हंसने मुस्कुराने के लिए ....

ज़िन्दगी से जब भी थोडी ऊब हो तब कुछेक कवियों की रचनायें बड़ी सहजता से हमारे होंठो पर एक मुस्कराहट छोड़ जाती हैं । पेश है कुछ ऐसे ही कवियों की रचनायें ,उम्मीद करता हूँ उन्हें(कवियों को ) बुरा नहीं लगेगा -

(1) "जनता ने नेता से हाथ जोड़कर पुछा -
माई-बाप ,क्या आप भी यकीन करते हैं समाजवाद में?
नेता ने मुर्गे की टांग चबाते हुए कहा-
पहले हम समाज बाद में। "

(२)"एक अति आधुनिका
कम-से-कम वस्त्र पहनने की करती है अपील
और पक्ष में देती है ये दलील कि -
'नारी की इज्ज़त बचाने का यही है अस्त्र ,
तन पर धारो कम-से-कम वस्त्र।
फ़िर पास नहीं फटकेगा कोई पापी दुशासन जैसा
जब चीर ही ना होगा तन पर तब ,
चीरहरण का डर कैसा'।"

(3)देख सुंदरी षोडशी मन बगिये खिल जाए
मेंढक उछलें प्यार के ,जिया हिया हिल जाए
जिया हिया हिल जाए ,बिमारी है यह खोटी
रोटी भावे नहीं फड़कती बोटी-बोटी
पुष्ट पहलवां भी हो जाता ढीलम-ढीलू
चिल्लाये दिन-भर बेचारा -इलू .इलू.इलू। -(काका हाथरसी)

(४)एक डाकू ने एक लखपति की पत्नी का अपहरण किया
बदले में एक लाख की फिरौती हेतु पत्र लिखा ।
जवाब में लखपति ने डाकू को ख़त लिखा -
'श्रीमान ,आपका चरित्र हमें बहुत अच्छा दिखा।
अब मैं शीघ्र ही दूसरी शादी कर रहा हूँ
अतः कुछ दिनों बाद पुनः आईयेगा
यदि वो अच्छी लगे,तो प्लीज़ .....
उसे भी ले जाईयेगा।

.............ये कुछ जाने-अनजाने कवियों की रचनायें हैं जो कहीं मैंने सुनी कहीं पढ़ी है। मुझे अच्छी लगी अब आपके लिए पर इसमे मेरा योगदान आप सभी तक इसे पहुंचाना है बस। थोड़ा -सा आप भी मुस्कुरा ले और उन कवियों का लिखना सार्थक हो जायेगा।

Comments

शोभा said…
हा हा हा हास्य बिखेरना सबसे अच्छा काम है. अच्छा लगा
Udan Tashtari said…
आनन्द आ गया,,,बेहतरीन प्रस्तुति. और लाओ ऐसे ही.
लेआउट में जाकर कलर चेंज करो , जो लिखा है उसे समझने के लिए आँखो को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है ।

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