भोजपुरी फिल्मी गीतों की सही पहचान ....
कल जे० एन० यु० गया था .दोस्तों से हो रही चकल्लस के बीच एक महाशय ने ये कह दिया की "अजी आपकी ज़बान के गीतों में अश्लीलता ही अश्लीलता ही है "-उनकी ये बात मुझे चुभ गई .मगर क्या करता जिस तरह की भोजपुरी गीत पिछले एक दशक से ऑडियो ,विडियो माध्यम से हमारे सामने आ रहे है ..उनको सुन कर किसी की भी धारणा यही बनेगी। वैसे इस स्थिति के लिए भोजपुरिया समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है,उन्होंने भी इसी तरह के गीतों को बजने भी दिया और बजाया भी.और तुर्रा ये की अपनी ही पीठ ठोकते रहे की बहुत बढ़िया गीत है साथ ही ,थोडी ओढी हुई नैतिकता का दिखावा करते हुए ये भी कह देते रहे कि " ई स्साला गुडुवा(गुड्डू रंगीला ) अइसने गीत गवेला जे कि समाज में हमनी के सुन ना सकिले जा "-उन्हें ये पता है कि गाने अश्लील हैं .मगर इस पर विचार करने का समय उनके पास नहीं है कि कभी अपनी इस ज़बान के अच्छाइयों वाले उन गीतों के बारें में भी जाने जो वाकई भोजपुरिया संस्कृति कि अस्मिता कि पहचान हैं.आठवें दशक में आई कुछ भोजपुरी फिल्मों में भी कुछ गाने ऐसे थे ,जिन्हें सुन कर मन खिल उठता था ...जरुरत है उनकी पहचान कर एक बार फ़िर सुनने की .एक नज़र इन पर भी :-
१-"कहवां गईल लरिकैयाँ हो ,तनी हमके बता .... "(भइया दूज )
२-"ससुरारिया जएहा भइया धीरे धीरे "...(वही)
३-"इयाद रखिह ऐ जी इयाद रखिह हमरी पिरितिया तू याद रखिह "-(वही)
४-"केहू लुटेरा केहू चोर हो जाला आवेला जवानी बड़ा शोर हो जाला "-(धरती मैया )
५-"जल्दी जल्दी चला ऐ कहारा ,सुरुज दुबे रे नदिया ..-(वही )
६-"अरेरे ई का तू करे ला सांवरिया ? हो मारेल अ कांकरिया फ़ुट जाई हमरी गगरिया ना ..-(वही )
७-"मेला में सैयां भुलायिल हमार अब का करीं ?"-(गंगा किनारे मोरा गाँव )
८-"कहे के सब केहू आपण .आपण कहावे वाला के बा ?"-(वही )
९-"गंगा किनारे मोरा गांव हो ,घरे पंहुचा दा देबी मैया "..-(वही )
१०-"काहें जिया जरावेल अ ,चल दिहला मोहे बिसार के....."-(दूल्हा गंगा पार के)
-और भी हजारों भोजपुरी के गीत ऐसे हैं जिनकी संवेदनाये सीधे सीधे गांव से जुड़ती हैं। उनके बिम्ब ,रूपक ,सभी कुछ आस पास की मिटटी से लिए गए हैं। उनमें हमारा गांव खाकता है उनमें हमारी नदियाँ पोखर और तालाब झांकते हैं । राधेश्याम रसिया ,गुड्डू रंगीला जैसे कुछ भांड गवैयों को आप भोजपुरी गीतों की पहचान का गायक नहीं कह सकतें। हाँ- इन्होने जिस तरह के गीत गाये हैं उनसे हमारे गीतों की गरिमा घटी जरुर है मगर इसके किए जिम्मेदार भी हमी हैं वो नहीं जिन्होंने सीधे यही कह दिया की आपके गीत अश्लील हैं। जिस चुहल बाज़ी की बात आज के लौंडे भोजपुरी गीतों की करते हैं वो बड़े ही मर्यादित और निराले ढंग से एक गाने में कह दी गई है -"अपना छोडी से कर दा बियाह बुडवू येही फागुन में"-एक बात और ध्यान देने वाली है वो यह की ना सिर्फ़ ८० के दशक के गीत बल्कि आज के समय के जो सही गाने आ रहे है वो सत्ता ,राजनीति और समाज पर अधिक कटाक्ष करती हैं .इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए ,क्योंकि ये अपने स्वर और अर्थ में तीखे तेवर लिए हैं और कहने का ढंग भी बड़ा चुटीला है । आनंद मोहन और मनोज तिवारी जैसो के सभी न सही तो अधिकांश गीत ऐसे हैं जो मीनिंगफुल हैं .मेरे यह कहने के सन्दर्भ में इन दोनों गायकों के दो एल्बम "सांच कहबा अ जुटा खईबा (आनंद मोहन )और दूसरा मनोज तिवारी का "पूरब के बेटा "-हैं । कभी इन दोनों अल्बमो को सुनिए फ़िर अपनी राय बनाइये की क्या वाकई इन गीतों के तेवर अश्लीलता के हैं या फ़िर इनके कुछ और भी स्वर हैं ......
