हम जो चलने लगे ..........बदलता सहेली गावं

एक जगह है सहेली । आप पूछेंगे ये कहाँ है ? सहेली मध्य प्रदेश के नागपुर- भोपाल हाईवे पर इटारसी से २२ किलोमीटर पर मुख्य मार्ग से २ कि .मी भीतर पश्चिम में स्थित है। मध्यप्रदेश के अन्य गांवो की तरह ही सहेली भी एक साधारण-सा ही गावं है। मगर हम बात कर रहे हैं,यहाँ रहने वाले समुदायों की। इस पंचायत के दायरे में ताकू ,केसला (कोरकू पुरा ),हिरन चापड़ा ,कतियापुरा आदि जगहे आती हैं। इस पूरे एरिया में मुख्यतः दो जातियाँ हैं-अहीर (यादव)और कोरकू (जनजाति) । जहाँ अहीर जाति के पास यहाँ की तक़रीबन सारी जमीन है,वहीँ कोरकू लोग इनकी जमीनों पर आश्रित रहे हैं । पंचायती राज-व्यवस्था में ये गावं आरक्षित घोषित हो गया और इसकी सरपंच अब एक कोरकू महिला "कुब्जा बाई" है काफ़ी समय तक यहाँ की स्थिति जस-की-तस रही है,क्योंकि अनपढ़ होने की वजह से 'कुब्जा बाई' को अपनी पूरी ताकत का पता नही था । अब चूँकि उप-सरपंच यादव समुदाय से ही बनते रहे हैं, अतः सारी मलाई कैसे खानी है या उसका बन्दर-बाँट कैसे होना है उन्हें बेहतर पता रहता था और हमारी 'कुब्जा बाई'कागज़ पर अंगूठा ही लगाती थी । खैर ,हमारा फिल्ड सहेली के आस-पास की उन संभावनाओ पर ध्यान दिलाना है जिसके सहारे कोरकू लोगों की दाल-रोटी चलती रही है ,(कमोबेश अब भी )चल रही है। सहेली से लगा है,सागवान का घना जंगल । कोरकू आदिवासी लोग हैं ,इनकी आजीविका अधिकांश खेती,जंगलों से चोरी की हुई लकडियों पर आश्रित रही है। इन लोगों में २०-२५ साल पहले एक प्रवृति रही थी वो ये कि ,पैसे बनाने के लिए कुछ भी करो.....तो पैसा कमाने के लिए ये एक जोखिम भरा और गैर-कानूनी काम करते थे । सुबह -सुबह ये लोग २-३ के ग्रुप में जंगल में निकल जाते । जंगल में सहेली से ३ किलोमीटर दूर सी.पी.ई .(सेंट्रल प्रूफ़ एस्टाब्लिश्मेंट)का ब्लास्टिंग एरिया है ,जहाँ आर्मी अपने बमों की टेस्टिंग करती है । ये हफ्ते में ४ दिन ब्लास्टिंग करते हैं ,और हमारे कोरकू भाई लोग वहां ब्लास्टिंग के बाद फैले गोला-गट्टू ,जिसमे ताम्बे ,लोहे ,पीतल आदि के टुकड़े मिलते है ,को आर्मी कि नज़रों से बचकर चुरा लेते या बीन लेते और इन्हे लोकल दलाल इनसे से खरीद लेते । ये काम इतना आसन नही है ,दरअसल इस काम का पहला खतरा आर्मी की तरफ़ से होता है जिनके अपने कायदे-कानून हैं । दूसरे इन सामानों को जंगल से निकालने में जंगलात वाले और लोकल पुलिस के अपने खतरे और ख़ुद के बनाये नियम हैं। तीसरा खतरा जो सबसे बड़ा है....वो है-जान का खतरा ,अपाहिज होने का खतरा । आज भी सहेली और इसके आस -पास के गावों में ऐसे कई आदिवासी नौजवान मिल जायेंगे ,जो अपनी अपाहिज जिंदगी महुआ (लोकल दारू)पीकर और अपने बीवी-बच्चो को पीटते -गरियाते बिता रहे हैं । इन आदिवासियों के बीने मेटालिक कचरों से सबसे बड़ा फायदा बीच के दलालों और उनके सफेदपोश ठेकेदारों को ही हुआ है,जो देखते-ही-देखते पास ही केसला और सुखतवा ब्लाक .तथा पास ही के बड़े शहर इटारसी में गाड़ी,मकान और ज़मीनों के स्वामी बन बैठे। बहरहाल हाल के वर्षों में एक नई बात जो मुझे दिखी है वो ये कि, पंचायती- राज का फायदा कितना हुआ ये तो 'कुब्जाबाई' नही जानती, मगर अब उसे ये पता है कि आदिवासियों के फायदे कहाँ और कितना है?और इनलोगों ने अपने जीवन-स्तर को सुधारने के लिए इन सारे टेढे -मेढे रास्तों से चलना छोड़ कर अब अपनी और सीधी राह चुनने की ठानी हैं ......और इस बार सहेली कुछ बदला-सा लग रहा है । एक घर से आती म्यूजिक कि आवाज़ ने बरबस ही अपनी तरफ़ मेरा ध्यान खीच लिया ......"कजरारे -कजरारे ...."। 'कुब्जाबाई' से बात हुई तो उसने कान पकड़ के जीभ दांतों से काट लिया-"नई बाउजी, अब मरद लोग भी कम ही पी रहे है और सब इधर -उधर काम पर जाने लगे हैं...-"और गोला-गट्टू ?"-मैं पूछता हूँ। -"ना जी ना ,अब तो मैं सीधे केसला जाकर सब कुछ पता कर आती हूँ "-जवाब मिलता है। चीजे बदल रही हैं शायद ..पर जरुरत तो हर तरफ़ बदलने की है।और हाँ....कतियापुरा मुहल्ले में राम सिंग (जिसने पिछले साल मेट्रिक पास की है और कोरकू है)ने "सहमत" लाइब्रेरी चलानी शुरू कर दी है ....जो एकलव्य वालो के द्वारा प्रदत है ......और हाँ ,कुब्जाबाई अक्षर -ज्ञान भी ले रही हैं।इनलोगों ने गावं के छोटे-मोटे ठेके भी लेने शुरू कर दिए है । इनके बीच को दो लड़के शिक्षाकर्मी भी हो गए हैं,कुछ के पास अब अपनी ज़मीन है । ये सरकारी प्रयासों से नही बल्कि इनलोगों की अपनी समझ और जागरूकता से हुआ है। सहेली गावं सचमुच बदल रहा है.....

