लोकधर्मी शैली का सहज नाटक -"सदारमे"(रा.ना.वि.में)


नरहरी शास्त्री जैसे विख्यात और 'श्रीकृष्ण लीला ,कंसवध चरित्र,महात्मा कबीरदास,जालंधर,श्री कृष्णभूमि परिणय ,अदि पौराणिक नाटकों के लेखक की ही रचना है -'सदारमे'.जो आजकल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव में रंगमंडल द्वारा खेला जा रहा है.दरअसल यह नाटक कंपनी शैली का है,कहने का अर्थ यह है कि .नरहरी शास्त्री के अधिकाँश नाटकों का प्रदर्शन कर्नाटक की ऐतिहासिक ड्रामा कंपनी 'गुब्बी नाटक कंपनी'ने किया है और वे सभी प्रर्दशित नाटक पौराणिक कथाओं का आधार लिए हुए थे.कंपनी के आग्रह पर कि शास्त्री जी एक ऐसा नाटक लिखे जिसमे लोक-तत्वों की सादगी और खूबसूरती हो तब "सदारमे"लिखा गया.नरहरी शास्त्री जी ने इस नाटक की रचना कंपनी के आग्रह पर की. 'सदारमे का शाब्दिक अर्थ है-हमेशा सुंदर (सदा + रमे,सदा का अर्थ हमेशा और रमे संस्कृत शब्द के रम्य से बना है)लगभग एक सदी पूर्व लिखा गया नाटक नाट्यधर्मी नहीं बल्कि लोकधर्मी शैली में है.सीधी-सादी इस कहानी का उद्देश्य शुद्ध मनोरंजन करना है."-(ब्रोशर -सदारमे निर्देशकीय )दरअसल लोकधर्मी शैली के नाटकों का सबसे मज़बूत पक्ष उनका लोक-संगीत होता है.इस नाटक के कई गीत संवादात्मक तथा कई संवाद गीतात्मक हैं.निर्देशक का कौशल इस बात में दिखता है कि उन्होंने एक कर्नाटक शैली के संगीत को किस तरह से हिन्दुस्तानी संगीत के साथ प्रस्तुत किया है.हास्य-प्रधान घटनाओं का पुट लिए यह नाटक लगभग २ घंटे की अवधि का है. जैसा कि सभी जानते हैं कि मूल नाटक में २०० गाने हैं और यह पूरे रात चलता था.अतः ऐसे में नाटक को आज के सन्दर्भों में तैयार करना वाकई काबिले तारीफ़ है.पर कुछ बातें नाटक के प्रदर्शन की.नाटक का कथानक कुछ यूँ है - राजकुमार जयवीर की सांसारिक जीवन बिताने में कोई रूचि नहीं है.वो अपने पिता के राजगद्दी पर भी नहीं बैठना चाहता.वह दर्शनशास्त्र का अनुसरण करके ही काफी संतुष्ट है.राज उद्यान में उसकी मुलाक़ात एक माध्यमवर्गीय सुन्दर अबोध कन्या सदारमे से होती है,और सब कुछ बदल जाता है.,जयवीर के पिता उसकी शादी में बाधक सदरामे के पिता और भाई के तमाम शर्तें मान कर भी जयवीर और सदारमे की शादी करवा देते हैं.चूँकि सदारमे वणिक वर्ग से सम्बंधित है और उसके पिता और भाई नीचता की हद तक पतित हैं अतः सदारमे की परेशानियां शादी के साथ ही शुरू हो जाती है.अब जबकि नवदम्पति के पास सर छुपाने को जगह नहीं है ऐसे में परेशानियां आरम्भ होती हैं.सदारमे इस चुनौती को स्वीकार करती है और जीवन की हर बाधा को बुद्धिमता पूर्वक हल करती है और नाटक मंगल अंत को पाटा है. यह नाटक सहज तौर पर ही रखा गया होता तो भी इसका प्रभाव कमतर नहीं होता ,बावजूद इसके निर्देशक ने कई प्रसंग अनावश्यक डाल दिए है जैसे शराबी मुनादी वाले का प्रसंग.और कई हास्य प्रसंग अधिक लम्बे हो जाने के कारण भी उबाऊ लगने लगते हैं .तिस पर रेपर्टरी के कलाकारों के काम की दाद देनी होगी कि उन्होंने अपने काम से निराश नहीं किया है ..अमित पाठक ,दक्षा शर्मा ,निधि मिश्रा,मोहम्मद अब्दुल कादिर शाह और समीप सिंह ने हमेशा की तरह बढ़िया काम किया है.इन सबके बीच जो दो आर्टिस्ट तेजी से अपनी पहचान बनाते जा रहे हैं उनमे 'जोय मिताई'और सविता कुंद्रा का नाम उल्लेखनीय है.अन्त्य सोनी, बरंती सोनी के किरदार में अनूप त्रिवेदी और संजय मापारे फिट है . कुल मिलाकर रंगमंडल के नाटकों के शौकीनों के लिए यह नयी प्रस्तुति बहुत उम्मीदों वाली नहीं है ,रंगमंडल के कई उम्दा प्रदर्शनों के बीच यह नाटक उन्नीस ही है बीस नहीं. ******************************************* डिजाइन एंड डाईरेक्शन-बी.जयश्री हिंदी अनुवाद-शैलजा राय सेट डिजाइन-एम.एस .सथ्यु लाईट डिजाइन-अशोक सागर भगत संगीत-अंजना पूरी वस्त्र-सज्जा-मीता मिश्रा स्थल -अभिमंच (रा.ना.वि.के ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव की समय सारणी पिछले पोस्ट में जारी है)

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