विश्वविद्यालय के चम्पू
आप सभी ने अपने अपने जिंदगी में यूनिवर्सिटी के एक से बढ़ कर एक चम्पू देखे होंगे .मगर आज
हम जिस तरह के विश्वविद्यालयी चंपुओं की बात कर रहे हैं वो कुछ विशेष प्रजाति के हैं। पहली प्रजाति वो है अपने अपने विभाग की सो कॉल्ड ब्रेकिंग न्यूज़ देते हैं .इनके सोर्स का पता नही होता ,और ये
जब भी कुछ मार्केट में उछालते हैं unhe सिर्फ़ जूनियर्स में अपना मार्केट बनाना होता है और एक और सीज़न ही इनका peek सीज़न होता है यानि नए बच्चों में अपना कोलर ऊँचा कैसे भी किया जाए .इस तरह के प्रयासों से ये अपने पर फोसला के मेंबरशिप के लेबल से छुटकारा पाना चाहते हैं .जो कि हर साल और भी तगडे गोंड sarikha चिपक जाता है.बहरहाल दुसरेवाले चम्पू डिपार्टमेन्ट में अपनी साख एक अजूबे कि तरह हर दिन नए तरीके से बनाते हैं यानि पढ़ाई तो खैर हो ही साथ ही जब तक टीचर्स डिपार्टमेन्ट में हो तब तक ये ऑफिस के बाहर खड़े होकर अपनी निष्ठा का परिचय देते हैं, वो अलग बात है कि टीचर्स ख़ुद ही इन्हे इग्नोर करते रहते हैं .ये कमाल के धैर्यवान होते हैं इनकी धैर्यता को शत शत नमन .तीसरे वो हैं जिन्हें बी बी सी यानि बिना बात चेप कहा जाता है,.इनका काम होता है मोबाइल कंपनियों के नए नए फ्री एस एम् एस पॉलिसी को लेकर जब चाहे अपनी सेवाएँ बिना मांगे अपने तथाकथित मित्रों को देते रहना अर्थात परेशां करते रहना ,(मेरे करीबी मित्रों कृपया आप दिल पे ना ले )ये चम्पू कभी भी अपने अपनेपन का एहसास करते रहते हैं मगर ये मेसेज पाने वालों पर क्या गुजरती है उसका वर्णन मुमकिन नहीं है,कभी कभी इतने प्यार कि वजह से मन करता है कि नम्बर ही बदल लिया जाए ,..मगर ये लोग पता नही कितनी श्रद्धा से जवाब कि उम्मीद भी करते हैं ,अब इन्हे क्या कहें कभी तो भाई मौके कि नजाकत समझो... अब बारी चौथे चंपुओं कि जो तो आते हैं यूनिवर्सिटी ,मगर दिन भर इधर उधर कि पार्टी पॉलिटिक्स के साथ साथ अपनी निष्ठा विक्की भइया की मूर्ति के पास बात कर अपनी एक अलग छाप बना जाते हैं.ये बंधूविवेकानंद जी के पास बैठ कर उनकामंजिल तक पहुचने से पहले तक का संदेस भी भूल जाते हैं या फ़िर उन्हें यहाँ बैठ कर उन्हें मंजिल ज्यादा करीब लगती है,(पता नहीं).खैर .आगे इन चंपुओं की लाइन बड़ी लम्बी हैं ,,तो छोडिये अपने अपने काम पर चलते हैं और इनको इनका काम करने देते हैं।चलिए एक बार इनके नाम का जैकारा लगाते हैं जय जय जय चम्पू महाराज ..न न न महाराजों कि जय ...
हम जिस तरह के विश्वविद्यालयी चंपुओं की बात कर रहे हैं वो कुछ विशेष प्रजाति के हैं। पहली प्रजाति वो है अपने अपने विभाग की सो कॉल्ड ब्रेकिंग न्यूज़ देते हैं .इनके सोर्स का पता नही होता ,और ये
जब भी कुछ मार्केट में उछालते हैं unhe सिर्फ़ जूनियर्स में अपना मार्केट बनाना होता है और एक और सीज़न ही इनका peek सीज़न होता है यानि नए बच्चों में अपना कोलर ऊँचा कैसे भी किया जाए .इस तरह के प्रयासों से ये अपने पर फोसला के मेंबरशिप के लेबल से छुटकारा पाना चाहते हैं .जो कि हर साल और भी तगडे गोंड sarikha चिपक जाता है.बहरहाल दुसरेवाले चम्पू डिपार्टमेन्ट में अपनी साख एक अजूबे कि तरह हर दिन नए तरीके से बनाते हैं यानि पढ़ाई तो खैर हो ही साथ ही जब तक टीचर्स डिपार्टमेन्ट में हो तब तक ये ऑफिस के बाहर खड़े होकर अपनी निष्ठा का परिचय देते हैं, वो अलग बात है कि टीचर्स ख़ुद ही इन्हे इग्नोर करते रहते हैं .ये कमाल के धैर्यवान होते हैं इनकी धैर्यता को शत शत नमन .तीसरे वो हैं जिन्हें बी बी सी यानि बिना बात चेप कहा जाता है,.इनका काम होता है मोबाइल कंपनियों के नए नए फ्री एस एम् एस पॉलिसी को लेकर जब चाहे अपनी सेवाएँ बिना मांगे अपने तथाकथित मित्रों को देते रहना अर्थात परेशां करते रहना ,(मेरे करीबी मित्रों कृपया आप दिल पे ना ले )ये चम्पू कभी भी अपने अपनेपन का एहसास करते रहते हैं मगर ये मेसेज पाने वालों पर क्या गुजरती है उसका वर्णन मुमकिन नहीं है,कभी कभी इतने प्यार कि वजह से मन करता है कि नम्बर ही बदल लिया जाए ,..मगर ये लोग पता नही कितनी श्रद्धा से जवाब कि उम्मीद भी करते हैं ,अब इन्हे क्या कहें कभी तो भाई मौके कि नजाकत समझो... अब बारी चौथे चंपुओं कि जो तो आते हैं यूनिवर्सिटी ,मगर दिन भर इधर उधर कि पार्टी पॉलिटिक्स के साथ साथ अपनी निष्ठा विक्की भइया की मूर्ति के पास बात कर अपनी एक अलग छाप बना जाते हैं.ये बंधूविवेकानंद जी के पास बैठ कर उनकामंजिल तक पहुचने से पहले तक का संदेस भी भूल जाते हैं या फ़िर उन्हें यहाँ बैठ कर उन्हें मंजिल ज्यादा करीब लगती है,(पता नहीं).खैर .आगे इन चंपुओं की लाइन बड़ी लम्बी हैं ,,तो छोडिये अपने अपने काम पर चलते हैं और इनको इनका काम करने देते हैं।चलिए एक बार इनके नाम का जैकारा लगाते हैं जय जय जय चम्पू महाराज ..न न न महाराजों कि जय ...
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