हीरा मन अभिनेता : पंकज त्रिपाठी


एक बेहतर अभिनेता वह है जो अपने रचे हुए फार्म को बार बार तोड़ता है, उसमें नित नए प्रयोग करता है और अपने दर्शकों, आलोचकों, समीक्षकों को चौंकाता है। अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने लगातार इस तरह के प्रयोग करते हुए अपने ही रचे फार्म को बार-बार तोड़ा है। आप हमेशा पाएंगे कि इस अभिनेता का काम कैसे एक से दूसरे में अलग तरह से ही ट्रासंफार्म हो जाता है और वह भी सहज सरलता से दिखता हुआ लेकिन जादुई तरीके से आपको ठिठकने पर मज़बूर करता हुआ लेकिन आपकी आंखों और होंठों पर आश्चर्यमिश्रित मुस्कान के साथ। यानी नरोत्तम मिश्रा के सामने मुन्ना माइकल का गुंडा और नील बट्टे का प्रिंसिपल, सुल्तान से कैसे जुदा हो जाता है वैसे ही तीन ग्रे शेड्स वाले अलग किरदार पाउडर का नावेद अंसारी, गुडगाँव का केहरी सिंह और मिर्ज़ापुर के अखंडानंद त्रिपाठी एक खास मनोवृति के दिखने वाली दुनिया में रहते हुए पर्दे पर नितांत अलग-अलग हैं और जब मैं अलग कह रहा हूँ तो वह ठीक पूरब और पश्चिम वाले अलग हैं। यह अभिनेता पंकज त्रिपाठी के अभिनय शैली की उत्कृष्टता के विभिन्न सोपान और छवियाँ हैं। अब The Man मैगज़ीन ने पंकज त्रिपाठी के व्यक्तित्व का एक अनूठा पहलू सामने पेश किया है। मैं मजाक में कहता था कि नावेद अंसारी के कपड़े पहनने और देहभाषा के तरीके को कईयों ने नोटिस किया और अपनाया था पर कायदे से 'द मैन' मैगज़ीन टीम ने पंकज त्रिपाठी के इस पहलू को पहचानकर उन तमाम आलोचकों के मुँह पर ताला जड़ दिया है जो इस अदाकार को एक खास फ्रेम में देखने की जुगत में थे। यह अभिनेताओं का दौर है । यह हमारे जीवन वन के वह फूल हैं जो निश्चित ही ड्राइंग रूम और बालकनी के फूलों से अधिक खुशबू दे रहे हैं, यही इनकी विशेषता भी है, यह वनफूल अकेले नहीं महकते, इनकी खुश्बू में प्रकृति नर्तन करती है। कहते हैं वनबेला फूलती है तो समूचा वन महकता है और जब समूचा वन महकता है तो प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में होती है. तो दोस्तों! यह वनबेला के फूल के खिलने, सुवाषित होने की रुत है इस मैगज़ीन की स्टोरी से उल्लसित होइए, यह पढ़ने से अधिक महसूसने की बात है। पंकज भैया इसी सुंदर का स्वप्न हैं। यह फ़ोटो कई मामलों में विशेष है। इस अंग्रेजी मैगज़ीन के कवर को देखिए इसकी जबान भी भारत के सुदूर देहात के लिए अबूझ दुनिया का जादुई लोक है। इस पर छपे हर्फ़ ही केवल अतिशयता का संसार नहीं रचते बल्कि तस्वीरें भी लौकिकता से ऊपर उठती जान पड़ती हैं। और हुजूर इल्म से शायरी बेशक न आती हो लेकिन देखिए इल्म, प्रतिभा और मेहनत का सुंदर संगम हो तो ऐसे दूर के जादुई लोक को अपने भीतर रखे हर्फ़ वाले आम मानस में अलग तरह से बैठे मैगज़ीन भी जनता के अभिनेता, कलाकार को, सोने के दिल वाले हिरामन को अपने कवर पर रखते