गायकी में जल्दबाजी नहीं चलती - भरत शर्मा 'व्यास'


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भोजपुरी में निर्गुण गायकी की लंबी परंपरा रही है और भरत शर्मा 'व्यास' लम्बे समय से भोजपुरी निर्गुण गायकी के सिरमौर बने हुए हैं. जिन दिनों भोजपुरी कैसेट्स के वसंत में सब नए-पुराने गायक रंगीला-रसिया हुए जा रहे थे, उन दिनों भी भरत शर्मा ने अपनी गायकी से समझौता नहीं किया. उन्होंने अपनी गायकी को एक स्तर दिया और भोजपुरी लोकसंस्कृति को गुलजार किया. जो आज तक बदस्तूर जारी है. भरत शर्मा के प्रशंसक उनको प्यार से व्यास जी कहकर बुलाते है. पत्रकार निराला कहते हैं - 'भरत शर्मा उस मिथ को तोड़ते हैं जिसमें यह मान लिया जाता है कि भोजपुरी का मतलब केवल भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्र ही है. इसमें दो राय नहीं कि यह दोनो लीजेंड्स हैं पर व्यास जी ने भोजपुरी के तुलसीदास रामजियावन दास बावला और कबीर को गाने वाले राम कैलाश यादव की परंपरा में अपनी मजबूत जगह बनायी है. उनकी विशिष्टता इसलिए भी है कि उन्होंने फार्मूलाबाजी गायकी के पास जाना गवारा नहीं किया और फिर भी लोक में सबसे अधिक आदरणीय बने रहे. वह पीढ़ियों की थाती है.'  सच में, भरत शर्मा भोजपुरी गायकी में उस धारणा के बरक्स आइना लेकर खड़े हैं, जो यह मानती है कि भोजपुरी में एक ख़ास किस्म के गाने या गायकी ही चलती है और जिसमें द्विअर्थी या कभी-कभी एकार्थी शब्दों का चित्रहार बनाकर एक ख़ास ऑडिएंस को परोस दिया जाता है. भरत शर्मा के लिए ऑडिएंस की दीवार नहीं है, वह समान रूप से भोजपुरी में चौक से लेकर आँगन और ड्राईंगरूम तक में समान रूप से सुने जाने वाले गायको में से हैं. यही पर उन तमाम कुतर्कों की हवा फुस्स हो जाती है जो अपने तात्कालिक हितों के लिए गायकों और श्रोताओं का वर्गीय चरित्र बनाता है. पत्रकार उदीप्त निधि मुस्कुराकर कहते हैं - 'ऐसा इसलिए है कि व्यास जी भोजपुरी के 'आह-उह-आउच' जैसे हिंसक, आग लगाऊ गीतों के सामने सावन की फुहार सरीखे है.' भोजपुरी में ऐसे गायकों की एक लंबी रवायत रही है, कुछ गुमनाम रह गए तो कुछ बराए-मेहरबानी यू-ट्यूब के फिर से सामने आए हैं. भरत शर्मा आज भी सक्रिय हैं और साठ से उपर की उम्र में भी देश-विदेश में लगातार अपनी प्रस्तुतियाँ दे रहे हैं. पिछले वर्ष के 'आखर' के भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मलेन 8 पंजवार, सिवान में भोजपुरी के जिन बारह लीजेंड्स को लेकर एक कैलेण्डर भोजपुरिया स्वाभिमान कैलेण्डर 2018 डीजी गुप्तेश्वर पाण्डेय, विधान पार्षद डॉ. वीरेन्द्र यादव और रिटायर्ड आईपीएस, कवि ध्रुव गुप्त के हाथों जारी हुआ. इस वर्ष के इस कैलेण्डर में एकमात्र जीवित लीजेंड के तौर पर भरत शर्मा 'व्यास' की को रखा गया है. इसके पहले यह गौरव पद्मभूषण शारदा सिन्हा जी को मिला था. यह सही मायनों