अब चौथा रंगमंच-मचान (यानि "पड़ोस का रंगमंच")


एक समय रंगजगत पर बादल सरकार ने तीसरे रंगमंच से रंगजगत का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था.पर हमारे इस चौथे किस्म के रंगमंच का आधार कोई थ्योरी नहीं है बल्कि नाटी-प्रदर्शन का एक अनूठा प्रेक्षागृह है.यह 'मचान'थियेटर है यानी terrace theatre /theatre on rooftop .सन २००८ के अप्रैल माह में २६-२७ तारीख को पटना शहर के बुजुर्ग और सम्मानित नाटककार डॉ.चतुर्भुज ने इस मचान थियेटर का उदघाटन किया था.और इस 'मचान'की पहली नाट्य-प्रस्तुति थी-'अकेली औरत'.तब से लेकर हर महीने नाटकों और गीत-संगीत की प्रस्तुति के साथ फिल्मों के विशेष शो का आयोजन 'मचान' का हिस्सा बन चुका है.अब तो 'मचान फेस्टिवल'से मचान ने पटना शहर में अपनी एक अनूठी पहचान बना ली है.इस मंच की सबसे अनोखी बात इससे आस-पास के लोगों का जुड़ाव है.श्रीकृष्ण नगर और आसपास के लोगों,विशेषकर महिलाओं और बच्चों की मचान-कार्यक्रम में भागीदारी ने इसे'पड़ोस के रंगमंच'का रूप दे दिया है.इसके प्रत्येक आयोजन में स्थानीय स्तर पर लोगों की बढती भागीदारी और 'मचान' के प्रबंधन में उनकी दिलचस्पी से एक बात पता चलती है कि बेहतरीन कला-प्रदर्शन के लिए गलियों और मोहल्लों के स्तर पर संसाधन विकसित किये जाने चाहिए.पटना शहर की इतनी बड़ी आबादी जो घरों में कैद होकर केवल टीवी को अपने मनोरंजन का माध्यम बना चुकी है,उनकी उनकी आपसी-सामुदायिक भागीदारी एक स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज के बनने में सहायक सिद्ध हो सकती है.प्रश्न है कि 'क्या "मचान" जैसा आयोजन शहर के अलग-अलग हिस्सों में नहीं हो सकता?'-शहर के एक बड़े शिक्षाविद ने यह आशंका जताई है कि कहीं'मचान'अपवाद ना बन जाये,यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा.हालांकि शहर में विशाल नाट्य मंच,निर्माण कला-मंच,हज्जू म्यूजिकल थियेटर-जैसी कुछ ऐसी नाट्य-संस्थाएं रही हैं,जो स्थानीय बस्ती के बच्चों को लेकर उन्हीं के बीच नाटकों की प्रस्तुति करती रही हैं.लेकिन यह तो जरुर है कि,'मचान'जैसे रंगमंचीय स्पेस का प्रयोग बिल्कुल नई और अनोखी परिकल्पना है,जिसके सन्दर्भ में यह संभवतः देश में ही एक अपवाद है.इसलिए जो कला-साहित्य-संस्कृति-कर्म से जुड़े मित्र हैं,या जो चाहते हैं कि उनके घर में और उनके आसपास एक स्वस्थ-सांस्कृतिक परिवेश हो,वे शहर में अलग-अलग (चाहे वह शहर किसी भी भाषा-प्रान्त के हों)स्थलों पर'सांस्कृतिक स्पेस'रचने का कष्ट उठाने के लिए कमर कसें और पहल करें,अपने अन्य मित्रों-पड़ोसियों की मदद से,तब शायद कुछ फर्क पड़ेगा,यही 'मचान' का उद्देश्य है.
'मचान'की परिकल्पना को मूर्त रूप देने वालों में प्रख्यात रंगकर्मी डॉ.जावेद अख्तर खान, परवेज़ अख्तर,मोना झा आदि लोग रहे हैं.दरसल 'मचान'दो स्टारों पर कार्य करता है.पहला इसका रंगमंचीय पक्ष है तो दूसरा मुखर-सामाजिक पक्ष.'मचान'सामाजिक पक्ष के दो बेहद खूबसूरत बातें आपको बता दूं.पहली तो यह कि जब बिहार में अगस्त माह में कुसहा बाँध के टूटने से कोसी ने जो तबाही महाई थी उसके लिए श्रीकृष्ण नगर पटना के लोगों ने 'मचान'के नेतृत्व में दस दिनों तक अनथक-जी-तोड़ मेहनत करके पटना के ४०० परिवारों के २००० लोगों तथा देश-विदेश से जुड़कर'श्रीकृष्ण नगर बाढ़ राहत सामग्री संग्रहण केंद्र'में जमा किया तथा लगभग २० टन खाद्य-सामग्री और दूसरे आवश्यक सामानों से भरे ट्रक के साथ कालोनी के ७ लोग जिनमें दो स्थानीय महिलाएं भी शामिल थीं,अररिया राहत पहुँचाने गयीं.इस प्रयास को देखने प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर भी देखने आयीं.
