विश्व की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी का स्थान -डॉ. रामजीलाल जांगिड
(यह
लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे
कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र
आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख
के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं। लेखक- डॉ. रामजीलाल जांगिड )
विश्व भर में बोलचाल के लिए
लगभग 3,500 भाषाओं और बोलियों का प्रयोग
किया जाता है, किंतु एक मनुष्य से दूसरे
मनुष्य तक लिखकर बात पहुँचाने में इनमें से 500 से
अधिक भाषाओं या बोलियों का इस्तेमाल नहीं होता। मौखिक और लिखित दोनों प्रकार के
संचार के लिए काम आने आने वाली भाषाओं में से लगभग 16 भाषाएँ
ऐसी हैं, जिनका व्यवहार 5 करोड़
से अधिक लोग करते हैं। विश्व की ये 16 प्रमुख
भाषाएँ हैं: अरबी, अंग्रेजी, इतालवी, उर्दू, चीनी
परिवार की भाषाएँ, जर्मन, जापानी, तमिल, तेलुगु, पुर्तग़ाली, फ्रांसीसी, बांगला, मलय-बहासा
(भाषा), रूसी, स्पेनी
और हिन्दी। यह गौरव की बात है कि भारत ही ऐसा एकमात्र देश है, जिसकी
पाँच भाषाएँ विश्व की 16 प्रमुख
भाषाओं की सूची में शामिल हैं। भारतीय भाषाएँ बोलने वाले व्यक्ति भारत सहित 137 देशों
में फैले हुए हैं। लेकिन यह दु:ख की बात है कि इस सूची में शामिल भारतीय भाषाओं
में प्रमुख हिन्दी का व्यवहार करने वालों की प्रामाणिक संख्या अब तक नहीं जानी जा
सकी है। विश्व की प्रमुख भाषाओं का व्यवहार करने वालों के बारे में पश्चिमी देशों
के कई विद्वानों ने सर्वेक्षण किए हैं, किंतु
इन सब के निष्कर्षों में हजारों का अंतर है। दुर्भाग्यवश एक भी पश्चिमी विद्वान
ऐसा नहीं है, जिसने भारत की जनगणना में
मातृभाषाओं के बारे में एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करके और अन्य देशों के
हिन्दी भाषियों के आंकड़ों का विश्लेषण करके और अन्य देशों के हिन्दी भाषियों के
आंकड़े जमा करके विश्व की प्रमुख भाषाओं की सूची में हिन्दी का सही स्थान
निर्धारित किया हो। अन्य देशों के विद्वानों को ही क्यों दोष दें, जब
स्वयं भारत और अन्य 136 देशों में रहने वालें करोड़ों
भारतवासियों में से किसी ने भी अब तक इस दिशा में वैज्ञानिक ढंग से शोध नहीं किया
है। विश्व भाषाओं में हिन्दी का सही स्थान तलाशने का काम तृतीय विश्व हिन्दी
सम्मेलन से ही शुरू कर दिया जाए तो अच्छा रहेगा। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के
प्रोफेसर सिडनी कुलबर्ट द्वारा 1970 में
जमा किए गए आंकड़ों के अनुसार बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से विश्व की प्रमुख
भाषाओं में (चीन और अंग्रेजी के बाद) हिन्दी का तीसरा स्थान था। अमरीका और फ्रांस
के कुछ विद्वानों ने (चीनी, अंग्रेजी
और रूसी के बाद) हिन्दी को स्पेनी के साथ चौथा स्थान दिया है। किन्तु मेरी मान्यता
है कि विश्व की प्रमुख भाषाओं में (चीनी के बाद) हिन्दी का दूसरा स्थान है। मुझे
लगता है कि पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय भाषाएँ बालने वालों के आंकड़ों का गहराई
से विश्लेषण नहीं किया। मैं अपने उक्त निष्कर्ष पर दो ढंगों से पहुँचा हूँ: पहले, भारत
के राज्यों और संघ क्षेत्रों की 1971 की
जनसंख्या का विश्लेषण करके, दूसरे
विभिन्न भारतीय भाषाओं और बोलियों का व्यवहार करने वालों की संख्या की जांच-पड़ताल
करके। विदेशी विद्वानों ने भारती की जनगणना (1971)
के
आंकड़ों के आधार पर अपनी तालिकाएँ बनाई हैं, इसलिए
पहले यह जांच करना जरूरी है कि भारत की जनगणना (1971)
में
हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के साथ क्या बर्ताव किया गया है? जनगणना
करने वालों ने यह प्रश्न पूछा होता कि क्या मातृभाषा के अलावा आप हिन्दी जानते, बोलने
या समझते हैं तो हिन्दी का व्यवहार करने वालों की सही स्थिति सामने आ जाती। किंतु
जनगणना विभाग ने भाषाओं और बोलियों के आंकड़े तैयार करते समय कई विचित्र भारतीय
भाषाओं की ही खोज कर डाली है। उदाहरण के लिए जनगणना विभाग द्वारा प्रकाशित आंकडों
