शर्म करो .शर्म करो (अरमानो की लाश पर भारतीय ओलंपिक संघ )
सबसे पहले तो अभिनव बिंद्रा को स्वर्णिम सलाम। परिवार वालों कि माने तो अभिनव के ऊपर उनका ९० फीसदी से ज्यादा ख़ुद का खर्च था । बहरहाल ,ओलम्पिक संघ वालों को खुश होने का एक मौका मिल गया है और हमे भी । आख़िर लड़के ने एक दशक की प्यास बुझाई है । मगर जिस खिलाड़ी का चेहरा काफ़ी परेशां कर रहा है वो कुछ समय पहले तक डोप टेस्ट में दोषी करार दे दी गई थी,जो अंत तक चिल्लाती रही कि 'अगर दोषी पाई गई तो बेशक मुझे गोली मार देना '। जी हाँ ..मोनिका देवी नाम की इस खिलाड़ी ने भारतीय ओलंपिक संघ का जो खेल देखा है ,उसे वो ता-उम्र नही भूल पायेगी। वैसे भी मोनिका को बाद में क्लीन -चिट दे दी गई मगर तब तक काफ़ी देर हो गई थी। ओलंपिक संघ के अधिकारी अपना काम कर गए थे। ये घटिया काम तब हुआ है जब पूरा पूर्वोत्तर अलगाववाद की आग में झुलस रहा है। संघ के इस करामात से मोनिका देवी ही नही बल्कि समूचा पूर्वोत्तर अपने को ठगा गया महसूस कर रहा है। संघ के इस कारनामे ने अलगाववादियों को एक और गोल्डन मौका दिया है ,जिस पर वे अपनी रोटियाँ सेंक सके। वैसे भी ,पूर्वोत्तर को ये शिकायत रही है कि दिल्ली के विभिन्न मंत्रालयों में बैठे नौकरशाह उनके प्रति उपेक्षा का ही भाव रखते हैं। तिस पर इस अलग ही किस्म का गेम खेल कर श्रीमान आर.के.नायडू जी ने (शैलजा को भिजवाने का आरोप इनके माथे ही है)इसे साबित भी कर दिया है। वैसे पूर्वोत्तर के प्रति हमारे आस-पास भी कोई सुखद धारणा नही है,दिल्ली कि ही बात करें तो हम पायेंगे कि प्रतिदिन पूर्वोत्तर के लोग विभिन्न स्तरों पर नस्ली टिप्पणियो के शिकार होते रहते हैं(चिंकी शब्द याद आया )। शायद इनकी जीवन शैली हमसे भिन्न है इस कारण ,मगर ये ही कुछेक प्रसंग इन्हे बाकी भारत से नही जुड़ने दे रहा है। खेल संघो में भाई -भतीजावाद कोई नई बात नही है। अभी ज्यादा समय नही हुआ जब हॉकी संघ के एक हिटलर की विदाई कर दी गई पर अंत तक वह जाने को तैयार नही थे। उनके कारनामों की ही देन है कि हम हॉकी (हमारे राष्ट्रीय खेल में )में ओलंपिक में नही हैं,क्या शर्मसार हुआ जाए?हम बस झुंझला सकते हैं या इन्हे कोस सकते हैं जिसका इनकी मोटी खाल पर कोई असर नही पड़ने वाला । एक खिलाड़ी कितने वर्षों की मेहनत के बाद ओलंपिक का सपना संजोता है मगर ऐ .सी चैम्बरों में बैठ कर कागजी कार्यवाही करने वाले बाबु -भाई लोग एक बार में उस खिलाड़ी के अरमानो की लाश निकाल देते हैं । आने वाले अगले ओलंपिक तक मोनिका खेलने की स्थिति में नही होगी,ये पक्के तौर पर कहा जा सकता है क्योंकि भारोतोलाको का खेल जीवन ज्यादा लंबा नही चलता । ऐसे में मोनिका की स्थिति को हम समझना तो दूर महसूस भी नही कर पाएंगे। भारतीय ओलंपिक संघ आख़िर हॉकी संघ का कुछ रिश्ते वाला तो लगता ही होगा ,आख़िर अब साफ़-साफ़ समझ आ रहा है कि पदक सिर्फ़ पूजा-पाठ और सेटिंग से नही मिलते बल्कि ईमानदार जज्बे के साथ कड़ी मेहनत की भी जरुरत होती है। बस इसी जज्बे की कमी हम में है। यकीन जानिए अगर यही हाल रहा तो तैयार रहिये एक और मायूस करने वाले ओलम्पिक के ख़त्म होने का जहाँ मात्र १ गोल्ड के भरोसे ये संघ अगले ४ साल तक अपनी पीठ आप-ही ठोकता रहेगा। और मोनिका का क्या ?मोनिका तुम्हारे साथ महज़ हमारी सहानुभूति ही है। अब तक तुम्हे इतना तो समझ आ गया होगा मोनिका कि हमारे ओलंपिक संघ ही नही अन्य तमाम संघो में दो तरह का खेल खेले जाते हैं और इसे खेलने वाले भी दो तरह के होते हैं । पहले वो जो ग्राउंड में खेलते हैं और दूसरे वो जो बंद कमरों में खेलते हैं (ये बंद कमरों वाला प्लेयर बहुत बड़ा है)। सारे ओलंपिक के समय हम इस बात पर ध्यान लगायेंगे कि किसने कितना मैडल लिया मगर एक जिस खिलाड़ी को जिस देश ने खोया है वो मोनिका है शैलजा नही। मैं शैलजा के ख़िलाफ़ नही हूँ मगर जो खेल मोनिका के साथ हुआ है वो वाकई शर्मसार करने वाला है । मोनिका की पता नही कहाँ ताकती आंखों से हमारी आँखें अखबार के पन्नों से ख़ुद की नज़रों को चुराती हुई लग रही हैं। ओलंपिक संघ कुछ तो शर्म करो । मोनिका के साथ हुए इस हादसे का असर जल्दी ही पूरे देश को पूर्वोत्तर की तरफ़ से मिलेगा क्योंकि ये पर्वतीय ख़ूबसूरत क्षेत्र अपने भावुक रवैये के कारण भी जाना जाता है ।
Comments
ने वही काम किया है। इसके लिए उन्हे जो भी सज़ा दी जाए वो कम है उनके इस रवैये से ही भारत आज तक पूर्वोत्तर की आग मे जल रहा है । खेल अकेली ऐसी भावना है जो पूर्वोत्तर को हमसे जोड़े रखती है अगर इसे भी आहत किया गया तो इसका परिणाम कभी भी देशहित मे नही होगा , हमे ये बात समझनी होगी कहीं ऐसा न हो कि काफी देर हो जाए ।