नायक,खलनायक की वापसी : " सिंघम "

दक्षिण भारत की सिनेमा में यह नायक खलनायक का शह-मात और टशन हमेशा से दर्शकों को लुभाता रहा है

इधर पिछले कुछ वर्षों से हिंदी सिनेमा में भी मल्टीप्लेक्स कल्चर के बरक्स सिंगल स्क्रीन दर्शकों ने 'वांटेड' (सलमान खान अभिनीत ) से सलमान खान के कैरियर को एक नयी ऊँचाई दी जिसके दम पर उन्होंने 'दबंग'और 'रेडी' जैसी फिल्मों से अपनी ब्रांड इमेज पक्की कर ली
'वांटेड' इस मामले में पहली फिल्म बनती है,जहां नायक और खलनायक सिनेमा के दो छोरों पर खड़े होकर अपनी चालें चलते हैं और अंत में हीरो जीतता है
याद कीजिये ऐसा कब हुआ था जब दर्शकों को फिल्म का विलेन याद रह गया हो ? 'गनी भाई(प्रकाश राज) का कैरेक्टर दर्शकों को लुभाता और डराता रहा और प्रकाश राज द्वारा निभाया यह विलेनियस किरदार नायक के सामने किसी तरह भी फीका नहीं था
गब्बर सिंह,शाकाल,मोगैम्बो,डॉ.डैंग,तो आज तक लोगों के जेहन में बसे हुए हैं पर उदारवादी दौर में सिनेमा ने मेकिंग से लेकर प्रेजेंटेशन में जो पलटी खायी,उसमें हमारा यह खलनायक कहीं गायब सा हो गया था
इसीकी वापसी की कोशिश एक समय दुश्मन और संघर्ष से तनूजा चंद्रा ने की थी और सफल भी रहीं थी पर उसके बाद गैप आ गया था
यह भी कह सकते हैं कि प्रतिनायक का किरदार मजबूती और इमानदारी से गढ़ा ही नहीं गया या इसकी जरुरत ही महसूस ही नहीं की गयी
'गनी भाई' (वांटेड)के बाद रामगोपाल वर्मा ने 'भुक्का रेड्डी' (रक्तचरित्र में अभिमन्यु सिंह द्वारा निभाया गया चरित्र )में यह खलनायक हीरो के किरदार जितनी इमानदारी से लिखा और प्रस्तुत किया
'वांटेड' के बाद मेगा हिट 'दबंग'ने छेदी सिंह(सोनू सूद द्वारा निभाया किरदार) को नायक 'चुलबुल पाण्डेय'(सलमान खान)के सामने रखा पर 'छेदी सिंह'में वह बात नहीं दिखी
संभव है,यहाँ निर्देशक का मंतव्य नायक को मसीहाई ऊँचाई देने का अधिक रहा हो जिसका शिकार अनजाने में इस फिल्म का विलेन हो गया |
हिंदी सिनेमा में ७०-८० का दशक नायक-प्रतिनायक के बेहतर दौर का समय रहा

९० का दशक प्रेम-कहानियों के नाम रहा तो २१ वीं सदी हिंदी सिनेमा जगत में नए किस्म के सिनेमा और नयी सोच के युवा लेखकों और निर्देशकों के उभार का दौर रहा जिसकी बानगी आज हम देख रहे हैं
वांटेड से लेकर नयी रिलीज 'सिंघम'में ७० का वह नायक-खलनायक का दौर दक्षिण भारतीय फिल्मों के प्रभाव और सिंगल स्क्रीन थियेटर के आडियेंस की वजह से फिर से लौटा है
उसूल,चोर-पुलिस,चेसिंग दृश्य,सरे-बाज़ार जूतम-पैजार,हॉल में सीटियाँ बजाने को मजबूर करने वाले संवाद,अतुल बलशाली नायक,सिनेमा में बे-जरुरत नायिका,वापस लौट आये हैं
अजय देवगन,प्रकाश राज अभिनीत और 'गोलमाल'फेम निर्देशक रोहित शेट्टी की "सिंघम" इसी तरह की फिल्म है
जो नायक और खलनायक के दांव-पेंचों के बीच दर्शकों को सीट से बाँध कर रखती है
भले ही अजय देवगन का स्टारडम सलमान खान की तरह का न हो पर वह एक दमदार अभिनेता हैं यह इस फिल्म में दिखता है
पर इस फिल्म का सबसे मजबूत पात्र इसका खलनायक 'जयकांत शिक्रे'(प्रकाश राज ) है
प्रकाश में एक ख़ास किस्म का ह्यूमर है,जो दर्शकों को अपने से जोड़ लेता है और यह उनकी अभिनय क्षमता को दर्शाता है
यह खलनायक कई बार नायक 'सिंघम'पर भारी पड़ता है
खासतौर पर नायक और खलनायक के आपसी संवादों और टकराव वाले दृश्यों में
'दबंग'जहाँ स्टार वैल्यू और 'मुन्नी बदनाम'के बूते बड़ी हिट साबित हुई तो 'सिंघम' में उसका निर्देशन,कथा प्रवाह,नायक-खलनायक का बेहतरीन किरदार आपको इस फिल्म के लिए प्रभावित करता है
'सिंघम'फुल इंटरटेनर है,शालीमार बाग़ (दिल्ली) के डीटी सिनेमा में यह फिल्म देखते मैं इस बात पर खुश होता रहा कि बिना दिमागी कसरत किये आप कसे हुए निर्देशन में यह बेहतर मनोरंजक सिनेमा देख रहे है और एक बड़ा आश्चर्य भी हुआ कि जब भी खलनायक (जयकांत शिक्रे का प्रकाश राज द्वारा निभाया किरदार )परदे पर आया लोगों ने तालियाँ-सीटियाँ बजायी
यह एक खलनायक को दर्शकों का इनाम था,एक अभिनेता को उसका पुरस्कार था दर्शकों द्वारा और इन दर्शकों में छोटे बच्चे भी अधिक थे,मुझे मोगैम्बो से डर लगता था अपने बचपने में और यहाँ खलनायक आकर्षित कर रहा था,यह किरदार तथा अभिनेता की ताकत है,जो मसाला हिंदी सिनेमा से लुप्त हो चला था
यह हालत एक पॉश इलाके के मल्टीप्लेक्स के दर्शकों की थी तो सिंगल स्क्रीन के हमारे असली सिनेमचियों का ज़रा सोचिये
वांटेड,रक्तचरित्र,दबंग और अब सिंघम ने हिंदी सिनेमा के परदे पर नायक और खलनायक की वापसी करायी है



उम्मीद है आने वाले समय में कुछ और मजेदार फिल्में दिखेंगी
तब तक सिंघम से मज़े लें
***1/२ (मस्ट वाच मूवी)





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