में भरत शर्मा के गायकी का सम्मान ही है कि उनकी जीवनी भी लिखी जा रही है. भोजपुरी के प्रवसन और श्रम संस्कृति के अध्येता और नेहरु मेमोरियल एवं उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व फेलो डॉ. धनंजय सिंह कहते हैं - भरत शर्मा की गायकी का दायरा विस्तृत है उसमें श्रृंगार और अन्य रसों के गीत तो है ही लेकिन मूल स्वर निर्गुण का ही है और शायद यही वजह है कि भोजपुरी के तमाम पुरुष गायकों में उनका सम्मान अधिक है'. जब जियो के फ्री वाले डाटा नहीं बंटे थे तब भी व्यास जी के गाये गीत 'गोरिया चाँद के अंजोरिया नियन गोर बाडू हो' और 'जबसे गवनवा के दिनवा धरायिल' भोजपुरी लोकजीवन में लोकप्रियता में  आसमानी हो गए थे. उनकी जीवनी लिख रहे पटना निवासी अंग्रेजी के युवा पत्रकार उदीप्त निधि ने इस आर्टिकल को तैयार करवाने में बड़ी भूमिका निभाई है. व्यास जी का साक्षात्कार उदीप्त निधि के सौजन्य से ही संभव हो सका है. पेश है भरत शर्मा 'व्यास' जी से हुई बातचीत के कुछ अंश -     
(1) व्यास जी आपका गायकी में आना किस तरह हुआ और शुरुआती दौर के बारे में कुछ बताइए.
भिखारी ठाकुर जी की मृत्यु 10 जुलाई 1971 को हुई थी और वह दिन सावन की अंतिम सोमवार था. मैं पुराने शाहाबाद के बक्सर जिले के सिमहरी प्रखंड के गांव नगपुरा का रहने वाला हूं.  उस दिन मेरे गांव में एक कार्यक्रम था जिसमें बहुत से कलाकार बाहर से आए थे. मैं भी उस प्रोग्राम को देखने गया था. वहाँ मुझे भी गाने का मौका मिला और जब मेरा गाना खत्म हुआ तो मुझे बहुत वाह-वाही मिली. मेरा मनोबल बढ़ा. मेरी गायकी में रुचि तो थी ही सो इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता था. उन दिनों कलकत्ते का क्रेज था वहाँ इधर के कुछ गायक सक्रिय थे. मैंने भी कलकत्ता जाने का तय कर लिया. माँ से 16 रूपये लिए और बक्सर से हावड़ा पहुँच गया.
कलकत्ते में मेरी मुलाकात कुछ व्यास लोगों से हुई
, जिनके सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला. वहाँ बहुत सालों तक रामायण गाया. फिर जब ऑडियो का जमाना आया तब मैंने अपने गाने रिकॉर्ड भी करवाने शुरु कर दिए. लोकगीत और भजन गायन से मैंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी. साल 1971 में गांव के एक कार्यक्रम से अपनी कैरियर की शुरूआत की थी.  जैसाकि मैंने कहा फिर मैं कलकत्ता गया, जहाँ बहुत कुछ सीखने को मिला.  1989 में सबसे पहली एल्बम 'दाग कहां से पड़ी' और 'गवनवा काहे ले अईलअ मेरी पहली एल्बम थी जो मैंने आर-सिरीज़ में रिकॉर्ड किया. उसके बाद टी-सीरिज से भी बहुत सारे एल्बम रिकॉर्ड किए.
व्यास जी आप भोजपुरी में लगभग साढ़े चार दशक से गायन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. शायद ही इतना लम्बा अनुभव किसी और के पास हो. आपके समय और अब के समय में भोजपुरी में आप क्या फर्क देखते हैं?
