एक बढ़िया निर्देशक की कमज़ोर प्रस्तुति-'माहिम जंक्शन'



कमानी सभागार में उपस्थित लगभग सभी सहृदयों के दिमाग में यही बात घूम रही होगी कि क्यों आखिर वह माहिम जंक्शन देखने आया.मेरे पास दो वाजिब कारण था.पहला ये कि इस प्ले में मेरा जूनियर 'शिवम् प्रधान'काम कर रहा था और दूसरा यह कि मैं हिंदी सिनेमा के सत्तर के दशक के सिनेमा का कायल हूँ.अफ़सोस मैं इस प्ले में अपनी दूसरी वजह को ना पाकर निराश हुआ.अपने निर्देशकीय वक्तव्य में'सोहेला कपूर'ने इस नाटक को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया है.उनकी ज़ुबानी-"बचपन में देखी हुई अनेक खुशनुमा बालीवुड फिल्मों का यह अनुचिंतन मेरे लिए बड़ा आनंददायक रहा.इन फिल्मों ने हमारी पीढ़ी को अपने नाच-गानों और नाटकीयता के द्वारा असीम आनंद दिया है.पुनर्पाठ और बालीवुड,इधर ये दोनों ही मुख्यधारा में हैं.नाटक में पुनर्पाठ के साथ आज की प्रतिध्वनियाँ भी हैं.कहानी के कई सूत्र अतीत को वर्तमान से जोड़ते हैं.यह मुम्बई के जीवन को भी एक उपहार है,जीने इधर घातक आतंकवादी हमलेझेले हैं."-यह तो अहि निर्देशकीय.पर यह कहना शायद अति नहीं होगा कि यह नाटक अपने शुरू से ही अजीब तरह से भागम-भाग वाली स्थिति का शिकार हो गया था.कलाकार बॉडी मूवमेंट तक पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे थे.हालांकि इस नाटक की पृष्ठभूमि में ७० के दशक का बालीवुड है पर घटनाओं के बीच तबके मशहूर गीतों ,कास्ट्यूम और कुछेक पोस्टर्स के अलावा कुछ भी ऐसा घटित होते नहीं दिखा अजो माहिम जंक्शन को चरितार्थ करता अलबता पूरे परफार्मेंस मं इस बात की कमी खलती रही कि प्लाट पर थोडा उर मेहनत कर लिया जाता तथा रिहर्सल भी.आप भारंगम जैसे थियेटर फेस्टिवल में भाग लेने को आमंत्रित किये गए हैं तो आपसे अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं पर अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं और जिस तरह के प्रोमो और पोस्टर्स देख कर दर्शक गए थे उन्होंने अपना सर पीट लिया.कहाँ तो ये संगीतमय नाटक दो कहानियों को लेकर चल रहा है जिसमे एक तरफ एक हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के का प्यार है तो दूसरी तरह कामुक फिल्म प्रोड्यूसर 'काला धंधा उर्फ़ डीडीएलजे'जो नाटक में राजनितिक तेवर भी पैदा करता है और अंत में दोनों प्रेमियों के मिलने का कारण भी बनता है.आमतौर पर दर्शक नाटक देखने जाते हैं उन्हें अच्छी तरह पता ही कि संगीतमय प्रस्तुतियों में'रंजीतकपूर'का हाथ पकड़ना मुश्किल है,उनका नाटक'शोर्टकट'देखने के बाद एक अलग तरह की ताजगी मिलती है या फिर स्वानंद किरकिरे का'आओ साथी सपना देखें' एक अलग तरह का सुकून देता है.दरअसल संगीतमय नाटक अपने प्लाट ही नहीं बल्कि एक्टर्स के साथ भी अच्छी खासी मेहनत की डिमांड करते हैं तभी यह दर्शकों को प्रभावित कर पाते हैं.'माहिम जंक्शन इसमें नाकाम रहा.उम्मीद है जब भी इसकी अगली प्रस्तुति होगी इस बार से मच बेटर,मच मच बेटर होगा,जो सोहेला कपूर जी करना भी चाहती हैं..हम तब भी इस नाटक को देखने आयेंगे क्योंकि अभी जो कसक बाकी रह गयी जो नहीं देख पाए और जो उम्मीद इस बार पूरी नहीं हो पाई तब शायद जरुर पूरी होगी .तबके लिए सोहिला जी को बेस्ट विशेस ...मुझे व्यक्तिगत तौर पर भरोसा है कि सोहिला जी इस उम्मीद को जाया नहीं जाने देंगी...

Comments

Udan Tashtari said…
आपका आभार समीक्षा के लिए.

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