गवनवा के साड़ी के बहाने.....भोजपुरी गीत

९० के बाद के दौर में २-३ बड़े नाम भोजपुरी गायकी में सामने आए,इनमे मुन्ना सिंह (नथुनिये पर गोली मारे सैयां हमार हो ....-फेम ),भारत शर्मा 'व्यास'( गवनवा के साड़ी नैहर से आई ...-फेम)एवं बालेश्वर यादव जैसे कुछेक प्रमुख हैं । हालांकि इन सबो से काफ़ी पहले से ही बिहार कोकिला शारदा सिन्हा ने काफ़ी सुंदर और दिल को छु लेने वाले गीत गए। देखने वाली बात ये है कि इनके गीतों में फिल्मी ,नॉन फिल्मी ,त्योहारों के,और लोकगीत भी हैं । जब भारत शर्मा जैसे गायक सामने आ रहे और सराहे जा रहे थे ,उसी समय इनके समानांतर एक ऐसे गायकों का दल सामने आया जिसने भोजपुरी गानों का रूप ही बदल के रख दिया ।कमाल की बात तो ये थी कि इन्होने अपने अल्बमो के टाइटल भक्ति वाले रखने लगे ,मसलन शिव विवाह ,शिव कलेवा इत्यादि । ये दोनों एल्बम विजेंद्र गिरी के गाये हुए थे ,जो अपने एक गीत "लजाइन काहे खाई अपना भतरा के कमाई"के कारण काफ़ी मशहूर हुआ । इसी एल्बम को बाद में भोजपुरी दुगोला का सब टाइटल देकर फ़िर से मार्केट में उतारा गया था,जो फ़िर अपने एक दुसरे गीत जो इसी एल्बम के पहले वाले गीत (जिसका जिक्र हम पहले कर चुके हैं )का जवाब कह कर pracharit किया गया । इस नए वाले जवाबी गीत को गाया 'तपेश्वर चौहान ' ने और गाने के बोल थे ,"लजाई काहे खाई अपना भतरा के कमाई "-कहना ना होगा कि अपने इस तरह के बोलो के कारण इस एल्बम ने भोजपुरी जगत में तेजी से अपनी पैठ बनाई मगर इसका दूर का घाटा ये हुआ कि भोजपुरी गानों में अश्लीलता के वायरस यही से घुस गए ,जिनके परिणाम आने वाले वर्षों में काफ़ी ख़राब होने वाले थे ,जो हुए भी। फ़िर जो एक बार ये गाने बजने शुरू हुए तो फ़िर कुछ ज्यादा ही वाहियात सस्ते गायक जैसे 'गुड्डू रंगीला (हमरा हौऊ चाही-फेम),राधेश्याम रसिया ( खटिया बिछाके रजाई ओढाके हमरो फुला देला दम -फेम) इत्यादि उभर आए। इसी क्रम में महिला गायिकाए भी उभरी ,जिनका स्तर शारदा सिन्हा वाला नही था ,ना ही इनके गानों में वो बात थी ।हां मगर एक बात कमाल कि थी जो इनको प्रसिद्दि दिला गई वो थी इनकी उन्मुक्त गायकी । अब ये भी "लहंगा में फाट गईल बम "और 'बीचे फिल्ड में बिकेट हला के हमके नाच नाचावालस "जैसे गीत आने लगे,जो मानव मन कि दबी हुई कामुक कल्पनाओ को आनंद देते थे। इसके क्रम में अभी "सैयां फरालके पर फारता ",या फ़िर 'मार दा सटा के लोहा गरम बा '-आने रह गए थे ,जिन्होंने भोजपुरी गीतों की मिटटी दुसरे भाषा वालो की नजरों में ख़राब की । और अपनी भाषा के गीतों के स्तर को गिराती गई । दूसरो को कहने को मसाला मिल गया कि"वाकई बड़े गंदे गीत हैं इस ज़बान में"॥ हालांकि कल्पना और देबी कुछ बढ़िया गीत गा रही हैं, और कल्पना तो आजकल किसी चैनल पर लोक- गायिका बन के परफोर्म कर वाह-वाही लूट रही हैं। ये तो हुई मसाला गीतों की बात ,अब आगे पढिये भोजपुरी के असली चेहरे की पहचान लिए वो गीत जिनमे भोजपुरिया समाज की आत्मा निवास करती है.........तब तक अलविदा.....

Comments

मुन्ना पहली बार तुम्हारे ब्लॉग पर आया. बहुत अच्छा लगा. अच्छा विश्लेषण. मैं ख़ुद भोजपुरी गीतों का मुरीद हूं. और कभी न कभी बालेश्वर यादव और महेन्द्र मिश्र के गीतों पर काम ज़रूर करूंगा.

अच्छा विश्लेषण पढवाने के लिए शुक्रिया. और हां, जितनी जल्दी हो ट्रांस्लिट्रेशन से मुक्त होने की कोशिश करो.
pravin kumar said…
munnawa ree blog par bhojpuri ke tthetthi discorse kar ke bhai tu upkar kaile....joun sahas tu dekhaile uu naya rasta khol delash...keep it up
rakesh sir ,jarur koshish karunga aur aapki shikayat jaldi hi door kar dunga...abhi abhi to daudna shuru kiya hai...thanx
Anonymous said…
का रे मुन्ना भाई, ते ता मजाके मजाक में ढेर पढाई का ले ले . भोजपुरी के ब्लॉग बना के बहुत अच्छा काम कईले हा. बहुत बहुत बधाई होI
bhi, accha likha hai. bahut bahut dhanyawaad. maine bhi ek bhojpuri site banaya hai. link hai http:bhojpurimp3.blogspot.com aur http://bhojpurisongonline.blogspot.com

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