Comments

सबकुछ बदल रहा है , सहेली गांव क्यों नहीं बदलेगा। इस गांव का परिचय इंटरनेट पर भी हो गया।
pravin kumar said…
badlav to ho raha hai...gati dhimi hai....yuva prayashon se gati joor pakad legi..
main MP ke baare jyada jaankari nhi rkhta per yadi vha ke log jivan ke ke liye itna sangharsh kar rahe h to yeh bahut vicharniye baat hai. lekin yadi dekha jaaye to kubja bai bai ki jaagrti sanuche bhartiye gramin smaaje ki jaarti honi chahiye.humare sabhi gramin pradesho main aneko kubja bai hai jo iss prakar ke navjaagran ki pratiksha kar rhi hai aur kyuki main ek ashavadi vyakti hu main bas itna hi kehna chahuga ki punjipatiyo ke iss shoshan ki iss raat ki sanjh to ho hi chuki hai vo subah bas ab aane ko hi hai jab samucha sarvhara smaaj jaag kar khud apne paaon pe khara hoga.
issike saath main appki iss soch aur paarkhi nazar aur maansikta ki bhoori bhoori pransha bhi karta hu jo smaaj ke iss varg main chamki iss chingari ko dunia ki nazro main leke aaye........
मुन्ना क्या तुम्हारा केसला जाना हुआ, कभी वहाँ भी होकर आओ अगर नहीं गए तो... यह एक आदिवासी इलाका है. इस इलाके में सुनील भाई पिछले २५ वर्षों से जन जागृति का काम कर रहे हैं...
aasish bhai kesla ke saheli panchayat mein kareeb 12 saal ka naata hai mera .aur jan jagruti ka kaam waha ek jha ji bhi kar rahe the jo jan jagruti ke saath saath apni zameen 20-25 aker tak bana gaye ,baaki ek waha lori mam hain jo aaj bhi badi shiddat se kaam kar rahi hain aur local ladko ko razgar bhi diya hua hai,pure kesla aur aas pass mein lori mam hi sabse active hain ho sakta hai sunil bhai unhi ke group mein ho...

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