बस आज होगी अब आखरी दहाड़.......




लॉर्ड्स का वह सीन याद कीजिये जब एक दुबले-छरहरे बाबु मोशायने अपने पहले ही मैच में सैकडा ठोक दिया था। या फ़िर वह जब दुनिया को क्रिकेट के मैदान में अपनी जूती के नोंक पर रखने वाली टीम का लीडर इस बंगाल टाईगर के आगे बेचारा बना ग्राउंड में टॉस का इंतज़ार कर रहा था। अब तक लोगों से भद्रजनों के खेल के कायदे सुनने वाला और अपने दूसरे कान से बेहयाई से मुस्कुराते हुए निकाल देने वाली इस दादा टीम को दादा की दादागिरी के आगे बेबस होकर ख़ुद जेंटलमैन गेम का तरीका अपनाए जाने की बात करनी पड़ गई थी। या फ़िर वह दृश्य जब ब्रिटेन की छाती पर बैठ कर बालकोनी से अपनी टी-शर्ट उतार कर भद्रजन खेल की नई परिभाषा ही गढ़ देना । जी हाँ....इस अनोखे और विश्व क्रिकेट में परम्परा से चली आ रही भारतीय इमेज(किसी भी छींटाकशी को सुनकर अनसुना कर देना इत्यादि) को इसी कप्तान ने बदल के रख दिया ।


तमाम तरह के विवादों के बीच जब भारतीय टीम मैच फिक्सिंग के दलदल में फंसती नज़र आ रही थी,तब इस नए जुझारू नौजवान ने इस टीम की बागडोर अपने हाथ में संभाली और उसके बाद जो कुछ कारनामा इसी टीम ने किया वह सबने देखा। जिन विदेशी पिचों पर इस टीम को सब टीमें ईजी केक की तरह लेती थी,अब वह भी बैकफूट पर आ गई। यह नई टीम थी विशुद्ध भारतीय नई टीम। गांगुली अपने कप्तानी ही नहीं बल्कि अपने अग्ग्रेसिव अप्रोच के कारण भी याद किए जायेंगे। कई तरह के विवादों से घिरने के बावजूद यह शख्स अपना लोहा मनवा ही लेता है। टीम से निकाल दिए जाने और उस विज्ञापन में दिखाए जाने के बाद (जिसमे वह कहते थे कि अपने दादा को भूल गए क्या ?)वह और भी करीब लगने लगे थे। जी चाहता था कि काश एक बार ही सही गांगुली वापस आकर अपना सौवा टेस्ट खेल ले ,आख़िर हमारी यह हसरत भी पूरी हुई और गांगुली को चुका हुआ कहने वालों के मुँह पर इस टाईगर ने अपने बल्ले की दहाड़ से ऐसा ताला मारा कि सब भौंचक्के रह गए,यह गांगुली अब वाकई अलग सा था ,कुछ साबित करने का जज्बा लिए शांत,गंभीर।


गांगुली के साथ ही क्रिकेट को नए-नए खिलाड़ी मिले। मतलब कि अब तक खिलाड़ियों का जत्था (जी हाँ जत्था)बंगलुरु,मुम्बई और दिल्ली के क्षेत्र से आता था पर अब इस कप्तान ने अपनी नज़र हर उस खिलाड़ी पर दौडाई जो वाकई कुछ कर सकता था। अब ये खिलाड़ी सुदूर श्रीरामपुर,इलाहाबाद,रांची जैसी जगहों से भी आए हालांकि यह मात्र गांगुली के कारण नहीं था मगर एक कप्तान के तौर पर गांगुली ने चयनकर्ताओं से लगभग नाराजगी मोल लेने की हद तक इन खिलाड़ियों का सप्पोर्ट किया था।युवराज सिंह के गर्दिश के दिन याद कीजिये जब हम-आप भी कहने लगे थे कि इसे क्यों ढोया जा रहा है।


बहरहाल,जो भी हो अगर नागपुर टेस्ट में भी गांगुली ने शतक मार दिया होता तो क्या शानदार विदाई होती। मगर अपनी इस पारी से दादा ने वह सब कुछ पा लिया ,साबित कर दिया जो वह चाहते थे। एक शानदार खिलाडी की शानदार विदाई विरले को ही नसीब होती है।गांगुली उन्हीं विरलों में से एक हैं। सही मायनो में प्रिन्स ऑफ़ कोलकाता ,रियल बंगाल टाईगर । यह वही खिलाड़ी है जिसके बारे में उसके एक सहयोगी खिलाड़ी का स्टेटमेंट था-"ऑफ़ साईड में पहले भगवान हैं फ़िर गांगुली"।


जो भी हो ...इस टाईगर की संभवतः आज आखरी दहाड़ होगी(अगर पारी आई तो॥)। जाओ दादा अलविदा


तुम,तुम्हारा खेल ,तुम्हारी कप्तानी ,तुम्हारी पिच पर वापसी, हमेशा दिल में रहेगी...........




(वैसे मुसाफिर I P L में कोलकाता नाईट राईडर्स के खेल में दादा का इंतज़ार करेगा )

Comments

Alpana Verma said…
tea session se pahle hi 'dada' ki wapasi ho gayee maidan se -aur aaj un ka aakhir khel bhi--

Well-hamari shubhkamnayen Saurav ganguli ke saath hamesha hain--
ठीक लिखा आपने कि गांगुली भारतीय खेल की दशा और दिशा दोनों बदल दी. अपने कैरियर में उन्होने हमेशा आक्रामक खेल का मुजायहरा किया.भले ही वे शतक वीर न हो लेकिन वह जमीन तैयार जरूर की जिसपर आज शतकों की झड्री लग
ravishndtv said…
आपकी कहानी मज़ेदार है। अपनी कहानी। मज़ाक से कमाल तक।
रोचक पोस्‍ट। और बढि‍या टाइमिंग:)

Popular posts from this blog

विदापत नाच या कीर्तनिया

लोकधर्मी नाट्य-परंपरा और भिखारी ठाकुर : स्वाति सोनल

लोकनाट्य सांग