मिनाक्षी,मोबाइल और पुलिस-रिपोर्ट
यूनिवर्सिटी में दिन भर इधर-उधर की (इसमे पढ़ाई भी शामिल है)हांक के,बिना बात के दौड़-भाग के जब हालत पस्त हो जाती है तब सभी लोगों का ध्यान चाय के स्टालों की ओर हो आता है. ये तकरीबन रोज़ की रूटीन में शामिल है और अब ये एक हद तक व्यसन की स्टेज में पहुँच गया है.इसी आदत या लत आप जो भी मान लें ,के फेर में हम तीन जने,मैं,मिहिर और मिनाक्षी पास के ही निरुलाज पहुंचे.बहाना कॉफी पीने का था.कॉफी के साथ-साथ तमाम तरह की जरुरी-गैरजरूरी बतरस में हम तीनों ऐसे खोये कि,यह ध्यान ही ना रहा कि मिनाक्षी ने निरुलाज में अपना मोबाइल छोड़ दिया ,चूँकि हमे वहां से निकले बस ५-७ मिनट ही हुए थे ,हम तेज़ी से वहां गए अपनी जगह को देखा और मोबाइल को वहां ना पाकर काउंटर पर मैनेजर से बात की मगर सब बेकार मोबाइल नही मिलना था नही मिला.अब बारी परेशान होने की थी.दोस्तों ने सलाह दी कि भइये,सबसे पहले नंबर ब्लाक कराओ और फ़िर तुंरत पुलिस कम्प्लेन करो वरना किसी ग़लत हांथों में पड़ गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे.थाने गए हम एफ.आई.आर.दर्ज कराने वो तो लाख कोशिशों के बाद नही हुआ बस उनके कागजी कार्यवाही की रेंज बस इतनी थी कि अपना मोबाइल का मॉडल नंबर,कलर,कम्पनी,और ई.एम.ई.आई.नंबर तथा कहाँ खोया है लिख कर एक अप्लिकेशन दाल दो और उसके जेरोक्स पर हमारे थाने की मोहर ले लो और जाकर उसी नंबर का दूसरा कार्ड जारी करवा लो.निश्चिंत रहो.हमे थोड़ा-बहुत चूं-चपड़ करने की कोशिश की मगर डपट दिया गया.जाओ यहाँ से मोबाइल की रिपोर्ट नहीं लिखी जाती,अगर संभाल नहीं सकते तो मोबाइल लेकर पढने क्यों आते हो?-अब मिनाक्षी ने नया नंबर ले लिया है और गले में टांग के घूम रही है ताकि ये सेट गलती से भी कहीं ना छूटे.पुलिस वालों का भी तो कोई भरोसा नहीं है.
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Ashish KUmar 'Anshu'
20.10.2008