भगवान् बचाए इन चाटों से....(कैंटीन ओनर्स वाले )

अब विभागों में मिड-टर्म परीक्षाओं की घंटियाँ लगभग बज चुकी हैं या फ़िर बजने ही वाली है.ऐसे में अब तक कैंटीन ओनर्स करने वाले (वैसे छात्र जो घर से अपना बोरा-बस्ता लेकर आते तो हैं कॉलेज पर सारा दिन कॉलेज कैंटीन में गप्पे और पता नहीं क्या-क्या हांकते रहते है)छात्रों ने अपनी परीक्षा पास करने की मुहीम तेज़ कर दी है.ऐसे होनहार बिरवानों के कारण कुछ तो छुटभैये सीनियर बड़े खुश होते हैं ,तो कुछ की वाकई शामत आ जाती है.छुटभैये किस्म के सीनियर इन होनहारों के लिए तत्काल कोटा के समान होते हैं या फ़िर रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसिलेशन के जैसे.दरअसल ,इन कैंटीन ओनर्स वाले जूनियर मित्रों/साथियों के इर्द-गिर्द काफ़ी ऐसी बालिकाएं भी साथ देती रहती हैं जो इनके द्बारा बताये गए (माने फेंके गए गप्पों)बातों की खासी मुरीद/फैन होती हैं और इसी मौके पर इस अभियान में जोर-शोर से उनका साथ देती है ,जिस मिशन का नाम होता है-सीनियर पकडो-नोट्स टेपों.छुटभैये सीनियर को तो बस इसी मौके का इंतज़ार होता है और यही सही मौका भी क्योंकि जिस डिपार्टमेन्ट ने उन्हें नाकारा करार देकर इस वर्ष एडमिशन नहीं दिया होता है,तो ये अपने जूनियर्स को बताते है कि 'फलां टीचर नहीं चाहता था कि मैं यहाँ आऊं क्योंकि उसकी पोल-पट्टी खुल जाती या फ़िर ये कि मैं उसकी चाटता नहीं न भाई इस करान आज बाहर हूँ खैर तुम मेरे नोट्स लो और देखो कि कहाँ -कहाँ से रेफरेंस जुटाए हैं मैंने (मतलब किन-किन बुक्स से टीपी है)और क्या ख़ास निष्कर्ष दिया है.'-अब मज़ा तब आता है जब कोई काईयाँ जूनियर उनकी दुखती रग पे हाथ रख देता है-सर आपका नेट/जे आर ऍफ़ हुआ है'-बस सीनियर महाशय पहले तो उसे इस अंदाज़ में घूरते हैं मानो उसे यह समझाने कि कोशिश कर रहे हों कि ......ये ,तुझे मौका देखकर बात भी करने नहीं आती ,क्योंकि काफ़ी जूनियर बालिकाएं भी सर के इस विभागीय प्रचंड-प्रताप को सुन रही होती रहती हैं,पर झेंप मिटाते हुए एक लाइन में जवाब देंगे-'अजी,अभी बच्चे हो जानते नहीं नेट/जे आर ऍफ़ योग्यता का सही पैमाना है.'-बहरहाल,इन सीनियरों से पहले ट्राई मारी जाती है ,रिज़र्व खाते में रखे गए सीनियर के आस-पास.इन सेनिओर्स की पहले अच्छी-खासी पड़ताल इनके द्वारा की जाती है कि किस मूड का है और कहाँ रहता है,फोन पर बात करना ठीक रहेगा या नहीं?वगैरह-वगैरह.सहमत तब आती है जब यह सीनियर कैम्पस में ही रहता हो.यानी आस-पास,ये चांडाल-चौकडी वहाँ पहुँच जायेगी औए साथ में एकाध बालिकाएं जूनियर भी दांत निपोरती पहुंचेंगी.-'सर,घर पे इत्ता सारा काम होता है कि पढने का टाईम मुश्किल से ही मिलता है.'-लड़का कहेगा-सर जी,दूर से आता हूँ बस में लटक कर ,अब बताओ आप ही कि २ घंटे तो आने और २ घंटे जाने में ही लगते हैं अब ऐसे में आप ही बताओ कैसे पढ़ें,सर जी इस बार हेल्प कर दो अगले साल से जी लगाकर पढ़ लेंगे '-पर वह सीनियर मन में क्या सोचता है जो ख़ुद अपने एकाध महीने में जमा किए जाने वाले दीजर्टेशन के बारे में सोच रहा होता है कि अगले घंटों में किन-किन टोपिक्स को खत्म करना है.मिड-टर्म के ठीक पहले उग आने वाले इन चाटों का शिकार हाल ही हुआ हूँ ..जैसे तैसे पिंड छुडाया है ये कहकर कि -भाई,दिसम्बर के बाद इत्मीनान से मिल लेना...'मगर एकाध तो घाघों के बाप होते हैं ना...बस पूछिए मत....सोचता हूँ 'कहीं....दम सीधी होती है भला?'-यूनिवर्सिटी को छात्र हित में कैंटीन ओनर्स की डिग्री देनी शुरू की जानी चाहिए.

Comments

भई, ये तो एक फेज होता है, गुजर जाएगा:)
गुजर जाने के बाद फि‍र याद आएगा:)
कैंटीन में तब क्‍यूँकर जी बहलाएगा।
जब पास आउट होकर अकेले वहॉं आएगा:)
amitesh said…
ka bhaiaaaaaaaaaaa junior se itna pareshan haiiiiiiiiiiiiiiiii
कैंटीन ऑनर्स की डिग्री मिले या ना मिले लेकिन इस तरह के लोग हमें हर जगह मिल जाते हैं । ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ उन दिनों घटित हुआ जब मैं रामजस में था एक तथाकथित सीनीयर साहब से कुछ पूछना भर था मुझे जिसके लिए वे साहब रोज़ कहते कल आना आज मैं थक गया हूँ या अभी नींद आ रही है.................... । एक दिन तंग आकर पूछ बैठा कि सर आपने मुझे इतने चक्कर क्यों कटवाए तो उनका जवाब क़ाबिले-गौर था उन्होंने कहा मैं देख रहा था तुममे कितना पेशंस है । तब मेरे मुँह से बरबस निकला कि सर किसी को इतना भी मत घुमाइये, कि वो पेशंस छोड़ पेशंट बन जाए ।
जीतेन्द्र सर
तरुण की बात पर क्या कहेंगे?

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