प्रेम का इस्तीफा..(मनोज तापस की कविता)
हाँ !
मुन्ना भाई,
आप ठीक कहते हैं-
प्रेम से इस्तीफा नहीं दिया जा सकता.
कमबख्त इस कलम से जब भी,
प्रेम का इस्तीफा लिखने बैठता हूँ.
तो लिख बैठता हूँ,प्रेम पत्र.
कभी-कभी मन करता है,
ढेर सारी गालियाँ लिख पोस्ट कर दूँ उस पते पर,
लेकिन लिख बैठता हूँ,प्रेम कविता फिर.
कल बहुत इत्मीनान से सोच रहा था,
छत पर बैठकर कि,तीन बार तलाक कहकर
उससे पीछा छुड़ा लूँगा,
लेकिन जैसे ही गली के नुक्कड़ पर वह मिली.
मैं फिर उन्हीं तीन शब्दों में कर बैठा 'इज़हार-ए-मोहब्बत'
मुआमला-ए-इश्क फिर उसी मुकाम पर आ गया
आखिर तमाम हमलों के बीच भी
मैं सोच रहा हूँ अब
सही में इश्क पर जोर नहीं होता....
***(मनोज कुमार 'तापस' ,दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में'समकालीन हिंदी कविता और दिल्ली की युवा छात्र कविता'विषय पर शोधरत हैं तथा साथ ही,डीयू के ही शहीद भगत सिंह कालेज/प्रातः/में तदर्थ प्रवक्ता हैं.संपर्क-९८९१२७१२७५)
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