आओ छात्रों अपनी सभी समझ पर धूल डालें ....
आज फाईनली वह दिन आ ही गया ,जब हमारे सुंदर-सुदर्शन चेहरों को चुना जाना है। अभी-अभी रामजस कॉलेज और ला-फैकल्टी से घूम कर आया हूँ,वैसे आज के दिन यूनिवर्सिटी का मजेदार चेहरा दिख जाता है(मैं ये नही कह रहा कि बाकी दिन यहाँ मुर्दनी छाई रहती है,मगर आज तो कमाल का दिन होता है)। रामजस के आगे तो ख़ास इन्तेजामात हो रखे हैं। बाहर पुलिस वालों की पूरी टुकडी खड़ी है और ला- फैकल्टी में भी। ये दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्टुडेंट इलेक्शन है।यहाँ अभी भी जाट-बिहारी या दिल्ली वाले वर्सेस बाहरी का ही मुद्दा छाया हुआ है।कल मेरा एक दोस्त मिला जो,.....फैकल्टी में प्रेज़...पोस्ट पर फाइट कर रहा है। छूटतेही उसने ये बात मेरे कानों में डाल दी कि-'भाई बात इज्ज़त की हो गई थी। 'और धीरे-से फुसफुसाते हुए बोला -'कुछ करो तुम भी ...अगेंस्ट में एक जाट और एक .....की लड़की है खड़ी है,और जानते हो भाई अपना भाई लोग जो पिछले साल तक अपने साथ था ,इस बार उस लौंडिया को घुमा रहा है लोग।'-फ़िर थोड़ा तैस में आकर बोले-'एक बार ई इलेक्शनवा बीतने दो भईवा,फ़िर बतियाते हैं ई......लोग से "। मैं हंस कर उसे दिलासा देकर आ गया रामजस में भी कुछ ऐसा ही नज़ारा होता था,आज भी है।इस लिस्ट में किरोडीमल ,हिंदू,हंसराज भी अछूते नही हैं। हॉस्टल से लेकर कॉलेज तक कॉलेज से लेकर प्रशासन तक यही तमाशा हर ओर है।अब जो भी जीतेगा वो क्लास टाइम में ढोल नगाडों के साथ यूनिवर्सिटी कैम्पस और कॉलेज कैम्पस में अपने चेले-चाटुकारों के साथ हम सभी को उस जैसे...को चुनने के लिए अपने तरीके से धन्यवाद करेगा(हाँ...लडकियां उस दिन अत्यधिक सतर्क रहेंगी,आमतौर पर रहती ही है,मगर उस दिन ज्यादा केयर करना होगा आख़िर सेफ कैम्पस का दंभ भरने वाले अपनी टीम के साथ अब छुटभैयों की तरह यही आस-पास मंडराते रहेंगे)।
धीरे -धीरे समय बीत जायेगा और हम भूल जायेंगे इलेक्शन कब,क्यों,किन मुद्दों पे लड़ा गया था। कल शाम काफ़ी देर तक अपने आईसा वाले दोस्त अर्णव के साथ फैकल्टी में बैठा था,वह अपनी आवाज़ लगभग बैठा चुका है नारे लगा लगा के। कल उत्साहित होकर बोल रहा था कि 'आज हमने करीब-करीब १०० छात्रों की भीड़ अपने साथ जमा कर ली पूरे दिन भर।मुझे थोडी तरसआई मुद्दे आधारित इलेक्शन लड़ने वालों पर। दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस इलेक्शन में पूरे देश की चुनावी तस्वीर साफ़-साफ़ दिख जाती है कि किस तरह से हमारे प्रजातांत्रिक देश का चुनाव लड़ा जाता है। यहाँ भी वो सारे स्टफआपको मिल जायेंगे,मसलन क्षेत्रवाद,जातिवाद(इसमे भी कई खुरपेंच है,जैसे दलित में भी बड़ा -छोटा,जनरल में भी ब्राह्मण ,राजपूत,भूमिहार ,सरदार अन्य)मनी पावर,मसल पावर इत्यादि का छुट्टा इस्तेमाल होता है।बाबालोगों को बुलाया जाता है,पार्टी दी जाती है,सिनेमा की टिकटें बांटी जाती हैं ,पैसे और शराब तो खैर दुनिया कि नज़रों से छुपा नही है। पूरा खेल/प्रपंच संसद के ५ सालों के कार्य- काल के लिए नही बल्कि एक एजुकेशनल संस्थान के एक साल के यूनियन के लिए किया जाता है। .....तमाशा जारी है ,मदारी डुगडुगी बजा रहा है,भालू नाच रहे हैं और पुलिस उनकी रखवाली में खड़ी है। और मुझे धूमिल लगभग चीखते हुए कैम्पस की सड़कों पर भागता दिख रहा है-
"हमारे यहाँ जनतंत्र एक ऐसा तमाशा है,
जिसकी जान मदारी की भाषा है"
चलिए आइये , आज तक हमने जो कुछ भी पढ़ा-लिखा है, आज इस टीचर्स डे पर उन सब भर एक-एक मुट्ठी धूल डाल दे
धीरे -धीरे समय बीत जायेगा और हम भूल जायेंगे इलेक्शन कब,क्यों,किन मुद्दों पे लड़ा गया था। कल शाम काफ़ी देर तक अपने आईसा वाले दोस्त अर्णव के साथ फैकल्टी में बैठा था,वह अपनी आवाज़ लगभग बैठा चुका है नारे लगा लगा के। कल उत्साहित होकर बोल रहा था कि 'आज हमने करीब-करीब १०० छात्रों की भीड़ अपने साथ जमा कर ली पूरे दिन भर।मुझे थोडी तरसआई मुद्दे आधारित इलेक्शन लड़ने वालों पर। दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस इलेक्शन में पूरे देश की चुनावी तस्वीर साफ़-साफ़ दिख जाती है कि किस तरह से हमारे प्रजातांत्रिक देश का चुनाव लड़ा जाता है। यहाँ भी वो सारे स्टफआपको मिल जायेंगे,मसलन क्षेत्रवाद,जातिवाद(इसमे भी कई खुरपेंच है,जैसे दलित में भी बड़ा -छोटा,जनरल में भी ब्राह्मण ,राजपूत,भूमिहार ,सरदार अन्य)मनी पावर,मसल पावर इत्यादि का छुट्टा इस्तेमाल होता है।बाबालोगों को बुलाया जाता है,पार्टी दी जाती है,सिनेमा की टिकटें बांटी जाती हैं ,पैसे और शराब तो खैर दुनिया कि नज़रों से छुपा नही है। पूरा खेल/प्रपंच संसद के ५ सालों के कार्य- काल के लिए नही बल्कि एक एजुकेशनल संस्थान के एक साल के यूनियन के लिए किया जाता है। .....तमाशा जारी है ,मदारी डुगडुगी बजा रहा है,भालू नाच रहे हैं और पुलिस उनकी रखवाली में खड़ी है। और मुझे धूमिल लगभग चीखते हुए कैम्पस की सड़कों पर भागता दिख रहा है-
"हमारे यहाँ जनतंत्र एक ऐसा तमाशा है,
जिसकी जान मदारी की भाषा है"
चलिए आइये , आज तक हमने जो कुछ भी पढ़ा-लिखा है, आज इस टीचर्स डे पर उन सब भर एक-एक मुट्ठी धूल डाल दे
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लगता है धोखे से पोस्ट हो गया।
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