स कहाँ सोये हुए हैं?

Comments

"अर्श" said…
janab gulam ali sahab ko to main apne ghazal gayaki me apna eklabya ki tarah guru man chuka hun...
yah behad hi sharmnak bat hai sarhad par ke log is tarah se sangeet ko v biwas karege kabhi soncha na tha...

apna dukh main kaise prakat karun...nishbd hun...
आतंकवादी क्या जाने कि संगीत की सरहदें नहीं होतीं।
अच्छा लिखा बंधू........

Popular posts from this blog

विदापत नाच या कीर्तनिया

लोकनाट्य सांग

लोकधर्मी नाट्य-परंपरा और भिखारी ठाकुर : स्वाति सोनल