महेंद्र मिश्र : जीवन एवं सांस्कृतिक परिचय (भाग-४)

 गतांक से आगे...

इस बात में कोई संदेह नहीं कि कभी महेंद्र मिश्र हलिवंत सहाय के रंगीन मुजरा महफ़िल में भी गाते थे और कभी-कभी नर्तकियों-गायिकाओं के निवास पर भी जाकर गायन वादन  में संगत करते थे । पर इस शौक का मूल कारण उनका संगीत प्रेम ही था । उनके इस संगीत प्रेम की तुलना उसी प्रकार हो सकती है जैसे जयशंकर प्रसाद संगीत  प्रेम के वशीभूत होकर बनारस की प्रसिद्ध गायिका सिद्धेश्वरी बाई के पास जाते थे अथवा भारतेंदु हरिश्चंद्र बंगाली विदुषी गायिकाओं मल्लिका और माधवी के कोठे पर जाते तथा कविता लिखने एवं संगीतमय कविता लिखने की प्रेरणा प्राप्त करते थे अथवा जैसे रीतिकाल के महाकवि घनानंद सुजान के साहचर्य अपनी भावयित्री-कारयित्री प्रतिभा के विन्यास के लिए कोमलता,प्रेरणा और गंभीर प्रेम की अभिव्यंजना-शक्ति प्राप्त करते थे ।

अगर महाकवि प्रसाद के सरस मधुमय गीतों की तरलता और मोहकता के पीछे और भारतेंदु काव्य की मसृणता के पीछे तथा घनानंद की ईमानदारी-भरी प्रेमाकुल कविताओं की रसवता के पीछे उपर्युक्त विदुषी गायिकाओं का अवदान माना जा सकता है तो महेंद्र मिश्र की काव्य की सरसता और पूर्वी गीतों की तरल अनुभूतियों के पीछे कतिपय गायिकाओं के अवदान तथा प्रेरणा-पुष्प को सहज स्वीकार किया जा सकता है ।

मिश्र जी को बोध था कि एक बुद्धिजीवी और एक साहित्य सर्जक का समाज और राष्ट्र के प्रति क्या कर्तव्य होता है । उनका हृदय खीचता था संगीत के महफ़िलों के आरोह-अवरोह और तरन्नुम की तरफ । उनका मस्तिष्क खींचता था राष्ट्रीय आन्दोलनों तथा उसमें शरीक हजारों लाखों व्यक्तियों की सेवा और त्याग की तरफ । कवि की विवशता थी कि वह इन दोनों में से किसी को छोड़ नहीं सकता था । उसके लिए एक श्रद्धा थी,दूसरी इड़ा । जिस तरह  दिनकर की पारिवारिक विवशता थी अंग्रेजों की गाडी पर चढ़कर अंग्रेजी अंग्रेजी सरकार की प्रशंसा के गीत गाना,बहुत कुछ वही विवशता महेंद्र मिश्र के साथ भी थी-परिवार,समाज और राष्ट्र की सेवा के समानांतर संगीत एवं कविता का सृजन करना । दिनकर और महेंद्र मिश्र की मजबूरी एक-सी थी क्योंकि दोनों देश के लिए कुछ करना तो चाहते थे पर दोनों अपने परिवार की वास्तविक माली हालात से टूटे हुए भी थे । महेंद्र मिश्र दोनों कार्य सधे हाथों से करते रहें । जो कवि लिख सकता था "एतना बता के जईह कईसे दिन बीती राम"- तथा "केकरा पर छोड़ के जईब टूटही पलानी,केकरा से आग मांगब,केकरा से पानी" वह आदमी समाज की घोर दरिद्रता,घोर संकट और यथार्थ जीवन से खूब परिचित था,इसमें कोई संदेह नहीं ।

सामाजिक मूल्यों पर कोई दुष्प्रभाव पड़े-ऐसा कोई कार्य महेंद्र मिश्र ने यावज्जीवन नहीं किया । महेंद्र मिश्र के परिवार के सदस्य तथा सैकड़ों बुजुर्ग आज भी गर्व के साथ कहते हैं कि महेंद्र मिश्र सम्पूर्ण अंग्रेजी अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने के लिए नोट छापते थे । इस कथन पर सहज ही विश्वास हो जाता है क्योंकि उनका एक अधूरा गीत इस आशय को ही ध्वनित करता है-
"हमरा नीको ना लागे राम गोरन के करनी 
 रुपया ले गईले,पईसा ले गईलें,ले सारा गिन्नी 
 ओकरा बदला में दे गईले ढल्ली के दुअन्नी ।"(*अखिल भारतीय साहित्य सम्मलेन के तीसरे अधिवेशन,सिवान के अवसर पर प्रकाशित ब्रजभूषण तिवारी का निबंध ।पृ-९८)

वहीँ विश्वनाथ सिंह (बिहार स्वतंत्रता सेनानी संघ के अध्यक्ष ) तथा प्रसिद्ध स्वंत्रता सेनानी श्री तपसी सिंह (चिरांद,सारण ) के एक लेख में भी मिश्र जी द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद करने की बात कही गयी है ।(*अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के चौदहवें अधिवेशन,मुबारकपुर,सारण.१९९४ के अवसर पर प्रकाशित लेख 'इयाद के दरपन में' । संपादक श्री राजगृही सिंह तथा व्यास मिश्र ।) बाबू रामशेखर सिंह(सांसद,छपरा)जो स्वयं भी स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं,बताते हैं कि उनका घर स्वतंत्रता सेनानियों का अड्डा था और महेंद्र मिश्र हमेशा उनके घर पर पहुँचते रहते थे तथा उनके पिता तथा चाचा श्री दईब दयाल सिंह आदि के साथ हमेशा राजनीतिक घटनाओं पर बातचीत करते रहते थे ।(*साक्षात्कार-श्री रामशेखर सिंह,कांग्रेसी सांसद एवं स्वतंत्रता सेनानी । साक्षात्कारकर्ता-अविनाश नागदंश ।"सारण वाणी"के महेंद्र मिश्र विशेषांक में प्रकाशित । सम्पादक श्री शालिग्राम शास्त्री । पृ.-७१) मिश्रवलिया के आसपास के अनेक वृद्ध व्यक्ति साक्षात्कार के समय बताते रहे हैं कि महेंद्र मिश्र गुप्त रूप से क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता की बलिवेदी पर शहीद होने वाले परिवारों को मुक्तहस्त सहायता किया करते थे । रामनाथ पाण्डेय ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास "महेंदर मिसिर"में स्वीकार किया है कि, महेंद्र मिश्र अपने सुख-स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि शोषक ब्रिटिश हुकूमत की अर्थव्यवस्था को धराशायी करने और उसकी अर्थनीति का विरोध करने के उद्देश्य से नोट छापते थे ।(*'महेंदर मिसिर' उपन्यास । लेखन श्री रामनाथ पाण्डेय ।"आपन सफाई "पृष्ठ- ट से ठ )

शेष अगले पोस्ट में...  

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