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Showing posts from November, 2008

मिस्टिक हिमालय में "चोपता"की चांदनी रात ...

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गढ़वाल वैसे तो अनेकानेक सुंदर-सुंदर जगहों से भरा पड़ा है। पर हम जिस जगह की बात कर रहे हैं वह चोपता है। चोपता गोपेश्वर से ३८ किलोमीटर की दूरी पर केदारनाथ वन्य -जीव प्रभाग के मध्य स्थित एक छोटी किंतु बेहद ही खूबसूरत जगह है। यहाँ पहुँचने के दो रास्ते हैं-पहला जो अधिक आसान और सीधा है वह गोपेश्वर ,मंडल होकर तथा दूसरा उखीमठ होकर। उखीमठ केदारनाथ बाबा की शारदीय पीठ है। चोपता को गढ़वाल का चेरापूंजी कहा जाता है ।कारण यहाँ बदल कभी भी आकर आपके ऊपर हलकी-तेज़ फुहार छोड़ जाते हैं।जैसे ही आप गोपेश्वर की तरफ़ से आते हैं और जब माईल स्टोन यहाँ शो करता है किचोपता १ किलोमीटर तभी आप अपने पैर अपनी गाड़ी के ब्रेक पर तेज़ी से लगाने को मजबूर हो जाते हैं। ना ना ..बात ज्यादा खतरे की नहीं है। दरअसल ,इस तीखे मोड़ से मुड़ते ही चोपता अपनी सारी खूबसुरती आपके आंखों में भर देता है,और आप फटी-फटी आंखों और खुले मुहँ से इस दृश्य और वहाँ पसरी अलौकिक शान्ति को बस देखते ही रह जाते हैं। सामने दूर-दूर तक फैला विराट दुधिया हिमालय अपनी मौन तपस्या करता जान पड़ता है,आप बस इस दृश्य को पूरा जी लेना चाहते है। एक सलाह है ,जहाँ तक सम्भव ...

मेरे शहर की पहचान बनाते सिनेमाघर...

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एक कविता कभी पढ़ी थी, शायद फर्स्ट इयर में,उसकी पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार थी- "अपने शहर में हम अपने घर में रहते हैं, दूसरेशहर में हमारा घर हमारे भीतर ......." सम्भव हैं,किआप सब में से कई इस बात ,इस लाइन से सहमत होंगे। घर से बाहर जाते हम सभी अपने साथ उस घर, गाँव , कस्बे , मुहल्ले, और उस शहर से जुड़े कुछ पक्के पहचानों को हम अपने साथ दूसरे शहर में भी लेकर चले आते हैं। हम शायद इस बात पर ध्यान ना देते हों पर यह सही हैं कि कुछ समय बीतने के बाद जब हम अपने शहर वापस लौटते हैं,तब हमारी आँखें अपने लगातार बदल रहे शहर के बीच अपनी उन्ही पुरानी पहचानों को ढूंढती हैं। कुछ चीज़ें बदलती हुई अच्छी लगती हैं कुछ एक टीस सी पैदा करती हैं। सिनेमा हॉल मेरे शहर की भीड़ और आबादी के बीच एक सांस्कृतिक अड्डेबाजी का मंच देते थे।मेरे छोटे से शहर गोपालगंज में कुल-जमा पाँच छविगृह हैं। इनके नाम हैं( वरीयता क्रमानुसार -जनता सिनेमा,श्याम चित्र मन्दिर,कृष्णा टाकिज, चंद्रा सिनेमा,सरस्वती चित्र मन्दिर,और राजू मिनी टाकिज। इन सभी सिनेमा घरों में आर्किटेक्चर के लिहाज़ से कोई ख़ास फर्क तो नहीं हैं पर हाँ...इनके फ़िल्म प्रद...

भगवान् बचाए इन चाटों से....(कैंटीन ओनर्स वाले )

अब विभागों में मिड-टर्म परीक्षाओं की घंटियाँ लगभग बज चुकी हैं या फ़िर बजने ही वाली है.ऐसे में अब तक कैंटीन ओनर्स करने वाले (वैसे छात्र जो घर से अपना बोरा-बस्ता लेकर आते तो हैं कॉलेज पर सारा दिन कॉलेज कैंटीन में गप्पे और पता नहीं क्या-क्या हांकते रहते है)छात्रों ने अपनी परीक्षा पास करने की मुहीम तेज़ कर दी है.ऐसे होनहार बिरवानों के कारण कुछ तो छुटभैये सीनियर बड़े खुश होते हैं ,तो कुछ की वाकई शामत आ जाती है.छुटभैये किस्म के सीनियर इन होनहारों के लिए तत्काल कोटा के समान होते हैं या फ़िर रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसिलेशन के जैसे.दरअसल ,इन कैंटीन ओनर्स वाले जूनियर मित्रों/साथियों के इर्द-गिर्द काफ़ी ऐसी बालिकाएं भी साथ देती रहती हैं जो इनके द्बारा बताये गए (माने फेंके गए गप्पों)बातों की खासी मुरीद/फैन होती हैं और इसी मौके पर इस अभियान में जोर-शोर से उनका साथ देती है ,जिस मिशन का नाम होता है-सीनियर पकडो-नोट्स टेपों.छुटभैये सीनियर को तो बस इसी मौके का इंतज़ार होता है और यही सही मौका भी क्योंकि जिस डिपार्टमेन्ट ने उन्हें नाकारा करार देकर इस वर्ष एडमिशन नहीं दिया होता है,तो ये अपने जूनियर्स को बताते ...

