गीत ऐसे की बस जी भर आए......


कभी-कभी कुछ गीत हमारे अंतर्मन को इतने गहरे छु जाते हैं कि उन्हें सुनते ही मन करता है कि बस समय रुक जाए और आँखें बंद करके खिड़की से ढलते हुए सूरज को की तपिश ली जाए.या फ़िर यूँ कि कमरे के अकेलेपन से निकल कर थोड़ा रिज़ की ओर चलें और थोड़ा नोश्ताल्जिक हो जाए वैसे इन गानों को सुनते सुनते हम इस लोक के आदमी नहीं रहते महाकवि जायसी के शब्दों में "बैकुंठी हो जाते हैं".गुलज़ार इस मामले में थोडी अधिक ऊंचाई पर हैं उनकी फिल्मों के गाने इतने ख़ास होते हैं कि आप एक बार में उसकी गहरे को महसूस नहीं कर सकते, ये गाने बहुआयामी अर्थवत्ता लिए होते हैं,आप उन्ही की एक फ़िल्म "मौसम"के गाने-"दिल ढूंढता है फ़िर वही,फुरसत के रात-दिन /बैठे रहे तसव्वुरे..."को जितनी बार सुनते हैं उतनी बार अज्ञात भावो और यादों में खो जाते है.ये महज़ सिर्फ़ इस गाने कि बात नहीं है या फ़िर गुलज़ार की बात ही खाली नहीं है हम ऐसे ही कुछ गानों की बात कर रहे हैं.-फ़िल्म-'रुदाली' के 'दिल हूम हूम करे घबराए..'को याद कीजिये..नायिका के चेहरे और क्रियाव्यापार के साथ जैसे ही लताजी की आवाज़ थोडी ऊँची पिच पर आकर "तेरी ऊँची अटारी ई ई ई ...मैंने पंख लिए कटवाए "कहती है दिल बरबस ही भर आता है.ये दो गाने ऐसे हैं कि बस मन करता है जीभर के रोये बस रोते ही रहे,कारण पता नही कोई इतना बढ़िया कैसा लिख सकता है कोई कैसे गा सकता है?-"सत्या"(रामगोपाल वर्मा वाली)अपने नए किस्म के प्लाट के कारण काफ़ी चर्चित रही थी.इसका एक गाना "सपने में मिलती है"-it फेमस हुआ था कि आज भी सभी शादियों में तकरीबन बज ही जाता है पर इसी फिम का एक और गीत था जो फेमस तो नहीं हुआ पर शायद इस फ़िल्म के किरदारों और कहानी के बीच खो सा गया ,ये गीत था-"बादलों को काट काट के नाम अपना..."-ये अकेला गाना नायक सत्या के नायिका विद्या के प्रति प्यार के इंटेंसिटी को दर्शा देता है सत्या का किरदार सभी को काफी अपना लगा था पर इस गाने को सुनने के बाद आप सत्या के प्रेम की इंटेंसिटी अपने भीतर अपने प्यार के प्रति महसूस करेंगे ..रूह को छू लेने वाले लम्हों के नाम इन असंख्य गीतों को सलाम /इनके लिखने वालों को इनके म्यूजिक कम्पोज करने वालों को भी..ये गाने खाना खाते ,काम करते ,बीजी शिड्यूल में रह कर सुनने के नहीं है इनके लिए एक नितांत खाली सा समय ,रुका सा मौसम ,शान्ति के साथ अच्छे दिल के साथ वाला समय चाहिए ...ये एक अलग सुकून देते हैं इनके लिए समय जो केवल इनका समय हो इसकी डिमांड करते हैं.

Comments

bhuvnesh sharma said…
एक गाना मुझे भी याद आ रहा है....माचिस फिल्‍म का पानी पानी से और छोड़ आये हम वो गलियां
Udan Tashtari said…
आप सही कह रहे हैं ...

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