एक थे भिखारी ठाकुर.....

भोजपुरी अंचल के लोगों में भोजपुरी के शेक्स्पीअर भिखारी ठाकुर कितने भीतर तक पैठे हुए हैं,ये उन्ही लोगों से पूछिए। मेरा भिखारी ठाकुर के रंगकर्म पर इन्ही दिनों में काफी कुछ पढ़ना हुआ ,देखना भी हुआ। उनमे से आपके लिए भी कुछ ........ । ताकि आप भी जान पाये इस महान लोक-कलाकार को।



भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे एक साथ ही कवि,गीतकार,नाटककार,नाट्य-निर्देशक,लोक-संगीतकार,और कुशल अभिनेता थे, यानी जैक ऑफ़ आल ट्रेड्स ।भिखारी ठाकुर ने जहाँ अपने से पूर्व से चली आ रही परम्परा को आत्मसात किया था,वही उन्होंने आवश्यकतानुसार उसमे संशोधन-परिवर्धन भी किया। वे स्वयं में एक व्यक्ति से बढ़कर एक सांस्कृतिक संस्था थे। रामलीला ,रासलीला ,जात्रा,भांड,नेटुआ,गोंड.आदि लोक-नाट्य-विधाएं भिखारी के प्रिया क्षेत्र थे। साथ ही,उन्होंने परम्परागत ,पारसी,एवं भारतेंदु के नाटकों से भी प्रभाव ग्रहण किया था। भिखारी ठाकुर ने पारंपरिक नाट्य-शैली से सूत्रधार ,मंगलाचरण तथा अन्य रुढियों को भी कुछ ढीले -ढाले ढंग से स्वीकार किया और विदूषक के बदले "लबार"जैसे पात्र को लोगों के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत किया। मंचीय-व्यवस्था तथा साज-सज्जा सम्बन्धी नाट्य लेखकीय निर्देशों को मंचन -व्यवस्था की स्थानीय सुविधा पर छोड़कर भिखारी ठाकुर ने मुक्त-मंचन को प्रोत्साहित किया।

भिखारी ठाकुर ने समाज के उपेक्षित एवं दलित-शोषित वर्ग से कलावंत व्यक्तियों का चयन किया। विभिन्न नाटकों में सूत्रधार के विशिष्ट वेश-भूषा में तो भिखारी स्वयं आते थे,प्रवचन करते थे और भजन आदि प्रस्तुत कर वातावरण का निर्माण करते थे;किंतु विभिन्न नाटकों में वे अभिनेता के रूप में भी आते थे,जैसे -'गबर्घी चोर'में पञ्च,'बेटी वियोग'में पंडित,'राधेश्याम बहार'में बूढी सखी ,तथा 'कलयुगी प्रेम' में नशाखोर पति आदि। भिखारी ठाकुर ने अपने 'तमाशों '(लोक-नाटकों)के प्रस्तुतीकरण में भी नए-नए प्रयोग किए । भिखारी ठाकुर के नाटकों की प्रस्तुति के समय किसी खाली मैदान ,बगीचा या दालान के सामने शामियाना लग जाता था। कुछ समतल चौकियां आपस में सटा-सटाकर रख दी जाती थी और उस पर दरी और सफ़ेद चादर (सफेदा)बिछा दी जाती थी । मंच के पीछे कनात या सफेदा टांग दिया जाता था। मंच पर दांयी ओर वाद्य-वृन्द के साथ सभी वादक स्थान ग्रहण कर लेते थे। मंच के तीन ओर दूर-दूर तक दर्शक-श्रोता बैठ जाते थे। पेट्रोमेक्स,डे-लाइट जला कर स्थान-स्थान पर टांग दिए जाते थे और तब लोक कलाकार भिखारी ठाकुर सूत्रधार की भूमिका में मंच पर पधारते थे। यह खुला मंच प्रयोग भिखारी ठाकुर ने संभवतः विश्व में पहली बार किया था। साथ-ही-साथ,नाटक के प्रस्तुतीकरण के क्रम में जब-तब दर्शकों से अभिनेताओं का सामयिक,प्रासंगिक एवं विनोदात्मक संवाद भी होता रहता था,जो नाट्य-प्रस्तुति में दर्शकों की सार्थक एवं सक्रिय भागीदारी का विरल उदाहरण प्रस्तुत करता था।
एक तो यों ही लोकनाट्य में रंगमंच ,प्रसाधन,बैक -ग्राउंडसिन-सीनरी,ग्रीन रूम आदि आग्रही नहीं रहते लेकिन भिखारी ठाकुर इससे भी दो कदम आगे थे। एक अलग टेंट की व्यवस्था हुई तो ठीक नहीं तो मंच के एक कोने में कोई कपड़ा तान लिया ,प्रसाधन परिवर्तन कर लिया गया,मेक-अप हो गया,प्रशिक्षण भी दे दिया गया,मंचन के दौरान प्रयोग में आने वाले साज-समान की व्यवस्था भी कर ली गई,निर्देशन भी चलता रहा ,पात्रानुकूल अभिनय भी होता रहा ,संगीत की रसभरी गगरी भी छलकती रही और मन भी बोझिल नही हुआ कि'लबार'(विदूषक)टपक पड़ा और ठहाकों का समंदर लहरा दिया।
(सहायक सन्दर्भ:-बिदेसिया.कॉम,भिखारी ठाकुर रचनावली आदि)

अगली पोस्ट में पढिये भिखारी ठाकुर के रंगकर्म का एक और पहलू...तब तक मुसाफिर को इजाज़त दीजिये.....

Comments

बहुत अच्‍छी जानकारी दी। अगला अंक शीघ्र पोस्‍ट करें, साथ ही इनका जीवन काल भी बताऍं। शुक्रि‍या।
बढ़िया।
कृपया इसे पढ़ें

किताबों की बात-2: भिखारी ठाकुर पर "सूत्रधार"

http://sanjeettripathi.blogspot.com/2008/05/sootradhar-on-bhikhari-thakur.html
आप ने भिखारी ठाकुर के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ा दी है।

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