आगे पढिये भोजपुरी गीतों के और भी तेवर....
१-"कहवां गईल लरिकैयाँ हो ,तनी हमके बता .... "(भइया दूज )
२-"ससुरारिया जएहा भइया धीरे धीरे "...(वही)
३-"इयाद रखिह ऐ जी इयाद रखिह हमरी पिरितिया तू याद रखिह "-(वही)
४-"केहू लुटेरा केहू चोर हो जाला आवेला जवानी बड़ा शोर हो जाला "-(धरती मैया )
५-"जल्दी जल्दी चला ऐ कहारा ,सुरुज दुबे रे नदिया ..-(वही )
६-"अरेरे ई का तू करे ला सांवरिया ? हो मारेल अ कांकरिया फ़ुट जाई हमरी गगरिया ना ..-(वही )
७-"मेला में सैयां भुलायिल हमार अब का करीं ?"-(गंगा किनारे मोरा गाँव )
८-"कहे के सब केहू आपण .आपण कहावे वाला के बा ?"-(वही )
९-"गंगा किनारे मोरा गांव हो ,घरे पंहुचा दा देबी मैया "..-(वही )
१०-"काहें जिया जरावेल अ ,चल दिहला मोहे बिसार के....."-(दूल्हा गंगा पार के)
-और भी हजारों भोजपुरी के गीत ऐसे हैं जिनकी संवेदनाये सीधे सीधे गांव से जुड़ती हैं। उनके बिम्ब ,रूपक ,सभी कुछ आस पास की मिटटी से लिए गए हैं। उनमें हमारा गांव खाकता है उनमें हमारी नदियाँ पोखर और तालाब झांकते हैं । राधेश्याम रसिया ,गुड्डू रंगीला जैसे कुछ भांड गवैयों को आप भोजपुरी गीतों की पहचान का गायक नहीं कह सकतें। हाँ- इन्होने जिस तरह के गीत गाये हैं उनसे हमारे गीतों की गरिमा घटी जरुर है मगर इसके किए जिम्मेदार भी हमी हैं वो नहीं जिन्होंने सीधे यही कह दिया की आपके गीत अश्लील हैं। जिस चुहल बाज़ी की बात आज के लौंडे भोजपुरी गीतों की करते हैं वो बड़े ही मर्यादित और निराले ढंग से एक गाने में कह दी गई है -"अपना छोडी से कर दा बियाह बुडवू येही फागुन में"-एक बात और ध्यान देने वाली है वो यह की ना सिर्फ़ ८० के दशक के गीत बल्कि आज के समय के जो सही गाने आ रहे है वो सत्ता ,राजनीति और समाज पर अधिक कटाक्ष करती हैं .इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए ,क्योंकि ये अपने स्वर और अर्थ में तीखे तेवर लिए हैं और कहने का ढंग भी बड़ा चुटीला है । आनंद मोहन और मनोज तिवारी जैसो के सभी न सही तो अधिकांश गीत ऐसे हैं जो मीनिंगफुल हैं .मेरे यह कहने के सन्दर्भ में इन दोनों गायकों के दो एल्बम "सांच कहबा अ जुटा खईबा (आनंद मोहन )और दूसरा मनोज तिवारी का "पूरब के बेटा "-हैं । कभी इन दोनों अल्बमो को सुनिए फ़िर अपनी राय बनाइये की क्या वाकई इन गीतों के तेवर अश्लीलता के हैं या फ़िर इनके कुछ और भी स्वर हैं ......
आगे पढिये भोजपुरी गीतों के और भी तेवर....
Comments
aaj asslilta hi bhojpuri ke pahichan ban gail baa lekin sachaai e naikhe,
Aaaj bhi achaa geet baa aur kal bhi rahe
lekin aaj e bhid main kahi koo gail baa, aur aaj phir se bhojpuri muisc aur bhasa ke safsuthra dhang se samne lawe ke jimmedari humni nya pidhi ke logan per baa,
Humar aap se anurodh baa ki aap
www.bhojpuriexpress.com per aai aur humni ke mil jul ke yh bare main sakaratmak kadam uthawal jain
PankajPraveen
09350220974
www.bhojpuriexpress.com
अच्छा लागल. तनी ई बात तू बतियल त.