मैंने भजन, लोकगीत, निर्गुण और बहुत तरह के गीत गाए हैं और अब भी गा रहा हूं. पहले के लगभग सभी गायक ऐसे ही थे.  लेकिन अब भोजपुरी में भक्ति गीत और निर्गुण भक्ति गीत नहीं के बराबर और अश्लील गीत ज्यादा गाए जा रहे हैं. आज भोजपुरी गायकों में ऐसे गीतकार, गायक और कैसेट कंपनियों का दबदबा हो गया है जो अपने स्वार्थ के लिए मातृभाषा, धर्म, संस्कृति और ईमान, सब बेच चुके हैं. मुझे बहुत दु:ख होता है,जब कोई मेरी भोजपुरी को अश्लीलता की भाषा कहता है. एक अजीब और लिजलिजी किस्म की जल्दबाजी नए गायकों में है और वह गायकी से लेकर परदे तक है. हालाँकि उनमें कईयों की आवाज़ अच्छी है पर उनकी जल्दबाजी वाली फितरत ने भोजपुरी गायकी के लिए अच्छी स्थिति पैदा नहीं की है. सब एक ही ढर्रे पर हैं. यह स्थायी नहीं रह सकेगी. कालजीवी गायकी त्याग, गंभीरता  और साधना मांगती है. तभी आप अपनी संस्कृति का सही प्रतिनिधित्व कर सकेंगे. फ़िलहाल कोई सूरत नजर नहीं आती. मैंने मुन्ना सिंह, नथुनी सिंह को सुना है, पांडे नगीना और गायत्री ठाकुर जी जैसे लोगों के साथ काम किया है.  भिखारी ठाकुर जी के लय को भी फॉलो करने की कोशिश की और आज जब इन नए कलाकारों को देखता हूं तो दु:ख होता है. इन्होंने भोजपुरी का भाषा के तौर पर छीछालेदर कर दिया है. आप अबकी गायन को पहले से जोड़ ही नहीं सकते.
निर्गुण गायकी ही आपके गाने का आधार क्यों बना?
आपको बता दूं कि निर्गुण तो मैंने तब गाना शुरु किया, जब मुझे गाते हुए बीस साल हो चुके थे. पहले आप निर्गुण का अर्थ समझिए. जैसा कि भगवान कृष्ण ने बताया है कि मनुष्य के तीन गुण होते हैं, सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण. हर इंसान इन्हीं तीन गुणों के अनुसार अपना जीवन जीता है.
निर्गुण का अर्थ होता है आत्मा
, जिसके ऊपर किसी भी गुण का कोई असर नहीं होता. जो अब परमात्मा के अलावा कुछ नहीं जानता और सगुण जो है वह ठीक निर्गुण के उल्टा होता है.  हम जो जीवित, सांसारिक लोग हैं वो सगुण है. और ईश्वर प्राप्ति के लिए जो आत्मा है वह निर्गुण है.
मैंने शुरु से रामायण और शास्त्रवत गाया और पढ़ा. मुझमें वही संस्कार था.
 फिर कबीर को पढ़ा तब दिल में इच्छा हुई कि क्यों ना निर्गुण गाया जाए. भोजपुरी में निर्गुण उसके पहले बहुत कम या न के बराबर था.
मैंने पहला निर्गुण
'गवनवा के साड़ी' 1992 में टी-सीरिज के एल्बम में गाया. कोहलीजी ने पूछा ये क्या है. तब मैंने उन्हें समझाया. उन्होंने बहुत मुश्किल से इसके लिए हामी भरी. पर जब यह कैसेट बाज़ार में उतरा तो इसने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. इतना ही नहीं इसके बाद सभी कंपनियों ने अपने गायकों से निर्गुण गाने की शर्त रख दी. अभी तक निर्गुण के कुल 40 कैसेट बाजार में आ चुके हैं.

भोजपुरी गायन की विरासत कलकत्ता से भी जुड़ी है. आपकी भी इस दुनिया में एंट्री वहीं से हुई है. क्या अब के कोलकाता में तब के कलकत्ते जितनी भोजपुरी बाकी रह गई है?  

