मिस्टिक हिमालय में "चोपता"की चांदनी रात ...



गढ़वाल वैसे तो अनेकानेक सुंदर-सुंदर जगहों से भरा पड़ा है। पर हम जिस जगह की बात कर रहे हैं वह चोपता है। चोपता गोपेश्वर से ३८ किलोमीटर की दूरी पर केदारनाथ वन्य -जीव प्रभाग के मध्य स्थित एक छोटी किंतु बेहद ही खूबसूरत जगह है। यहाँ पहुँचने के दो रास्ते हैं-पहला जो अधिक आसान और सीधा है वह गोपेश्वर ,मंडल होकर तथा दूसरा उखीमठ होकर। उखीमठ केदारनाथ बाबा की शारदीय पीठ है। चोपता को गढ़वाल का चेरापूंजी कहा जाता है ।कारण यहाँ बदल कभी भी आकर आपके ऊपर हलकी-तेज़ फुहार छोड़ जाते हैं।जैसे ही आप गोपेश्वर की तरफ़ से आते हैं और जब माईल स्टोन यहाँ शो करता है किचोपता १ किलोमीटर तभी आप अपने पैर अपनी गाड़ी के ब्रेक पर तेज़ी से लगाने को मजबूर हो जाते हैं। ना ना ..बात ज्यादा खतरे की नहीं है। दरअसल ,इस तीखे मोड़ से मुड़ते ही चोपता अपनी सारी खूबसुरती आपके आंखों में भर देता है,और आप फटी-फटी आंखों और खुले मुहँ से इस दृश्य और वहाँ पसरी अलौकिक शान्ति को बस देखते ही रह जाते हैं।

सामने दूर-दूर तक फैला विराट दुधिया हिमालय अपनी मौन तपस्या करता जान पड़ता है,आप बस इस दृश्य को पूरा जी लेना चाहते है। एक सलाह है ,जहाँ तक सम्भव हो ,कैमरे की क्लिक के बजाये दिल के कैमरे में इसे पहले क्लिक करें फ़िर कहीं और। क्योंकि ,चोपता मन नहीं भरने देता हाँ आपकी छुट्टियां ही कम पड़ जाती हैं। यहाँ जगह अपने दूर दूर तक फैले हरे-हरे बुग्यालों के लिए मशहूर है(बुग्याल-हरे घास के वो मैदान जो उंचाई पर बर्फीली चोटियों से लगे हुए हैं)। चोपता से ४ किलोमीटर ऊपर पंचकेदारों में से सबसे उंचाई पर स्थित तुंगनाथ का मन्दिर है। यहाँ तक जाने के लिए बढ़िया ट्रेल पी.डबल्यू.डी.के सौजन्य से बनी हुई है। चोपता आपको आम हिल स्टेशनों से अलग इस कारण भी लगेगा क्योंकि यहाँ टूरिस्टों के लंड-चौडे जत्थे उनका कूड़ा-कचरा ,पोलीथिन के ढेर नहीं दीखते और एक बात कि यहाँ आज भी दूकान वाला गैस की बजाय लकड़ी पर ही खाना बना कर देता है,वो भी लोकल सब्जियों के साथ। चूँकि यहाँ सालो भर बेहद ठंडा वातावरण होता है तो आप यहाँ के होटलों में मडुवे की रोटी और लहसन की चटनी की मांग कीजिये (जो सामान्तया मिल जाती है) ।

अब,इस जगह के बारे में कुछ बेहद जरुरी। यह क्षेत्र सघन वन क्षेत्र है अतः रात-विरातदेख भाल कर निकलिए । चोपता में जगह से लगभग ५०० मीटर की दूरी पर एक ऊँचा टावर जंगलात विभाग ने बना रखा है,आप यहाँ से रात में दुर्लभ और लगभग गुम हो चुके जानवरों की प्रजातियाँ देख सकते हैं,जैसे कि 'कस्तूरी मृग और हिमालयन रीछ बाघ इत्यादि पर इसके लिए चांदनी रात का होना जरुरी है। चोपता की चांदनी रात बेहद खूद्सुरत होती है..शब्दों में बयान करना मुश्किल है क्योंकि यहाँ जब चांदनी हिम शिखरों पर पड़ती है तब दिमाग बंद हो जाता है और दिल धड़कना भूल जाता है। वैसे चोपता एक बेस कैम्प की तरह यूज कीजिये क्योंकि मैं जिस चांदनी की बात कर रहा हूँ वह केवल शरद पूर्णिमा के चाँद की है। इस समय यहाँ का सारा इलाका बर्फ की सफ़ेद चादर ओढ़ लेता है और जब बर्फ की इन चादरों पे चांदनी पसरती है..जी चाहता है कि बस सारी कायनात यही रुक जाए । वैसे भी इस पूर्णिमा में चाँद का दीदार चोपता के ऊपर लगभग ४२०० मी.पर स्थित चंद्रशिला से करना अधिक ठीक होता है जो तुंगनाथ मन्दिर से सीधी १ किलोमीटर की चढाई पर है। एक रात यहाँ बिता लेने का दम सभी के बूते के बाहर की चीज़ है। और यह शौक अच्छी तैयारी और साजो-सामान की मांग करता है। इस मौसम में जबकि ऊपर कुछ भी नहीं मिलता खाने और गाईड के बगैर जाना जान-जोखिम में डालना है। इस मौसम में कई ट्रैकर्स गोपेश्वर से लगभग २३ किलोमीटर की ट्रेकिंग करके सीधे तुंगनाथ मन्दिर के सामने पहनते हैं। मन्दिर के कपाट शीतकाल के लिए पहले ही बंद कर दिए जाते हैं,और आपके पास इस चांदनी रात में चाँद को निहारने का सुख पाने के लिए अपने साथ लाये टेंट या फ़िर मन्दिर के पीछे बनी एक छतरी के इर्द-गिर्द अपने को पूरी तरह बंद और गर्म हैवी वूलेन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। पर यह पूरी रात एक ऐसी याद दिल में छोड़ जाती है जिसे ना आप भूल पाते हैं ना ये ख़ुद को आपको भूलने देती है।

अगले दिन चाँद की पहाडी यानी चंद्रशिला से सूर्योदय देखिये। यह रात से कम किसी भी सूरत में नहीं होती। सूर्य की पहली किरण जब सामने दूर-दूर तक पसरे चौखम्बा ,गंगोत्री,केदार डोम,सतोपंथ नंदा घुंटी शिखरों पर पड़ती है तो लगता है जैसे इन शिखरों ने स्वर्ण मुकुट धारण कर लिया है और सूर्य अपनी स्वर्ण-रश्मियों से इनका अभिषेक कर दिया है...पर जल्दी कीजिये यहाँ बादल शीघ्र घिर आते हैं ...

फ़िर सोचना क्या है ..हो आइये एक बार चोपता ..फ़िर बताइए मुसाफिर ने कैसी कही?

बस यही ऋषिकेश से एन.एच.५८ के साथ-साथ देवप्रयाग,नन्द प्रयाग,रुद्र प्रयाग चमोली गोपेश्वर होते हुए मंडल के रास्ते "चोपता".और क्या ...

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