दूसरा वाकया नवम्बर 2008 के मुम्बई की घटना पर यहाँ के लोगों की पहलकदमी और प्रतिक्रया से जुड़ा है.स्थानीय वार्ड-पार्षद,मिथिलेश जी के मदद से रोड नंबर-21 के मैदान में बड़ी संख्या में एकत्र होकर आतंकी हमले में मारे गए लोगों-शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गयी.आसपास मुहल्लों के लोगों ने अपने-अपने घरों से मोमबत्तियां लाई और घंटों खड़े होकर जज्बे को व्यक्त किया,दरअसल यह मचान-कार्यक्रम में स्थानीय भागीदारी का ही एक अत्यंत मुखर-सामाजिक पक्ष था.बहरहाल,
जनाब परवेज़ अख्तर,जावेद अख्तर और मोना झा का अपना नाट्य-ग्रुप है-नटमंडप.इस प्रबुद्ध रंगकर्मियों से 'मचान' के उनके अपने अनुभव के बारे में पूछने पर-"हमर अपना 'मचान' का अनुभव क्या है?यदि श्रीकृष्ण नगर ,रोड न.-२१ के सावित्री सदन(वैसे इस सदन के नेमप्लेट पर इसका नाम लिखा है-शावित्री सदन)के राजीव-रंजन,उनकी माताजी श्रीमती सावित्री शर्मा,और उनकी पत्नी श्रीमती जयश्री ने अपनी निजी छत एवं अन्य'स्पेस'के हर तरह के इस्तेमाल करने की पूरी छूट न दी होती तो यह 'परिकल्पना'कभी साकार नहीं हो पाती और यदि होती भी तो उसका जो स्वरुप होता,वह'मचान' नहीं होता.पटना शहर में ऐसे कितने गृहस्वामी हैं?अगर नहीं हैं,तो क्यों नहीं हैं?क्या ऐसे गृहस्वामी भी अपवाद हैं?क्या ऐसे एक अकेले उदाहरण से हम अपने समाज की संस्कृति को बदल सकते हैं?लेकिन इन सवालों के जवाब से पहले कुछ और चर्चा जरुरी है.ऐसा नहीं है कि,कुछ और लोग इस प्रक्रिया से नहीं जुड़े.इसी मोहल्ले के रोड नंबर-२३ के ठाकुर जी और उनका परिवार,पूनम जी और अंजनी जी,रोड नंबर-२२ के संजय जी,रोड नंबर -२१ के ही आलोक(मंटू जी),जीतेन्द्र जी,पिंटू और गौरव जो कालेज के छात्र हैं,या फिर रोड नंबर-१४ के रवि जी और अजित जी ये कुछ ऐसे नाम हैं,जिनके बिना अब किसी मचान-कार्यक्रम का आयोजन संभव नहीं है,यह एक दिन का चमत्कार नहीं बल्कि सतत प्रयासों का फल है.'मचान'के पूरे 'स्पेस'को साफ़-सुथरा रखने,खुली छत का 'रंगमंचीय स्पेस'रचने,भरी-भरकम परदे टांगने,दर्शकों को बैठाने औरनीचे'एक्जीबिशन की तयारी में यही उत्साही लोग आते हैं.
अब धीरे-धीरे बाहर के रंगमंच-विशेषज्ञों पर निर्भरता कम हो चली है और'मचान'पूरी तरह स्थानीय भागीदारी वाला सामुदायिक रंगमंच बन रहा है.लेकिन इतना होने के बावजूद अब भी स्थानीय लोगों में व्यापक उदासीनता है,अब भी लोग पूरी तरह आयोजन का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं,अब भी लोगों की चिंता का विषय गंभीर कला-संस्कृति-कर्म नहीं है,अब भी लोग घर से बाहर निकलकर कोई सामुदायिक भागीदारी वाली पहल लेने के मामले में आलसी-संकोची और दब्बू हैं,मचान जैसे प्रयास अगर बंद भी हो जाये,तो ऐसे लोगों को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.पर 'अख्तर बंधुओं के इस चिंता को क्या कहा जाये जो वाजिब भी है और इस समाज में हमेशा से उपस्थित भी.पर ख़ुशी की बात यह हैं कि 'मचान फेस्टिवल'इस साल भी जबरदस्त रहा,मचान में लोगों का खूब जुटान हुआ.पटना की रंग-संस्कृति निःसंदेह 'मचान'के आने से धनी हुई है जिसका भविष्य उज्जवल है और जो आगे चल कर संभव है कि पूरे देश में रंगमंच को सामजिक सरोकारों के कामों से जोड़कर एक नयी इबारत लिखे.फिलहाल पटना में यह इबारत दिनों-दिन लिखी जा रही है.'मचान' के साथियों को हमारा सलाम .....


मचान का पता-डॉ.जावेद अख्तर खान
सावित्री सदन,मकान नंबर-१२०,रोड नंबर-२१,
श्रीकृष्ण नगर,पटना-१
फोन/मोबाईल-०६१२-२५२२०८१/२५३५८०४,०९८३५४८६७२१/०९४३१४४२२३९
(मचान,नटमंडप,पटना का आयोजन है)

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