सन 71 में जब पहली बार यहां आया तब उम्र भी कम थी और तजुर्बा तो कुछ था ही नहीं. पर वहाँ कुछ लोग जैसे बच्चन मिसिर
, गायत्री ठाकुर, राज किशोर तिवारी जैसे लोगों का बहुत साथ मिला. कलकत्ता पहुंचने के अगले ही दिन हिन्दुस्तान मोटर्स कॉलोनी में रामायण का आयोजन था, जहाँ मैं भी दर्शक बनकर पहुंचा था.  
ब्रेक के दौरान वहीं पर आए एक आदमी ने मुझे पहचान लिया और पूछा कि कलकत्ता क्या करने आए हो.
मैंने जवाब दिया गाना सीखने, तो उन्होने मुझे उसी रामायण मंडली में गाने का मौका दे दिया.  फिर गाते गया और सीखते गया. अब वह दिन है और आज का दिन. जहाँ तक कलकते में तब जितनी भोजपुरी की बात है तो वह तो हमलोगों के पलायन का बड़ा केंद्र रहा है. अब वहाँ बड़ी संख्या में स्थापित भोजपुरिये हैं. कलकत्ता सांस्कृतिक रूप से भी बहुत उर्वर है.
आपको कभी ऐसा लगा नहीं कि अभी के ट्रेंड के अनुसार चलने में ज्यादा फायदा है?
कोई भी गीतकार या कलाकार फायदा-नुकसान का सोचेगा तो वह कलाकार नहीं व्यापारी कहलाएगा.
आप खुद भी देख लीजिए. कोई भी गायक जिसने क्षणिक लाभ यानी कुछ कागज़ के नोटो के लिए अश्लील गाने गाए हैं, उसका आज कोई नामलेवा नहीं है. मेरी शुरु से ऐसी प्रवृत्ति रही है कि मैंने जूझते कलाकार को आगे बढ़ाने का काम किया है.  चाहे वो गोपाल राय हों या कोई भी, सबको मैंने अपनी क्षमता भर मदद की है.
कुछ ऐसे भी हैं जिनका मैं नाम नहीं लूँगा, जिनको मैंने आगे बढ़ाया पर आज वह अश्लील गाने गाते हैं.
सामने अब मुझसे नज़रें चुराते हैं, शर्माते हैं. पर मैंने अपने जीवन में कभी ना गलत सोचा नहीं कभी किया.  हमारा नैतिक कर्तव्य है कि आने वाले पीढ़ी के लिए कुछ अच्छा छोड़ कर जाएं.
यह रास्ता कठिन है लेकिन स्थायी महत्त्व का है. इसके लिए बड़ा कलेजा चाहिए.
इधर लड़कियों में चन्दन तिवारी एक उम्मीद की तरह है, लालच वाले बाजार के सामने उसकी भी राह कठिन है लेकिन वह बेहतर कर रही है.
मुझे यह संतोष है कि आज से पचास साल बाद जब मेरी भावी पीढ़ी मेरे गीत सुनेगी तो मुझे गाली नहीं देगी. दूसरी बात संस्कारों की है.
मैंने शुरु से राम और कृष्ण को ही गाया है. कबीर को पढ़ा है. निर्गुण गाया है. इसलिए कभी दिमाग नहीं गया अश्लीलता की तरफ.  हां! जीवन में मौका बहुत मिला है, अश्लील गाने के लिए. मेरे कैसेट कंपनी वाले बोलते थे कि भरत जी कुछ चटकदार गाइए लोग पसंद करेंगे. बहुत बार तो प्रेशर भी किया गया पर मैंने झुकना नहीं सीखा है गलत चीज़ों के सामने.
आप आज भी लगातार शो करते हैं. विदेश तक शो करने जाते हैं. कोई ऐसा वाकया उन शोज के दौरान को जो आप कभी नहीं भूलना चाहेंगे.
