त्यौहार सबका दिक्कत केवल हमारी..


कल दीपावली कब त्यौहार धूमधाम से संपन्न हो गया। सभी ने खूब मज़े किए होंगे,पर हम हॉस्टल में रहने वाले स्टूडेंट्स के मज़े थोड़े दूसरे किस्म के थे। आप सभी ने सुना होगा.कि त्यौहार माने भांति-भांति के बढ़िया,लजीज व्यंजन और मौज-मस्ती पर अपना तो ये आलम रहा है इस त्यौहार का कि,जब सारी दुनिया धमाचौकडी में मशगूल होती है,नाना प्रकार के लाजवाब पकवान पेल रही होती है ,हम हॉस्टल वाले छात्र अपना पेट दाब के बिस्तर में लेट के घर पर मनाये जा रहे त्यौहार की कल्पना कर रहे होते हैं। दरअसल,त्यौहार चाहे कोई भी हो हॉस्टल के छात्रों के लिए आफत के समान ही होता है। कारण ये है कि इस दिन हमारा मेस बंद रहता है और त्यौहार होने के कारण अगल-बगल के जो एकाध खाने-पीने की गुमटियां हैं वो भी मुए इस दिन बंद कर अपने घर चल देते हैं । अब आप कहेंगे कि आपकी अथॉरिटी कुछ तो व्यवस्था करती होगी पर जनाब ये अथॉरिटी व्यवस्था करती तो हैं पर वह सिर्फ़ दोपहर के स्पेशल लंच तक ही सीमित हो जाता हैं और फ़िर घावों पर नमक छिड़कने सरीखा शब्द हम सबके कानों में सुनाई देता हैं "आप सबको (त्यौहार का नाम )की ढेर सारी बधाइयाँशुभकामनाएं,आप सब अपने-अपने लक्ष्य को अचीव करें और हाँ ...प्लीज़ मिलजुल कर शान्ति पूर्वक एन्जॉय कीजियेगा..थैंक्स । "-अब आप ही बताइए कि दोपहर को खीर-पूरी खिलाकर रात को भूखा सुलाने से त्यौहार शुभ कैसे होगा ?

इसी पेट दाबू स्थिति में घर से आने वाला फ़ोन बजता हैं और माताजी आदतन पूछ ही लेती हैं कि 'खाना खा लिए हो ना?'-और जवाब हूँ-हाँ से ना बनता देखकर कहना पड़ता हैं कि -'कल ब्रेकफास्ट बढ़िया से करूँगा'आज लंच बढ़िया और हैवी ले लिया था। '-कल दीपावली को जब सभी ओर पटाखे गरज रहे थे,दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र जो हॉस्टल में रहते हैं इधर-उधर भटक रहे थे कि कुछ खा लिया जाए पर कहाँ?सभी ओर तो बंदी का नज़ारा था,सभी त्यौहार मना रहे थे ।वैसे ही छात्र जीवन में भूख ज्यादा लगती हैं और हमारा सिस्टम भी हमसे थोडी संवेदनाएं नहीं रखता,जो कम-से-कम नाम के ही सही हमारे प्रोवोस्ट /वार्डेन/आरटीवगैरह कहे जाते हैं।जो हमारे हॉस्टल से सेट ही या यूँ कह लीजिये कि हॉस्टल प्रांगण में ही रहते हैं उनके यहाँ जश्न का माहौल था और बच्चे हॉस्टल जो अनुपात में १५-२० ही थे कभी कामनरूम में बैठ कर टीवी देख रहे थे तो कोई अपने कंप्यूटर पर गाने वगैरह सुन रहा था।
यह माजरा महज़ दीपावली तक सीमित नहीं हैं बल्कि ईद ,मुहर्रम ,क्रिसमस,लोहडी,होली,दीपाली सभी सरकारी छुट्टी प्राप्त त्योहारों में समान रूप से लागू हैं। बस ऐसा जान लीजिये कि "त्यौहार तो सबके लिए खुशियाँ लेकर आते हैं पर हॉस्टल में रहने वाले छात्रों के लिए आशंका कि आज भूखे रहना होगा । साथ में दिक्कतें भी(भूखे पेट सोना कम दिक्कत का काम हैं क्या)वैसे यदि आप ये कहेंगे कि आप कुछ हल्का-फुल्का अपने-आप से पका लीजिये तो जनाब यह भी हॉस्टल में जुर्माने का सबब बन जायेगा क्योंकि हॉस्टल के कमरे में कुकिंग अल्लाऊ नहीं हैं। तो फ़िर यह सलाह दे डालिए कि कुछ पहले से खरीद लीजिये ड्राई-फ्रूट जैसा पर पेट भरने का मुद्दा तो फ़िर भी रहा न बाकी । पेट तो रोटियाँ ही मांगता हैं क्या करें।

Comments

mai aapki baat se sahmat hun
Udan Tashtari said…
चलिए, अब तो बीत गया त्यौहार!!
खैर, कुछ कमियाँ हैं तो बहुत अच्छाईयाँ भी है हॉस्टल लाइफ की..
याद आ गया मुझे भी कि‍ त्‍योहारों पर मेस बंद होने पर खाने के लि‍ए कहॉं-कहॉं भटकना पड़ता था। एक भूतपूर्व हॉस्‍टलर होने के नाते मुझे अहसास है कि‍ हॉस्‍टलर्स में इस वजह से त्‍‍योहारों को लेकर कि‍स तरह उदासीनता घर कर जाती थी।
kamal hai mujhe bhool gaye kya ? mere ghar ka rasta to yaad hoga tumhe . aa nahi sakte the . lazeez khane ki tamanna kuchchh had tak to poori kar hee sakta tha mai . apne aapko akela samjhne ki gustaakhi dobara na karna .
bhai, diwali ki raat to maine kareeb 15 rs logo se puchane me kharch kar diyae ki tum delhi me ho ya fir tumhare taraf kuch mil raha hai khane ko, ant me chane ko murmure ka sanskaar dekar pate ko dhokha diya
भाई ठीक कहा आपने ये मेस वाले सभी त्योहार पर ऐसा ही करते है सो आप क्यों न घुमते-घामते कमलानगर या मल्कागंज (दरवेश)की तरफ रूख करते हो/
मै भी आपकी तरह ही हॉस्टल का भुक्त्भोगी रहा हूं.

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