भावी ब्यूरोक्रेट्स के दिमाग में घुसा गोबर


कल से डीयू के क्रिश्चियन कालोनी में एक नौटंकी शुरू हो गयी है.जैसा कि आप सभी जानते हैं पटेल चेस्ट का यह इलाका मशहूर है इस बात से कि यहाँ से छोटे-छोटे शहरों से पढ़ कर आये बच्चे प्रशासनिक सेवाओं में जाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं.शायद इसीलिए इस जगह को प्रशासनिक सेवाओं में जाने वालों की फैक्ट्री कही जाती है.आंकडे जैसा बताते हैं कि इस कालोनी में दड़बेनुमा कमरों में लगभग ४००० से अधिक युवा अपनी ज़वानी को एक लक्ष्य के पीछे गला रहे हैं.इनके लिए रात-दिन का मतलब नहीं है.इनके डिस्कशन में अभी तक हमें देश-दुनिया की हलचलें ही सुनने में आती थी.डीयू के पीजी होस्टल्स में रहने वाले स्टूडेंट्स किसी बात की तथ्यात्मकता बताने के लिए यह कह देते रहे हैं कि 'भाई मेरी बात पे भरोसा ना हो तो पटेल चेस्ट /क्रिश्चियन कालोनी के लड़कों से पता कर लो'-पर अब यह स्थिति पिछले दो दिनों से बदली हुई है और रात भर जागने वाला यह इलाका आजकाल इधर-उधर मुहँ छुपाता फिर रहा है.पुलिस की दबिश इलाके में बढ़ गयी है और हमारे कल के ब्यूरोक्रेट्स आसपास के अपने अन्य मित्रों के यहाँ सिर छुपाते फिर रहे हैं..कुछेक की तो गिरफ्तारी भी हुई है पर यह नहीं पता चल पाया है कि वह वाकई स्टूडेंट्स थे या इन स्टूडेंट्स को भड़काने वाले खलिहर लोग.
हुआ यूँ कि दो दिन पहले क्रिश्चियन कालोनी के एंट्रेंस गेट पर किसी सिरफिरे ने कहीं से एक मूर्ति लाकर (रातों-रात)रख दी.पता नहीं इससे उसका क्या भला होने वाला था या किसी सो कॉल्ड ज्योतिषी ने बता दिया था कि ऐसा करने से शायद उसका सेलेक्शन देश की सर्वोच्च मानी जाने वाली सेवा में हो जायेगा.ध्यान रहे कि कुछ ही दिनों में सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा के परिणाम आने वाले हैं.बहरहाल,यह इलाका घोषित तौर पर ईसाईयों का है और पता नहीं कबसे इनकी आबादी यहाँ बसी हुई है,ये यहाँ पर अपनी दुकाने चलाते हैं,जिनमें जैसा कि जाहिर ही है कि स्टेशनरी और प्रतियोगी परीक्षाओं के सामग्री ही मिलती है.ये सायबर कैफे ,पीसीओ बूथ चाय-बिस्कुट से लेकर पान-सिगरेट,जेरोक्स इत्यादि की दुकाने चलाते हैं,इनके सबसे बड़े ग्राहक यहाँ दडबों में रहने वाले छात्र ही होते हैं.यहाँ ईसाईयों का एक बड़ा कब्रिस्तान और एक गिरिजाघर भी है.इस मूर्ति के रखे जाने के बाद यहाँ के शांत माहौल में एकाएक गर्मी आ गयी है और यह स्वाभाविक भी है.इस मूर्ति को लगे चंद घंटे ही बीते थे कि किसीने मूर्ति हटा दी.अब क्या था इस काम का होना था कि हमारे भीतर का काला बन्दर तुंरत कुलांचे मारता हुआ इन भावी ब्यूरोक्रेट्स के भीतर समा गया और इन लोगों ने तुंरत ही हिन्दू धर्म के तथाकथित रक्षकों को बुला लिया और उनके नेतृत्व में बगल में ही रह रहे पादरी के घर पर रात में धावा बोला और जो कुछ कहा बस समझ ही लीजिये.स्थिति की नजाकत को समझते हुए पादरी ने हाथ जोड़ दिए और ये लोग जयकारा लगाते उसी गेट की ओर लौट आये.
मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ है उसी समय मूर्ति की स्थापना वहा हुई और दो-चार नौजवान जिन्हें अपना इहलोक सुधारने की चिंता रही होगी (?)वही धर्मरक्षा में सोये भी.बजरंगी बाबाओं और शिव के प्रतापी सैनिकों ने अपना तेज़ दिखाया और चल दिए या शायद वहीँ मंडरा रहे हैं पर कमाल देखिये कि हमारी प्रिय दिल्ली पुलिस का मौरिस नगर थाना ठीक इस गेट के सामने है और पादरी वाला काण्ड १५-२० पुलिस वालों के सामने हुआ था.एक प्रत्यक्षदर्शी नौजवान जो उसी कालोनी में रहता है वह ख़ुशी-ख़ुशी बता भी रहा था कि'भैया साले पुलिस वालों की हिम्मत नहीं हुई रोकने की हीहीही ...लड़के ज्यादा थे ना इसीलिए वो खाली मैनेज कर रहे थे."अब आज की स्थिति ये है की 'जौ के साथ घुन भी पिस रहा है,यानी जो इस काण्ड कुकर्म में शामिल नहीं हैं उनकी भी धर-पकड़ चल रही है.मैं सोचता हूँ कि अच्छे ब्यूरोक्रेट्स निकलेंगे यहाँ से..जिनके इतना पढ़-लिख लेने के बावजूद भी उनके दिमागों में कूड़ा ही भरा है.ऐसी ही कन्डीशन रही तो यही बाद में आदमियों को खाने वाले नेताओं के हथियार बनेंगे.और हंसी इस बात पर भी आ रही है कि छतीस करोड़ देवताओं को जो हमेशा स्वर्ग की सुन्दर-सुन्दर अप्सराओं से घीरे होते हैं,जहां रास-रंग खुशियाँ ही हर ओर बरसती हैं(?) उनके रहने की जगह अब किसी कालोनी का एंट्रेंस गेट ही बचा है.इससे पहले भी सडकों के बीच में विभिन्न धर्मात्माओं ने अपने-अपने प्रार्थना-घर बनाए थे अब ये ऐसे जगहों पे भी होने लगा.अब उस गेट पर खड़े होने वाले रेहडी वाले,ठेले वाले किधर जायेंगे,कोई भिखारी भीख कहाँ मांगेगा?वहाँ जो आस-पास आवारा पशु-जानवर कुछ-कुछ किया करते थे वह बेचारे किधर जायेंगे?भगवान जी(?) के लिए कोई माकूल जगह नहीं बची है क्या?या यह समझा जाए कि अब सिविल सेवा के लिए मेहनत नहीं बल्कि इसी तरह के नौटंकियों की जरुरत है....? ये तमाशा लंबा ना खिंचे तो ही अच्छा है पर इस मानसिकता का क्या करें..." इंडिया के नक्शे पर गाय ने गोबर कर है वर वह अब हमारे दिमाग तक चढ़ आया है"

Comments

जेएनयू आने से पहले मैं भी क्रिस्चियन कोलोनी में रहा करता था. उन दिनों की कई ख़ूबसूरत यादें साथ हैं.
बहुत दुःख हुआ सुनकर ये सब.

Popular posts from this blog

विदापत नाच या कीर्तनिया

लोकनाट्य सांग

लोकधर्मी नाट्य-परंपरा और भिखारी ठाकुर : स्वाति सोनल