धर्म बदलो फांसी चढो.......
आज के अखबार की एक ख़बर पर आज मेरी नज़र ठहर गई। ख़बर का मज़मून कुछ यूँ था-'इरान की संसद ने इस आशय का प्रस्ताव सर्वसम्मति और भारी बहुमत से पास कर दिया कि इस देश में धर्म-परिवर्तन करने वालों को मौत की सज़ा दे दी जायेगी'-इरान जैसे और ऐसे ही अन्य कट्टरपंथी देशों में ऐसे निर्णय कोई बड़ा आश्चर्य पैदा नहीं करते कारण हम सबको पता है। पर यही बात किसी धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले राष्ट्र में हो तो बात वाकई चिंताजनक हो जाती है। इंडिया जैसे सेकुलर कहे जाने वाले राष्ट्र में अब खुले-आम औरतें,बच्चे मारे जा रहे हैं,ननों के साथ बलात्कार जैसे घृणित काम किए जा रहे हैं और प्रार्थना-घरों को जलाया जा रहा है सरकार चुपचाप तमाशा देखती रहती हैं। अब अपने देश का यह चेहरा भी सामने आ रहा है कि किसी भी स्टेट में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं रह सकते या नहीं हैं। चाहे वह उड़िसा जी जगह के ईसाई हो या फ़िर कहीं हिंदू बहुल प्रान्त के मुस्लिम या फ़िर कश्मीरी पंडित। एक और कमाल का सीन आज के अखबारों में है वो यह कि देश भर के ऐसे ही घटनाक्रमों को हुए एक तमाशे का आयोजन'एकता परिषद्'के नाम से नई दिल्ली में हुआ जिसमे उड़िसा के मुख्यमंत्री और देश के होम मिनिस्टर सब्जी-भाजी बेचने वालों की तरह एक-दूसरे से लड़ पड़े कि तू जिम्मेदार तो तू जिम्मेदार,अब पता नहीं कौन जिम्मेदार है। देश में प्रजातंत्र है और ये दोनों महानुभाव हमारी जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं।
इस पूरी हिंसा और तांडव के पीछे जिनका हाथ है उनकी पूरी ख़बर होने के बावजूद उन 'बजरंगियों' और 'विहिपियों' का कोई सरकार क्यों कुछ नहीं कर पा रही या फ़िर इसके भीतर भी कोई ऐसा खेल है जिसे आम आदमी समझ नहीं पा रहा है।
अपने यहाँ कि साझी संस्कृति जिसका दंभ भरते हम नहीं अघाते वह भी नंगे रूप में सामने आ गया है। अब संस्कृति तो है मगर साझी नही।ये हमारे धर्म रक्षक (तथाकथित/स्वयम्भू)धर्म परिवर्तन कराने वालों के घर बरबाद करने की कूबत रखते हैं पर उन कारणों में झाँकने के जेहमत नहीं उठाना चाहते जो इसके मूल में है। खाली पेट विचार नहीं पनपता .जिस परिवार के बच्चे अपने मुखिया के सामने भूखों मरते हैं उनके लिए पहला प्रश्न 'रोटी' होता है ना कि धर्म। ऐसी स्थिति में अपने सो कॉल्ड सबसे रिच ,पुराने ,समृद्ध धर्म(?)को अपनी छाती से सटा कर जिन्दा रहना बहुत मुश्किल है। इतिहास गवाह है कि हमेशा ही निचले तबको के लोगों की ही बलि हमेशा चढी है,आज भी चढ़ रही है। धर्मान्तरण कराने वाले ईरानी संसद की जद में नहीं आते बल्कि एक उदार सेकुलर देश(?)इंडिया में हैं फ़िर भी फांसी (जलाये,मारे जा रहे हैं) चढाये जा रहे हैं....ये खेल भी काफ़ी रोमांचक और खतरनाक है..अपने धर्म के ठेकेदारों ने सुधार करने की महती जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है (शुद्धि का).आइये इनका स्वागत करते हैं या फांसी चढ़ने,जलाए जाने को तैयार रहिये क्योंकि यही सरकार है और भगवन और खुदा भी ,तो अब 'जो भी धर्म बदलेगा/बदलवायेगा...फांसी चढेगा और ऐसा ईरान में नहीं यहीं सेकुलर देश भारत ,साझी-संस्कृति वाले भारत /इंडिया में हो रहा है ..
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प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से.
अव्वल तो इस लेख में एकतरफा बात की नही गई है दूसरे ये कि आपने मुझे ये भी सलाह दी है सबसे प्रेम करो नफरत नही-अब आप ही बताइए ऐसी परिस्थितियों को पैदा करने वाले चाहे वह किसी भी संगठन या समुदाय के हैं ,प्रेम की भाषा समझते हैं?-आप वरिष्ठ हैं आपको क्या सुझाव दूँ बस यही कि कृपया लेख को दुबारा ठीक से पढ़ ले ये ना तो एकांगी है ना ही किसी विशेष वर्ग को खुश करने के लिए लिखा गया है,यह हमारे समय की कड़वी सच्चाई है स्वीकार कीजिये.....
आपका
मुसाफिर