देखिए, मेरी सारी गायकी, मेरे सारे कार्यक्रम, सब तो मेरे अपने ही हैं.  मैं हज़ारों जगह घूमा, गाया और लोगों को झुमाया. सब खास हैं, कुछ कम और कुछ ज्यादा नहीं. पर कुछ यादें जैसे मॉरिशस के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित होना खुशी देता है.  पर इन सब से बढ़कर मैं मानता हूं कि मेरे प्रोग्राम में जितने मर्द होते हैं, उनसे ज्यादा औरतें होती हैं.
आज बस मेरे ही कार्यक्रम में हमारी महिला श्रोताएं आती हैं.
 बाकी सब जो आज कल के गायक हैं, उनके शो में हिस्सा लेने से डरती हैं. यह  मेरी उपलब्धि है मेरी गायकी का सम्मान है. लोगों की आँखों में श्रद्धा देखता हूँ तो तमाम चीजें अलग हो जाती हैं और क्या चाहिए. ऐसा वह नहीं कह सकते जो ख़ुद तो गंदा गाते ही हैं, साथ ही साथ नाचने -गाने वाले हुडदंग मचाने वालों को भी अपने साथ स्टेज पर जगह देते हैं.  
मैं आज भी जूता पहन कर स्टेज पर नहीं जाता. जब भी गाता हूं तो बैठ कर गाता हूं. कोई अभद्र भाषा या व्यवहार करने वाला मेरे अगल-बगल भी नहीं रहता. भजन
, निर्गुण गाता हूं. महिलाएँ सुनती हैं, झूमती हैं.  यही मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है. कोई सम्मान इससे बढ़कर हो ही नहीं सकता. इसलिए मेरे लिए मेरा हर शो मेरे तमाम दर्शक मेरे लिए न भूलने वाले वाकये हैं, किसी को कम कह भी कैसे दूँ. सब यादगार लम्हें हैं. 
आपकी जीवनी लिखी जा रही है,  कुछ बताइए उसके बारे में.
मेरी लगभग आधी जीवनी वर्ष 2000 में ही मेरे मित्र गणेश दत्त किरण जी ने लिख दी थी. असमय उनकी मृत्यु हो गई. उसमें बहुत कम ही लिखा गया था. फिर कुछ लेखकों ने कहा कि वह लिखना चाहते हैं, पर नहीं हो पाया.
पिछले साल एक युवक
 उदीप्त निधि मुझसे मिलने मेरे घर आया और उसने आग्रह किया कि वो मेरी जीवनी लिखना चाहता है. वह युवा पत्रकार है.  “The TrickyScribeजो कि दिल्ली की एक अंग्रेजी मैगज़ीन है, उसमें पटना की तरफ से बतौर लीड रिसर्चर का काम करता है. भोजपुरी उनकी मातृभाषा है और डुमरांव इनका पैतृक घर. मैंने उन्हें अपनी जीवनी लिखने की अनुमति दी है और करीब 8 महीने से यह काम लगातार चल रहा है. मैं बता दूं कि लेखक भी दो तरह के होते हैं. एक जो कल्पना की दुनिया में डूब कर लिखते हैं और दूसरे वह जो रिसर्च करके डॉक्युमेंटेड फैक्ट लिखते हैं. उदीप्त दूसरी तरह के लेखक हैं. वह मेरी जीवनी पहले अंग्रेजी में लिख रहे हैं, फिर इसका हिन्दी वर्जन भी आएगा. उम्मीद है 4-5 महीने में यह पुस्तक मार्केट में आप सब के बीच होगी.
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भरत शर्मा व्यास के भक्ति गीतों के लिंक
 https://www.youtube.com/watch?v=d0IDoIO1LMA
https://www.youtube.com/watch?v=3EY-PoL0I_A
निर्गुण
https://www.youtube.com/watch?v=iASX3VdR9Y0
https://www.youtube.com/watch?v=4-fJAHGpaZQ
अन्य
https://www.youtube.com/watch?v=MrOpIrJnPnM
https://www.youtube.com/watch?v=Ltc9eMO4A2c



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