नौटंकी वाया रिक्शा-शो....जय हो...
कल अपने समाजवादी नीतिश कुमार जी "slumdog.."देखने गए.आज के सभी अखबारों की सुर्खियों में उनकी रिक्शानशीन मुस्कुराती हुई तस्वीर छाई हुई है.साथ ही,इस फिल्म के बारे में उनके उदगार भी कि"मैं ज़रा भुसकौल छात्र हूँ इसलिए अब तक फिल्म नहीं देख पाया था.अब इनको कौन बताये कि ये अचानक ही रिक्शा सवारी के साथ फिल्म में उस रास्ते से जाना जो पटना का सबसे भीड़ वाला इलाका है,कोई यूँ ही वाली बात नहीं थी.सुशासन को इस तरीके से दिखाने का अच्चा मौका है यह जबकि लोक सभा चुनावों की घोषणा कुछ ही दिनों पहले हो चुकी है.राजनीति के राजपथ पर लोहिया के लोग अब उनकी(लोहिया)तरह या सिद्धांतों के आस-पास कितने रह गए हैं,यह तो नहीं कहा जा सकता पर हाँ इतना जरुर है कि आज की राजनीती में अपनी जुगाली कैसे चलाते रहनी है यह बहुत अच्छे से पता है."slumdog..."तक पहुँचने का ये रास्ता वाकई लाजवाब है पर क्या करें इस खोपडी में यह बात आसानी से नहीं घुसती कि बस यूँ ही फिल्म देखने जा रहा हूँ.अपने उपलब्धियों के साथ ही अगर नीतिश जी जनता दरबार में जाएँ तो ही अच्छा है क्योंकि उनके फेवर में यह बात कम-से-कम (लालू यादव के बाद)है कि उनके किये कराये जा रहे कुछ काम लोगों को दिख रहे हैं,और बिहार की चुनावी बयार भी उनके तरफ बह रही है. पर,क्या करें,नेताजी लोगों का कलेजा इतना सा होता है कि चुनाव की लहर चलते ही अपने स्टंट चालु कर देते हैं.सोच कर ही कितना अच्छा लगता हैं ना कि एक बीमारू स्टेट उनकी मुखिया जी 'slumdog...'देखने रिक्शे से जा रहे हैं,कहीं वे अपने स्टेट की हालत का प्रतिबिम्ब ही तो नहीं देखने गए थे..जिसका अंत उन्हें (उन्ही के शब्दों में)आशावादी लगा..(वैसे फिल्म तो आशावादी है ही)? हो सकता है..पर अब इस सीजन की शुरुआत नीतिश जी अपनी इनिंग से खेल दी है अब उनके ही समाजवादी मित्र /गुरु भाई लालूजी की इनिंग आने ही वाली है.तो क्या इस बात की उम्मीद लगाई जाए की अगले वाले भाईजी भैसगाडी/बैलगाडी से सिनेमा देखने जायेंगे?पर तब तक शायद 'slumdog....'बदल जायेगी ...खैर कोई बात नहीं जल्दी ही "आ देखे ज़रा "रीलिज होने वाली है...इसे ऑस्कर तो नहीं मिला पर हाँ मौसम के लिहाज़ से टाईटल बढ़िया है...खेल शुरू है भावुक मत होइए अभी और तमाशे दिखेंगे ...पूरब से पश्चिम तक ,उत्तर से दक्षिण तक..तब तक सुर्खियाँ कैसे बटोरे अभियान का मजा लीजिये....जय हो
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