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Showing posts from February, 2012

महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय (भाग - ५)

गतांक से आगे... सन १९२०ई. के जुलाई अगस्त माह में पटना के सीआईडी सब-इन्स्पेक्टर जटाधारी प्रसाद को नोट छापने वाले व्यक्ति का पता लगाने की जिम्मेवारी सौंपी गई । उनके साथ सुरेन्द्रनाथ घोष भी लगे । जटाधारी प्रसाद ने भेष और नाम बदल लिया । वे हो गए गोपीचंद और महेंद्र मिश्र के घर नौकर बनकर रहने लगे । धीरे-धीरे गोपीचंद उर्फ़ गोपीचनवा महेंद्र मिश्र का परम विश्वस्त नौकर हो गया । इसी की रिपोर्ट पर ६ अप्रैल १९२४ ई. की चैत की अमावस्या की रात में एक बजे महेंद्र मिश्र के घर डीएसपी भुवनेश्वर प्रसाद के नेतृत्व में दानापुर की पुलिस ने छापा मारा । पुलिस की गाड़ियाँ उनके घर से एक किलोमीटर की दूरी पर रहीं । पाँचों भाई और गोपीचनवां मशीन के साथ नोट छापते पकड़े गए । पर गनीमत थी कि महेंद्र मिश्र नोट छापने के समय सोये थे और दूसरे लोग नोट छाप रहे थे । महेंद्र मिश्र पकड़े गए । उनका मुकद्दमा हाईकोर्ट तक गया । लोअर कोर्ट से सात वर्ष की सजा हुई थी महेंद्र मिश्र को,जो बाद में महज तीन वर्ष की रह गई । जेल जाते समय गोपीचंद उर्फ़ जटाधारी प्रसाद ने अपनी आँखों में आँसू भरकर मिश्र जी से कहा - बाबा,हम ड्यूटी से मजबूर थे पर

महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय (भाग-४)

 गतांक से आगे... इस बात में कोई संदेह नहीं कि कभी महेंद्र मिश्र हलिवंत सहाय के रंगीन मुजरा महफ़िल में भी गाते थे और कभी-कभी नर्तकियों-गायिकाओं के निवास पर भी जाकर गायन वादन  में संगत करते थे । पर इस शौक का मूल कारण उनका संगीत प्रेम ही था । उनके इस संगीत प्रेम की तुलना उसी प्रकार हो सकती है जैसे जयशंकर प्रसाद संगीत  प्रेम के वशीभूत होकर बनारस की प्रसिद्ध गायिका सिद्धेश्वरी बाई के पास जाते थे अथवा भारतेंदु हरिश्चंद्र बंगाली विदुषी गायिकाओं मल्लिका और माधवी के कोठे पर जाते तथा कविता लिखने एवं संगीतमय कविता लिखने की प्रेरणा प्राप्त करते थे अथवा जैसे रीतिकाल के महाकवि घनानंद सुजान के साहचर्य अपनी भावयित्री-कारयित्री प्रतिभा के विन्यास के लिए कोमलता,प्रेरणा और गंभीर प्रेम की अभिव्यंजना-शक्ति प्राप्त करते थे । अगर महाकवि प्रसाद के सरस मधुमय गीतों की तरलता और मोहकता के पीछे और भारतेंदु काव्य की मसृणता के पीछे तथा घनानंद की ईमानदारी-भरी प्रेमाकुल कविताओं की रसवता के पीछे उपर्युक्त विदुषी गायिकाओं का अवदान माना जा सकता है तो महेंद्र मिश्र की काव्य की सरसता और पूर्वी गीतों की तरल अनुभूतियों के

महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय ( भाग-३)