हैं, गौरवान्वित होते हैं कौन कहता है कि पंकज त्रिपाठी नाम के इस अभिनय की पाठशाला व्यक्तित्व का आयाम केवल मसान, नील बट्टे सन्नाटा, बरेली की बर्फी, गैंग्स ऑफ वासेपुर, मैंगो ड्रीम्स, गुड़गांव, पाउडर, मिर्ज़ापुर, योर्स ट्रुली तक ही है। यह तस्वीर बयान कर रही है कि पंकज त्रिपाठी की प्रतिभा और उनके डिफरेंट शेड्स किसी भी भाषायी और क्षेत्रीय पहचानों से ऊपर अब अंतरराष्ट्रीय पटल और कई अन्य भाषा भाषियों के कला के अन्य रूपों में कार्यरत और चाहने वाले लोगों में है। यह मैगज़ीन और इसके कवर पर अंकित छवि केवल किरदारी मामला नहीं है बल्कि यह कह रही है कि उस अभिनेता के मैनरिज्म का यह पहलू आपने नहीं देखा तो अब तक क्या देखा , तो देखिए स्टाइल, चलने का ढंग, वह ठसक, राजस, फिर भी आपका अपना। बहुत कम कलाकारों को अपने चाहने वालों का यह भरोसा नसीब होता है कि वह कुछ करे और घर के बड़े पूछे ये वाला कलाकार कह रहा है तो कुछ बात होगी। यह एक मैगज़ीन के कवर ब्यॉय की तस्वीर भर नहीं बल्कि एक कलाकार के बहुआयामी व्यक्तित्व की एक और पड़ताल है और यकीन जानिए इस तस्वीर और कवर स्टोरी ने कई गुदड़ी के लालों को सुंदर का सपना देखने को प्रेरित किया है। कस्तूरी सरीखे महकते रहिये, इस संसार को थोड़े सुगंध की जरूरत है यह वाकई वनबेला के फूलने की रुत है। अभी तो फसाने और आने हैं.  यह बरसात की पहली बूंद के धरती पर उतरने और उसकी सोंधी सुगंध के चहुं ओर फैलने की मानिंद है। ''इस खुशबू को पेट्रिकोरकहते हैं, जो ग्रीक भाषा के शब्द पेट्रा से बना है, जिसका अर्थ स्टोन या आईकर होता है, और माना जाता है कि यह वही तरल है, जो ईश्वर की नसों में रक्त के रूप में बहता है।'' यह कलाकार और उसकी अलग छवियाँ अपने ईमानदार काम से ईश्वरीय नसों में रक्त की मानिंद संचरणशील है। वह बरसात की वही सोंधी गंध है जो आपके नथुनों में उतरते ही आपकी जड़ता तोड़ अपनी ओर खींच लेता है। मैं सोचता हूँ, इन सबसे परे इस बदलाव और लंबी यात्रा के पीछे की प्रेरक कहाँ है? मेरे एक और अज़ीज़ रंगकर्मी हबीब तनवीर के मशहूर नाटक 'कामदेव का अपना, बसंत ऋतु का सपना' का गीत उनके लिए याद आ रहा है जो इस हीरा-मन कलाकार के पीछे चुपचाप मुस्कुराती प्रेरणा शक्ति बन खड़ी हैं और पंकज त्रिपाठी की सफलता की आधी हकदार उनकी जीवन संगिनी मृदुला त्रिपाठी के लिए सच में यही गीत इस वक़्त मुझे सबसे मुफीद लगता है -
"
मुझे पता है मेरे बन की रानी कहाँ सोई है/
जहाँ चमेली महक रही है और सरसो फूली है/
जहां कनेर के पेड़ पे, पीले - पीले फूल सजे हैं/
आस - पास कुछ उगे फूलों की भी बेल चढ़ी है/
जहां गुलाब के, गुलअब्बास के फूल ही फूल खिले हैं..."
यह वाकई उसी वनबेला के फूलने का समय है।
शुक्रिया

Image may contain: Pankaj Tripathi, text



Comments

lakshaquidley said…
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