करवट फेरऽअ न बलमुआ तू..... (अ भोजपुरिया इफेक्ट)
जिन भोजपुरी गायकों और उनकी गायकी की चर्चा हमने पिछले ब्लॉग में की है, उनमे हम अपनी भोजपुरिया संस्कृति और समाज को देख सकते है। महेंद्र मिश्रा ,बालेश्वर यादव और शारदा सिन्हा तो इस देश की सीमाओं से भी आगे तक प्रसिद्धी पाए और सम्मानित गायक हैं। बहरहाल आज की चर्चा में हम हिन्दी सिनेमा पर भोजपुरिया प्रभाव के कुछेक अंश देखेंगे।भोजपुरी भाषा के प्रभाव क्षेत्र से हम सभी वाकिफ है । मगर शायद हम ये नही जानते किभोजपुरी भाषा के प्रभाव से हिन्दी फ़िल्म-जगत भी अछूता नही रहा । ऐसी कई हिन्दी फिल्में हैं,जिनके गीत भोजपुरी के अपने गीत है। '१९४८ कि फ़िल्म "एकलव्य"फ़िल्म का गीत :-
-"काटे न कटे दिनवा हमार /गवनवा कब होई हमार"
माना जाता है कि फिल्मों में भोजपुरी लाने वाले 'मोतीलाल उपाध्याय 'जी थे । उन्होंने 'किशोर साहू'के 'नदिया के पार 'में दो भोजपुरी गीत लिख कर इसकी शुरूआत कि थी -
१-"कठवा के नैईया ,बनईहे रे मलहवा
नदिया के पार ,दिहे रे उतार "
२-"मोरे राजा हो ,ले चला अ नदिया के पार
मोरी रानी हो ,तुम्ही मोरा प्राणाधार "-(सन्दर्भ -हिन्दी फिल्मों में भोजपुरी - डॉ अंजनी कुमार दुबे 'भावुक')
साथ ही,अन्य ग्रामीण पृष्ठभूमि की हिन्दी फिल्मों के कई गानों की टोन भोजपुरी मिश्रित होने लगी। याद कीजिये दिलीप कुमार को"नैन लड़ जईहे ता मनवा माँ खटक होइबे करी..."(संघर्ष)। हिन्दी फिल्मकारों का यह प्रयास ग्रामीण प्लाट में गावं कि सोंधी खुशबू और मिठास लाने के लिए ही था । कुछ और आगे आयें तो 'तीसरी कसम'का 'पिंजरे वाली मुनिया...'ने तो अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई और ये भोजपुरी लोक गायकी का स्वर है। और हाँ ...'सजनवा बैरी हो गए हमार...'हो या फ़िर'पान खाए सैयां हमार ...(इस नाम से एक भोजपुरी फ़िल्म भी बनी है जिसमे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने काम किया है)को कैसे भुला जा सकता है। राजश्री वालों की 'नदिया के पार'याद कीजिये ,जिसमे संवादों तक में भोजपुरी और अवधी का मिश्रण था और गाने ...'कवने दिसा में लेके चला रे बटोहिया '/'साँची कहें तोरे आवन से हमरे अंगना में आयी ...'। भोजपुरी के फिल्ड में अभी तो सभी वर्ग ,प्रदेश के लोग हाथ डाले बैठेहैं पर ऐसा नही है कि भोजपुरिया फ़िल्म जगत में बूम आने की वजह से ही मात्र ये आ गए। संख्या बढ़ी जरुर है मगर पहले भी इसमे 'बच्चू भाई कटारिया ',बी.के .आदर्श 'आदि का नाम प्रमुख है। दिलीप कुमार अभिनीत 'गंगा जमुना'के संवाद और कई गीत भोजपुरी टोन के हैं। खैर,किशोर साहू वाली परम्परा में 'भारत शर्मा 'ने भी कई गीत गए.जैसे'खेत खालिहान्वा में,सगरो सिवनवा में ,फहरे ला अंचरा तहआर ऐ गोरी चला चला नदिया के पार '। और ये परम्परा भले ही काफ़ी तेज़ तर्रार तरीके से नही चल रही हो पर फ़िर भी अपनी ओरीजिनालिटी को बनाये हुए उतनी ही शिद्दत से अपना काम कर रही है । हाँ..ये सही है कि ज्यादा सुनने में वो फालतू गाने ही आते है पर ये भी तो सच है कि बदबू ज्यादा फैलती है पर इससे सुगंध की छवि या प्रकृति पर कोई असर तो नही पड़ता । कोशिश कीजिये इन सही गीतों को सुनने कि यकीं जानिए आप सचमुच इन गीतों के कायल हो जायेंगे .............शेष फ़िर कभी ।
Comments
भोजपुरी गानों के चहुँओर बिखरते खुशबू की आपने जबर्दस्त तरीके से विवेचना की है.
साधुवाद.
bhojpuria samaj ke geet sangeet sab log jaane..wohi karan hindi mein likhni....aur kauno khas intention na rahe aur ek baat ki je log humra se kahle rahe ki bhojpuria geet kul ashlil hola,oo log hindi wala rahe bas wohi ke jawab diyat rahe....