हंसने मुस्कुराने के लिए ....
ज़िन्दगी से जब भी थोडी ऊब हो तब कुछेक कवियों की रचनायें बड़ी सहजता से हमारे होंठो पर एक मुस्कराहट छोड़ जाती हैं । पेश है कुछ ऐसे ही कवियों की रचनायें ,उम्मीद करता हूँ उन्हें(कवियों को ) बुरा नहीं लगेगा - (1) "जनता ने नेता से हाथ जोड़कर पुछा - माई-बाप ,क्या आप भी यकीन करते हैं समाजवाद में? नेता ने मुर्गे की टांग चबाते हुए कहा- पहले हम समाज बाद में। " (२) "एक अति आधुनिका कम -से-कम वस्त्र पहनने की करती है अपील और पक्ष में देती है ये दलील कि - 'नारी की इज्ज़त बचाने का यही है अस्त्र , तन पर धारो कम - से-कम वस्त्र। फ़िर पास नहीं फटकेगा कोई पापी दुशासन जैसा जब चीर ही ना होगा तन पर तब , चीरहरण का डर कैसा'।" (3) देख सुंदरी षोडशी मन बगिये खिल जाए मेंढक उछलें प्यार ...