के अनुसार 1971 में भारत में 73,847
लोग ‘किसान’ भाषा,
25,066 लोग ‘क्षत्रिय’ भाषा,
24,624 लोग ‘इस्लामी’ और 5,111
व्यक्ति
‘राजपूती’ भाषा
बोलते हैं। वास्तव में किसान खेती करने वाले को कहते हैं, जबकि
क्षत्रिय या राजपूत जातिसूचक शब्द हैं और इस्लाम एक संप्रदाय है। व्यवसाय, जाति
या धर्म को मातृभाषा बना देना कैसे उचित कहा जा सकता है? इन
आंकड़ों का खोखलापन इससे ज्यादा क्या प्रकट होगा कि राजस्थानी के विभिन्न रूपों— मारवाड़ी, ढूंढारी, मेवाड़ी
और हाड़ौती को स्वतंत्र मातृभाषाएँ मानते हुए, इनका
व्यवहार करने वालों के अलग आंकड़े दिए गए हैं। राजस्थान में सरकारी कामकाज, जनसंचार, व्यापार
और शिक्षा का माध्यम हिन्दी है, इसलिए
इन्हें हिन्दी परिवार में ही शामिल किया जाना चाहिए था। यही व्यवहार ब्रज, अवधी, बिहारी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, पूर्वी, नागरी
और हिन्दुस्तानी के अंतर्गत दिए गए आंकड़ों के साथ किया जाना चाहिए था। कुछ शहरों
के नाम से भी ‘भाषाएँ’ दे
दी गई हैं। जैसे: भागलपुरी, विलासपुरी, नागपुरी, मुजफ्फरपुरी, हजारीबाग
और जयपुरी। इस दोषपूर्ण सूचना या नासमझी का परिणाम यह हुआ कि 1971
की
जनगणना में 54.78 करोड़ से कुछ अधिक भारतीयों
में हिन्दीभाषियों की संख्या घटकर केवल 15.37 करोड़
से कुछ ज्यादा रह गई। जबकि उस समय वास्तव में हिन्दी का व्यवहार करने वालों की
संख्या 40 करोड़ थी। हिन्दी को चौथा
स्थान देने वाले विद्वान चीनी, अंग्रेजी, रूसी, और
हिन्दी का व्यवहार करने वालों की संख्या क्रमश: 70,30,20
और 16.5
करोड़
मानते हैं। इसी सूची में बिहारी, राजस्थानी, भीली
और गोंडी बोलने वालों की संख्या क्रमश: 4 करोड़,
1.5 करोड़, 20 लाख
और 15 लाख दी गई है। जिन राज्यों में इन बोलियों का
व्यवहार होता है, उनमें राजकाज, जनसंचार, शिक्षा, व्यापार
और घर के बाहर संपर्क की भाषा हिन्दी ही है। इसलिए जिस तरह चीनी के विभिन्न रूपों
को ‘चीनी भाषा परिवार’ के
अंतर्गत गिना गया है, उसी तरह से इन बोंलियों को ‘हिन्दी
भाषा परिवार’ के अंतर्गत शामिल किया जाना
चाहिए। इन बोलियों का व्यवहार करने वालों की संख्या हिन्दी भाषियों की ऊपर दी गई
संख्या (16.5 करोड़) में शामिल होने से योग
रूसी भाषियों की संख्या (20 करोड़)
और गुजराती बोलने वालों की संख्याओं का योग 16.6
करोड़
है। इन भाषाओं का इस्तेमाल करने वाले भी हिन्दी फिल्मों, हिन्दी
प्रसारणों, हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं और
पुस्तकों से आसानी से लाभ उठाते हैं। दसरे शब्दों में इनके दैनिक व्यवहार में
हिन्दी की पैठ है। यदि इन्हें हिन्दी परिवार में शामिल कर लिया जाए, तो
योग अंग्रेजी का व्यवहार करने वालों (30 करोड़)
से 8.95 करोड़ अधिक पहुँच जाता है। इन क्षेत्रों में
हिन्दी क्षेत्रों के लोग भी काफ़ी संख्या में बसे हुए हैं। इसलिए यदि पूरी तरह
इन्हें शामिल करने में हिचकिचाहट हो तो इनके आधे (8.3 करोड़)
लोगों को भी हिन्दी जानने समझने वालों की सूची में रख लिया जाए तब भी योग अंग्रेजी
भाषियों से आगे चला जाता है। अब हम राज्यों की दृष्टि से विचार करते हैं। हिमाचल
प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर
प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की 1971
में
संयुक्त जनसंख्या 22.99 करोड़ से कुछ अधिक थी। यह
संख्या भी हिन्दी-भाषियों की संख्या 16.5 करोड़
मानने के मार्ग में बाधा है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दमन
व दीव तथा अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में कुल जनसंख्या 9.61
करोड़
से कुछ अधिक थी। इन क्षेत्रों में हिन्दी से अपरिचित शायद ही कोई हो, यदि
हिन्दी का व्यवहार करने वालों में इनकी संख्या मिला दें तो योग 32.60
करोड़
हो जाता है। भारत की 1971 की जनसंख्या (54.79
करोड़
से कुछ अधिक) में यह संख्या घटाने पर 22.19 करोड़
का आंकड़ा बचता है। ये लोग 15 राज्यों
और संघ क्षेत्रों में बिखरे हुए थे। जिनके नाम इस प्रकार हैं: 1. मिजोरम, 2.
