ये हिंदू प्रेत्तात्मा है...जीसस से नही डरेगी.

पिछले दिनों यूनिवर्सिटी के पास ही फिल्मिस्तान सिनेमा हॉल में हाल ही में आई फ़िल्म"१९२०" देखने गया था। इस फ़िल्म को देखने के पीछे दो मोटिव थे,पहला तो ये कि,मुझे होरर(भुतिया)फिल्में पसंद हैं ,दूसरा ये कि ,इस फ़िल्म में पंडित जसराज ,परवीन सुल्ताना ,शुभा मुदगल जैसे आर्टिस्टों ने गीत गाया था। खैर, गीतों के साथ -साथ जिस तरह के माहौल को मैंने वहां देखा तो लगा कि सही में अपने यहाँ वाले दर्शक जैसे ही होंगे (श्याम चित्र मन्दिर टाइप)। अब बातें फ़िल्म की -दरअसल ये कहानी एक ऐसे जोड़े की है जो एक पुरानी हवेली में इस इरादे से आता है कि उसे तोड़ कर वहाँ एक होटल बनाया जा सके। हवेली अभिसप्त है ,भुतिया है। यहाँ आए पहले दो लोग संदिग्ध स्थितियों में मारे जा चुके हैं। ये जोड़ा (नायक-नायिका)इस बात से बेखबर है। वैसे एक ध्यान देने वाली बात ये है कि हीरो ,जो की हिंदू है एक अनाथ लड़की(हिरोइन) से अपने घर परिवार धार्मिक संस्कारों से टकराकर शादी करता है। लड़की चूँकि ईसाई है और उसकी परवरिश भी चर्च में हुई है तो उसकी निष्ठा अभी इश्वर में है।पर कहानी ये नहीं है । दरअसल हिरोइन उस प्रेत्तात्मा के जड़ में आ जाती है और उसके निदान हेतु वह पास के गावं में रह रहे पादरी से संपर्क करती है। पादरी हिरोइन की हवेली में आता है और अपने तंत्र -मंत्र (ईसाईयों के धर्मग्रन्थ बाईबल के अनुसार)से कुछ जुगत करता है जिससे कि हिरोइन का जीवन सही तरीके से चले मगर असली ट्विस्ट यहीं से शुरू होता है। फ़िल्म में एक से बढ़कर एक घटनाएं होने लगती हैं और दर्शकों को भूत के तरह-तरह के कारनामें देखने को मिलते हैं।

भूत पादरी के क्रास को उल्टा कर देता है ,पादरी उसे एक बार ठीक करता है मगर व्यर्थ क्रास फ़िर उलट जाता है। अब सिनेमा हाल में मुझे एक नए किस्म का कम्मेंट सुनने को मिला-"ये हिंदू भूत है फादर से नही भागेगा " या "फादर की फट गई "जैसे कुछ अन्य विशेष शब्द भी। मैं ही नहीं मेरे साथ के सभी लोग चौंके ,कि ये क्या कहा उसने?मगर परदे पर घट रहा हर दृश्य यही दिखा रहा था लोग-बाग़ भी उसे इसी चश्मे से देख रहे थे। अब फ़िल्म देखने का जोश ही ठंडा पड़ गया। हिंदू भूत दर्शकों को ज्यादा फैमिलिअर लगने लगा था ,ये भूत भी हीरो का कुछ नहीं कर रहा था बल्कि हिरोइन का ही बुरा कर रहा था (हिरोइन का नाम फ़िल्म में लिजा है)।फ़िल्म के अन्तिम दृश्य में हीरो ही आख़िर में इस हिंदू भूत से पार पाता है।इस अन्तिम दृश्य में पादरी हार चुका होता है और हीरो अपनी नायिका को बचाने के लिए "हनुमान चालीसा" का पाठ करता है और भूत भाग जाता है। दर्शकों में से फ़िर आवाज़ उठी कि 'देखा...था ना हिंदू भूत ,"साथ ही 'जय श्रीराम 'का नारा भी गूँज गया ।

मैंने सोचा 'यह भी खूब रहा ,आया सिनेमा देखने और दिख गई वर्तमान राजनीति की झलक।'-आज के अखबार में भी २ ईसाइयों के मार दिए जाने की ख़बर है(देहरादून में)। इससे पहले उडीसा ,कर्नाटक और मध्यप्रदेश की घटनाओं को बीते अभी ज्यादा दिन नहीं हुए(पता नहीं ये बीती घटनाएं हैं या फ़िर तूफ़ान के पहले की खामोशी है)। क्या वाकई जीसस से ये भूत नहीं जाएगा ?शयद नहीं ही क्योंकि उस महान आत्मा ने चीख कर कारण बता ही दिया था कि ये प्रेत्तात्मा तो हिंदू है तो इसका इलाज़ जीसस के पास नहीं है जीसस तो इससे तो हारेगा ही। क्या हनुमान चालीसा ही इसका उपाय है ?अगर हाँ..तो फ़िर क्या समझा जाए कि बजरंगी सेना यही कर रही है पर ईसाई भूतों (इंसानों )के साथ । जो भी हो निर्माता ,निर्देशकों ने सिनेमा में गलती से ही सही मगर अपना स्टैंड दिखाया है कि ये फ़िल्म सबके लिए नही है यही समझा जाए क्या या फ़िर उस सिरफिरे दर्शक की बेवकूफी समझ कर भूल जाया जाए?मैं तो सोच रहा हूँ कि अगर इस प्रेत्तात्मा ने गलती से मुझे पकड़ लिया तो मैं कैसे बचूंगा मुझे तो ये 'हनुमान चालीसा'भी नहीं आती।

Comments

jitendra said…
doosre part me togadiyaa bhi aayegaa Aur Bolegaa Dharmaantaran ke khilaap meri aawaaz hain jai shri ram
फि‍ल्‍में भी कहीं न कहीं एक वि‍भाजन पैदा कर जाती है।
pandit ji aapko darne ki jarurat nhi hai,yaad h maine apka kya naam rkha hai apne mobile main.
baharhaal hamare hindi cinema ke bhoot bhot intelligent hai. ye bhoot ,bhoot nhi hai hindi cinema ka vo shrap hai hai jo ramsay ki filmo se lekar aaj tak keval sunder aur kamuk abhinetriyo ko hi apne changul main jakadta hai.

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