नाटककार लुइगी पिरान्देलो :- एक परिचय


इटली के विख्यात उपन्यासकार,कहानीकार तथा नाटककार लुइगी पिरान्देलो का जन्म २८ जून १८६७ में सिसली के मध्य दक्षिणी समुद्र तट पर स्थित एग्रीजेंटो में हुआ था उसके माता-पिता गैरीबाल्डी समर्थक परिवारों से थे राजनैतिक उथल-पुथल के कारण उनको देहात में जाकर रहना पड़ा प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई अनेक पाठशालाओं में पढ़ने के बाद वह १८८७ में रोम विश्वविद्यालय पहुंचा परन्तु वहां आत्म-संतुष्टि नहीं मिली बौन जाकर डॉक्टर ऑफ फिलोसाफी की डिग्री प्राप्त की सन १८९१ में रोम आये,जहां जीवन भर रहे

व्यापार में रूचि तो थी ही नहीं,१८९४ में पिता को व्यापार में घाटाहोने पर टीचर्ज़ कालिज में साहित्य-शास्त्र तथा भाषण का अध्यापन कार्य संभालना पड़ा,जो १९२३ तक चलता रहा उसी वर्ष एंतोनियेता पोरतुलानो से विवाह हुआ जो सफल ने हुआ पत्नी बहुत जिद्दी तथा झगडालू थी तीन बच्चे स्टीफानो (लेखक) रोजाली तथा स्टीफानो (पेंटर)होने पर भी जीवन सुखी न था अपने एक लेख में उसने सूखे,रंगहीन जीवन,अध्यापन कार्य से छुटकारा पाने की इच्छा तथा गाँव में जाकर लिखने की चाह की चर्चा की है

इटली के नाटककार पैल्लीको से प्रभावित होकर पहला दुखांत 'बारबारो'लिखा जो बाद में खो गया पहला उपन्यास 'आउट कास्ट'१८९३ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ 'दी टर्न'कहानी-संग्रह था प्रसिद्ध उपन्यास 'लेट माटिया पास्कल'१९०४ में आया 'एपिलोग'१८९८ में तथा 'सिस्लियन लाईन्ज़' १९१० में छपे

पिरान्देलो जब लिखने पर आये तो एक वर्ष में नौ नाटक लिख डाले एक नाटक तीन दिन में तो दूसरा छह में सन १९१६ से १९२५ तक अधिकाधिक नाटक लिखे वह फासिस्ट पार्टी का सदस्य बन गया ,जिससे मूसोलोनी ने उसके रंगमंच को मान्यता प्रदान कर दी १९२५ में अपना नाट्य दल गठित किया और यूरोप भ्रमण के लिए गए कलात्मक सफलता तो मिली परन्तु घाटे का सौदा रहा ख्याति बढ़ने लगी यूरोप,टर्की,जापान आदि देशों की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुए सन १९३४ में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ मृत्यु के दिन(१० दिसंबर १९३६) तक उसका लेखन जारी रहा

पिरान्देलो की नाटक रचनाओं पर इटली की परम्परागत शैली'कामेदिया देल आर्ते 'का प्रभाव दिखाई देता है वर्ज़ जैसे नाटककारों का प्रभाव भी दिखाई देता है,जिनका 'थियेटर आफ दी ग्रोतेस्क प्रथम महायुद्ध की प्रताड़ना के कारण जीवन की विपरीत छवि दिखाता था सत्य,तथा मिथ्या,चेहरा तथा मुखौटे , दिखावे के पीछे की वास्तविकता का चित्रण ही उसका मुख्य उद्देश्य बन कर रह गया वास्तविकता से दूर रहकर , निर्लिप्त भाव से अवलोकन तथा मनन उसके पात्र जानते-बूझते हुए पीड़ा झेलते हैं जीवन की असंगतियाँ तथा उतार-चढ़ाव उसकी रचनाओं में साफ़ झलकती है उसके नाटक उलझावेदारऔर पात्र जो न जाने कब क्या कर बैठें सच तो यह है कि पिरान्देलो सही माने में पहला एब्सर्ड (असंगत) नाटककार है

उसका मत था कि मनुष्य अपने लिए एक अलग व्यक्तित्व का निर्माण कर लेता है जिसकी आड़ में वह समाज का सभ्य सदस्य बनने का दिखावा करता है समाज का अपना ढांचा होता है,धर्म,क़ानून,आचार-संहिता आदि से बंधा होता है वह मनुष्य की सहजता को नष्ट कर देता है

कला का विरोधाभास यह है कि वह एक ही समय में रचना भी करती है और विनाश भी वह पल-पल बदलने वाली वस्तुस्थिति को एक स्थायी रूप दे देती है मनुष्य जीवन की रचना करता है और उसी पल का बंदी बनकर रह जाता है यथार्थ निश्चित नहीं होता वह देखने वाले की दृष्टि के साथ-साथ बदलता रहता है कला एक शाश्वत यथार्थ है क्योंकि वह स्थायी है और जीवन परिवर्तनशील परन्तु कला गतिशील नहीं है इसलिए जीवन से उत्कृष्ट नहीं हो पाती है यह एक विरोधाभास है आदि मानव तथा समाज-निर्माता मनुष्य , प्रकृति तथा आकृति , सत्य तथा दिखने वाला सत्य ,मुख और मुखौटा, यह सब नाटककार पिरान्देलो के लिए चिंतन के मुद्दे बन जाते हैं

कहा जाता है कि पिरान्देलो के नाटक विचार अथवा मस्तिष्क प्रधान होते हैं परन्तु यह सत्य नहीं है उसके नाटकों का द्वंद्व ह्रदय से ही उभरता है वही नाटकों का 'बीज' होता है उसके पात्र तीव्र ,भरपूर जीवन जीते हैं उनमें घृणा,प्यार,डर,उल्लास ,रोमांच इत्यादि मानवीय भावनाओं का समावेश है परन्तु उसके समीक्षक उसमें बौद्धिक तत्व ही खोजते हैं

पिरान्देलो के पात्र जीवन की असंगतियों तथा अस्त-व्यस्त स्थितियों में जीते हैं वह यथार्थ की खोज में जुटे रहते हैं परन्तु उनके हाथ निराशा ही लगती है वह उस संसार में जीने पर बाध्य होते हैं,जिसे वह लेश मात्र भी पसंद नहीं करते वह अपने ऊपर एक मायाजाल-सा ओढ़ लेते हैं और एक सपनों का संसार सज़ा लेते हैं परन्तु जीवन की विभीषिकाओं से उन्हें छुटकारा नहीं मिलता .....(क्रमशः )
[साभार:- लुइगी पिरान्देलो के बारे में कुमार मनोज बंसल का लिखा यह परिचय हमने पिरान्देलो के ही मशहूर नाटक 'सिक्स कैरेक्टर इन सर्च आफ ऍन आथर 'के जीतेन्द्र कौशल द्वारा अनुदित बुक (संस्करण १९८६,भारती भाषा प्रकाशन दिल्ली) से ली है 'सिक्स कैरेक्टर इन सर्च आफ ऍन आथर 'के बारे में अगली पोस्ट में पढ़िए ]

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