मणिपुर, 3.
नागालैंड, 4.
अरुणाचल, 5.
असम, 6.
मेघालय, 7.
त्रिपुरा, 8.
पश्चिमी
बंगाल, 9. ओड़िशा,
10. तमिलनाडु, 11. पांडिचेरी,
12. लक्ष द्वीप व मिनिकोय द्वीप समूह,
13. केरल, 14. कर्नाटक
और 15. आंध्र प्रदेश। इनमें से एक तिहाई लोग भी हिन्दी
बोलने व समझने वाले माने जाएँ तो भारत में ही हिन्दी बोलने वालों की संख्या 40 करोड़
हो जाती है। ओड़िशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश
और पश्चिमी बंगाल में हिन्दी क्षेत्रों के काफ़ी लोग बसे हुए हैं। यह बात भी ध्यान
में रखी जानी चाहिए। इस तरह हिन्दी का व्यवहार करने वालों की संख्या 1971
में
रूसी का व्यवहार करने वालों से दुगुनी और अंग्रेजी का उपयोग करने वालों से सवा
गुनी मानी जा सकती है। पश्चिमी विद्वानों ने चीनी भाषा का मुख्य क्षेत्र चीन, अंग्रेजी
का अमरीका, कनाडा, इंग्लैंड, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया
और न्यूजीलैंड, रूसी का सोवियत संघ तथा
हिन्दी का केवल भारत माना है। 15 जुलाई
1980 के आंकड़ों के अनुसार एक करोड़ 10 लाख
भारतीय 136 देशों में बिखरे हुए थे।
इनमें नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया
और मॉरीशस में भारतवंशियों का विशेष जमाव था। उदाहरण के लिए केवल नेपाल में ही 38 लाख
भारतीय बसे हुए थे। इसलिए हिन्दी जानने वालों की सही संख्या निर्धारित करते समय इन
देशों को भूल जाना ठीक नहीं होगा। इसी प्रकार पाकिस्तान और बंगला देश में उर्दू
तथा बंगला राजभाषाएँ होने के बावजूद हिन्दी या हिन्दुस्तानी आम तौर पर समझी जानी
वाली विदेशी भाषा है। यदि अंग्रेजी के प्रभाव क्षेत्र में ऊपर दिए गए देशों के
अलावा अंग्रेजों के भूतपूर्व उपनिवेशों के दो प्रतिशत अंग्रेजी बोलने या समझने
वालों को भी जोड़ लिया जाए तब भी अंग्रेजी का व्यवहार करने वालों की संख्या हिन्दी
जानने-समझने वालों की तुलना में कम ही रहेगी। हम लोग स्टेट्समैन इयरबुक के 119 वें
संस्करण (1982-83) को आधार मानें तब पता चलता है
कि अंग्रेजी के मूल क्षेत्र माने जाने वाले देशों अमरीका (1980
की
जनसंख्या 22.65), ग्रेट-ब्रिटेन (1981
की
जनसंख्या 5.593 करोड़), कनाडा
(1981 की जनसंख्या 2.42
करोड़), आस्ट्रेलिया
(1980 की जनसंख्या 1.462
करोड़), आयरलैंड
(1979 की जनसंख्या 33.7
लाख), और
न्यूजीलैंड (1981 की जनसंख्या 32 लाख)
की संयुक्त जनसंख्या 1981 के आस-पास 32.782
करोड़
थी। जबकि इसी वर्ष भारत की जनसंख्या 68.39 करोड़
थी। भारत के लगभाग 70 प्रतिशत लोग राजकाज, जनसंचार, शिक्षा, व्यापार
या घर के बाहर संपर्क के लिए हिन्दी का प्रयोग करते हैं। यह मानने पर हिन्दी का
व्यवहार करने वालों की संख्या 47.87 करोड़
बन जाती है। जो विश्व भर में अंग्रेजी के गढ़ देशों की कुल जनसंख्या के लगभग डेढ़
गुना के बराबर है। यदि भारत में आधे लोगों को भी हिन्दी व्यवहार करने वालों में
गिना जाए तब भी अंग्रेजी की तुलना में हिन्दी का ही पलड़ा भारी पड़ता है और हिन्दी
विश्व की दूसरी प्रमुख भाषा बन जाती है।
साभार : भारत कोश (केवल छात्रोंपयोगी ज्ञान हेतु अव्यवसायिक एवं ज्ञान संपदा विस्तार हेतु प्रकाशित)
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