मोनू दा और गाँधी जयंती ....

मोनू दा नए पियाक तो नहीं हैं ,हाँ मगर पिछले दो सालों में ये हिसाब-किताब कुछ कम जरुर हो गया था. आजकल जबकि उनके आसपास के सभी लोगों का समय ठीकठाक चल रहा है तो हर दूसरे दिन कोई-न-कोई कुछ-न-कुछ लेकर आ जाता है जिसे देख उनसे मना नहीं किया जाता.पिछले दिनों कुल्लू जॉब छोड़ कर आया और इस खुशी में(?)उसने मोनू दा को पहले 'रेड वाइन' फ़िर 'स्कोच'पिला दी.बस क्या था रोज़ 'ओल्ड मोंक' रम पीने वाले मोनू दा एकाएक ही इस ब्रह्म-सत्य को पा गए की ये क्या आज तक मैंने ,आख़िर मैंने पहले इसे क्यों नहीं चखा था?बस जबसे मोनू दा के हिय में यह मुई अंगूर की बेटी 'रेड वाइन'और 'स्कोच' चढी है,मेरी जान सांसत में आ गई है.उनका कोई भी असाईनमेंट इसके बिना पूरा नहीं होता.अब लगता है कि एम्.एस.सी.(फिजिक्स)की तरह ही कहीं उनका 'लाइब्रेरी साइंस'भी आधे में ना छूट जाए.
आज सुबह अखबार देखते ही मैंने कहा कि 'मोनू दा जोधपुर में सैकडों लोग मारे गए'तो उन्होंने कहा -'हाँ यार ,सब समय का फेर है देवी नाराज़ चल रही हैं'-मैंने सोचा मोनू दा देश-दुनिया की भी थोडी बहुत ख़बर रखते हैं और एक मैं हूँ कि इनकी अच्छाइयों की ओर ध्यान ही नहीं देता खाली उनके पियाकपने को लेकर झाड़ पिलाता रहता हूँ.फ़िर मैंने कहा कि मोनू दा कल गाँधी जयंती हैं ,मेरे साथ गाँधी-भवन चलिए.उन्होंने पता नहीं पूरी बात सुनी या नहीं तुंरत चौंक कर बोले-'अरे तब तो कल ठेका बंद रहेगा ,कल ड्राई डे रहेगा.'-मुझे गुस्सा आया मैंने खीझ कर कहा -'मोनू दा आपके लिए इस दिन का कोई मतलब नहीं है कि कल गाँधी जी का जन्मदिन है?'-मोनू दा मुस्कुराये और बोले-'गाँधी जी महान हस्ती थे इस बात से मैं कहाँ इन्कार कर रहा हूँ .मगर जो कुछ भी इस समय हमारे देश में चल रहा है उसमे इस जयंती को मनाने का कोई अर्थ नहीं रह गया है.'-मुझे लगा आज सुबह ही रात का खुमार चढ़ गया है.मोनू दा कहते रहे कि'यार मुन्ना तुझे क्या लगता है कि गाँधी को कोई याद इसलिए करना चाहता है कि वह उनके आदर्शों को मानता है या उनके पदचिन्हों पर चलना चाहता है. नही ये सब नौटंकी इसलिए हो रही है कि अपनी रोटी और इमेज दोनों सेंकी और बनाई जा सके हालांकि इसके मायने भी अब कुछ नहीं है क्योंकि जनता भी अपने(...)को ही वोट करती और चुनती है.अभी थोडी-थोडी गाँधी कल सबके भीतर घुस जायेंगे और सभी खादी पहनकर चमक लेंगे और शाम होते ही कहेंगे ओ डैम इट कल फ़िर काम पर जाना होगा .तो मुन्ने राजा हमारे लिए ये ड्राई डे का ही मायने लेकर आता है'-मैं उनके इस वाक्य पर मन-ही-मन कुढ़ गया.लारा सर कहते हैं कि 'मोनू जैसे लड़के बनते कम है मियाँ'-मैं कहता हूँ-' अजी छोडिये सब पीने-पिलाने के अपने बहाने हैं'.
सुबह की इस बहस के बाद मैंने सोचा कि मोनू दा ने जबसे धूमिल की कविताएं पढ़नी शुरू की हैं तभी से कुछ बेसिए सेंटिया गए हैं.फ़िर एक मन ये भी कहता है कि 'सही भी तो है जब देश में चारो ओर मार-काट मची है लोग जिंदा जलाए जा रहे हैं ,औरतों और बच्चों का भी फर्क मिट गया है ,बम ब्लास्ट हो रहे हैं एक पूरी कौम दरी-सहमी हुई है कि पता नहीं कब उसके साथ क्या हो जाए .ऐसे माहौल में जबकि गाँधी की जरुरत सबसे ज्यादा है गाँधी हममे से नदारद हैं.इस जयंती के मायने खाली मोनू दा के लिए ड्राई डे का ही है या इस जमात में और भी हैं जिनकी छुट्टी आ रही है कम-से-कम एक दिन की ही सही.

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