गतांक से आगे ... ...सारे देश में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लिखा जा रहा था । जमींदारी प्रथा ध्वस्त हो रही थी । देश की राजनीति के क्षितिज पर गांधी जी का उदय हो चुका था और वे रामकृष्ण परमहंस,आर्य समाज, ब्रह्म समाज,गोखले और तिलक की समतल की गयी भूमि पर विराट जन जागरण पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम की नींव दे चुके थे । अधिकाँश उद्योगपति एवं बड़े-बड़े जैम्नदार ऊपर से गांधी के साथ मगर हृदय से साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ हो गए थे । महेंद्र मिश्र भी एक छोटे जमींदार थे । उन्हें लगा कि वे न तो अपने परिवार के प्रति जिम्मेवार रह गए हैं न अपने जमींदार मालिक स्वर्गीय हलिवंत सहाय के प्रति ही और न ढेलाबाई की ही ठीक से सहायता कर रहे हैं । उनकी प्रथम पत्नी अपने मायके (तेनुआ) की संपत्ति पर ही रहती थी,सुन्दर भी नहीं थी,पारिवारिक जीवन भी तनावपूर्ण ही चल रहा था हालंकि उन्हीं पत्नी परेखा देवी से उनके पुत्र हिकायत मिश्र का जन्म हो चुका था संगी साथियों,गुनी कलाकारों और देश को समर्पित युवा क्रांतिकारियों का सहायता द्वार भी बंद हो रहा था । उन्होंने एक निर्णय लिया और चल पड़े कलकत्ता । महेंद्र मिश्र ने सिर्फ द

महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय (दूसरा भाग)

गतांक से आगे... ...... महेंद्र मिश्र का जन्म सारण जिला (बिहार) के मुख्यालय छपरा से १२ किलोमीटर उत्तर स्थित जलालपुर प्रखंड से सटे एक गाँव कांही मिश्रवलिया में १६ मार्च,१८८६ को मंगलवार को हुआ | कांही और मिश्रवलिया दोनों गाँव सटे हैं | बीच में एक नाला अथवा नारा था,जिसके किनारे कांही पर होने के कारण इस गाँव का नाम कांही मिश्रवलिया कहा जाने लगा | इस गाँव में अन्य जातियों के लोग भी थे पर ब्राह्मणों की जनसँख्या अधिक थी,आज भी है | ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण-मिश्र पदवीधारी लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के लगुनही धर्मपुरा से आकर बस गये थे | संभवतः रोज़ी-रोटी और शांति की तलाश में ये लोग पश्चिम से पूर्व की तरफ बढ़े थे | गाँव में आकर बसने वाले प्रथम व्यक्ति का पता नहीं चलता पर महेंद्र मिश्र के छोटे भाई श्री बटेश्वर मिश्र जो आज भी जीवित हैं,की बात मानें तो उस प्रथम व्यक्ति की पाँचवीं पीढ़ी में महेंद्र मिश्र का जन्म हुआ था | मिश्र जी के परिवार के सदस्य बताते हैं कि महेंद्र मिश्र का जन्म किसी शिवभद्र दास साधु के आशीर्वाद से हुआ था और उसी साधु की इच्छानुसार बालक का नाम महेंद्र हुआ | स्वाभाविक है,

महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय

[ भोजपुरी समाज में जब भी किसी सांस्कृतिक शख्सियत की बात पूछी जाती है,लोग बड़े गर्व से भिखारी ठाकुर का नाम लेते हैं | यह अच्छी बात है,इससे इनकार नहीं परन्तु यह उतनी ही दुखद बात है कि,भोजपुरी समाज के एक और बड़े रत्न 'महेंद्र मिश्र ' पता नहीं क्यों लोगों को याद नहीं हैं | अगर कुछ लोगों को महेंद्र मिश्र याद भी हैं तो उनका विस्तृत विवरण उन्हें नहीं मालूम | हालांकि रवीन्द्र भारती ने 'कंपनी उस्ताद'नामक नाटक लिख कर और संजय उपाध्याय ने इसे मंचित कर इस अनभिज्ञता को काफी हद तक कम किया है | इस बीच मुझे महेंद्र मिश्र पर एक लेख बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् की 'परिषद् पत्रिका '(अप्रैल २००७ से मार्च २००८)में डॉ. सुरेश कुमार मिश्र का 'महेंद्र मिश्र :जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय 'नाम से मिला | उस लेख को आप सभी सुधीजनों के लिए ज्यों का त्यों साभार प्रस्तुत कर रहा हूँ | इस लेख को ब्लॉग जगत में आप पाठकों के समक्ष लाने का कोई व्यावसायिक प्रयोजन नहीं है,अपितु सांस्कृतिक चाहना है ,जो संभवतः एक जागरूक भोजपुरी भाषी होने के नाते ही उपजी है | उम्मीद है डॉ.सुरेश मिश्र जी इस स्थिति को स