हर लिहाज़ से बेहतरीन प्रस्तुति है -"विक्रमोवर्शियम".

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यूँ तो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय हर वर्ष अपनी प्रस्तुति याँ देता है मगर रंग-प्रेमियों को इसके सेकंड इयर के छात्रों की किसी क्लासिक नाट्य प्रस्तुति काइंतज़ार रहता है ,जो यह हर वर्ष देते हैं। वैसे द्वितीय वर्ष के छात्रों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है यह संस्कृत के नाटक। बस ऐसा जान लीजिये कि इनके सही मायने में नाट्य विद्यालय के अकादमिक दर्जे से यह पहली प्रस्तुति होती है। और इन नाटकों को तैयार करने में इस विद्यालय के पास तथा इनसे जुड़े एक्सपर्ट्स की अच्छी-खासी मौजूदगी है। पर ,दो नाम ख़ास तौर से बहुत सम्मानित और इस क्लासिकीय विधा के नाटक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है वह है- श्री के.एस.राजेंद्रन जी (जो यही एसोशियेट प्रोफेसर हैं। )और दूसरे हैं-श्री प्रसन्ना जी(इनकी प्रमुख प्रस्तुतियां हैं-'उत्तर रामचरित','आचार्य तार्तुफ़')। २ साल पहले राजेंद्रन ने अपने निर्देशन में कालिदास के महान नाटक "मालविकाग्निमित्रम" को रंगजगत में उतारा था,तब यह नाटक उस साल खेले गए कुछ बेहतरीन नाटकों में से एक माना गया था। इस वर्ष फ़िर इन्ही के निर्देशन में कालिदास के ही एक और नाटक "विक्रमोवर्शियम...

जरुरत है अब रंग बदलने की(भोजपुरी फिल्में)

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जहाँ तक भोजपुरी फिल्मों के धडाधड आने की बात है वही एक समस्या इनके स्तरसे जुड़ी हुई तेज़ी से उभर रही है। ये समस्या इनके मेकिंग से ही जुड़ी नहीं है बल्कि इसके प्रस्तुतीकरण और कथ्य से भी जुड़ी है। 'उफान पर है भोजपुरी सिनेमा"शीर्षक के तहत मैंने एक ब्लॉग-पोस्ट पिछले महीने लिखी थी,इस पोस्ट पर प्राप्त टिप्पणियों में से एक ब्लॉगर साथी ने अपनी प्रतिक्रिया लिखी किवह सब तो ठीक है पर भोजपुरी सिनेमा गंभीर नहीं हो रहा है। उनकी बात के जवाब में मैंने यह लिखा कि अभी तो तेज़ी आई है आने वाले समय में कुछ सार्थक सिनेमा भी यह इंडस्ट्री देगा,जिसे राष्ट्रीय स्तर पर नोटिस किया जायेगा। मगर मुझे पता है कि यह भी इतना आसान नहीं है जबकि इस इंडस्ट्री में पैसा इन्वेस्ट करने वाले राजनेता,अब तक रेलवे ,सड़क की ठेकेदारी करने वाले सफेदपोश लोग और विशुद्ध व्यापारी लोग ही हैं। हाल ही में अपने घर से लौटा हूँ । वहां भोजपुरी की दो फिल्में देखीपहली का नाम था-बलम परदेसिया और दूसरी नई फ़िल्म थी -हम बाहुबली। हम बाहुबली आज के भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन और दिनेश लाल यादव' निरहुआ'अभिनीत थी, वही'बलम परदेसिया ८० के द...

बस आज होगी अब आखरी दहाड़.......

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लॉर्ड्स का वह सीन याद कीजिये जब एक दुबले-छरहरे बाबु मोशायने अपने पहले ही मैच में सैकडा ठोक दिया था। या फ़िर वह जब दुनिया को क्रिकेट के मैदान में अपनी जूती के नोंक पर रखने वाली टीम का लीडर इस बंगाल टाईगर के आगे बेचारा बना ग्राउंड में टॉस का इंतज़ार कर रहा था। अब तक लोगों से भद्रजनों के खेल के कायदे सुनने वाला और अपने दूसरे कान से बेहयाई से मुस्कुराते हुए निकाल देने वाली इस दादा टीम को दादा की दादागिरी के आगे बेबस होकर ख़ुद जेंटल मैन गेम का तरीका अपनाए जाने की बात करनी पड़ गई थी। या फ़िर वह दृश्य जब ब्रिटेन की छाती पर बैठ कर बालकोनी से अपनी टी- शर्ट उतार कर भद्रजन खेल की नई परिभाषा ही गढ़ देना । जी हाँ.... इस अनोखे और विश्व क्रिकेट में परम्परा से चली आ रही भारतीय इमेज( किसी भी छींटाकशी को सुन कर अनसुना कर देना इत्यादि) को इसी कप्तान ने बदल के रख दिया । तमाम तरह के विवादों के बीच जब भारतीय टीम मैच फिक्सिंग के दलदल में फंसती नज़र आ रही थी, तब इस नए जुझारू नौजवान ने इस टीम की बागडोर अपने हाथ में संभाली और उसके बाद जो कुछ कारनामा इसी टीम ने किया वह सबने देखा। जिन विदेशी पिचों पर इस टीम को सब टीम...