जुए का एक दिन तो लीगालाईज है ही....
कल पूरे देश भर में दीपावली धूम-धडाके से मनाई जायेगी। चारों तरफ़ धुएँ और धमाकों का कानफोडू माहौल होगा पर इन सबके बीच जो सबसे रोचक काम हो रहा होगा उधर घर के बच्चों तक का ध्यान शायद ही जाए। ये है दीपावली पर खेला जाने वाला "जुआ" जिसे सुख-समृद्धि दायक कह कर हमने अपने हिसाब से कानूनी और जायज़ कर लिया है। इसके खेले जाने के पीछे (जैसा सुनने में आता है)कहा जाता है कि इस दिन की जीत वर्ष भर धन-धान्य प्रदायक होती है(?)।यह खेल अपने खेले जाने के पीछे इतने वाजिब तर्क गढ़ चुका है कि आप लाख प्रवचन या नैतिक मूल्यों की दुहाई दें घर के बड़े-बुजुर्गों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।ऐसा नहीं है कि यह खेल महज़ किसी ख़ास वर्ग,शहर या गाँव में खेला जाता है बल्कि 'जुए' महाराज की महिमा चंहु-ओर बड़े भव्य स्तरपर फैली हुई है। पिछले सन्डे को 'नई दुनिया'अखबार का रविवारीय 'मैगजीन'यही कवर स्टोरी लिए हुए था। जिसमे बड़े ही बारीकी से देश के विभिन्न शहरों में से ढूंढ-ढूंढ कर इसकी महिमा बताई गई थी। साथ ही दिल्ली में हुए 'फैशन वीक' के अवकाश सत्रों में रैंप पर चलने वाली मोडल्स की तस्वीरेंभी प्रकाशित की गई थी,जिसमे यह साफ़ दिख रहा था कि वह अपना टाइम-पास ताश खेल के कर रही थी। ताश को जुए की श्रेणी से बाहर बताने वाले भी कई महानुभाव हमें मिल जायेंगे जो बताएँगे कि अमुक-अमुक कारणों से ताश खेलना जुआ नहीं है और घर में अपने परिवार के बीच वो भी खेलते हैं साथ ही ,ये भी हो सकता है कि दो-चार संभ्रांत (?)परिवार भी गिनवा दे जो ताश खेलते हैं। नई दुनिया के उसी मैगजीन में ऐसे ही कुछ परिवारों के बारे में बताया गया है जो आपस में ही जुए खेल कर काम चला लेते हैं कि चलो घर का पैसा घर में रह गया। अब पता नहीं कि कितना जरुरी है यह पत्तों और नंबरों का खेल जिसे इसी त्यौहार के लिए शुभ(?)और मुफीद समझा जाता है और पता नहीं क्यों ?इधर एक और ख़बर थी कि ,सिर्फ़ दीपावली के रोज़ दिल्ली महानगर में तक़रीबन १,००० करोड़ रुपये पिछले वर्ष दांव पर लग गए थे। इस साल यह आंकडा और ऊपर जायेगा ,जुआरियों को और खेले-कमाने का मौका मिलेगा तथा सभी अपने-अपने तर्क फ़िर गढ़ेंगे,कुछ पुराने को ही फ़िर दुहरा देंगे। मतलब आज खेल लो जुआ आज सरकार भी कुछ नहीं करेगी त्यौहार के नाम सब छूट है और इतना ही नहीं कुबेर या लक्ष्मी (जो भी रुपये के देवता हैं ,और जो पैसा बांटते हैं)आज ही मेहरबान होते हैं और उनकी मेहरबानी "वाया जुआ बाईपास"होकर ही गुजरती है और यदि आज जिसने इस बाईपास का रास्ता नहीं पकड़ा तो साल भर कड़की और तंगहाली से दो-चार होते रहना पड़ेगा।
मैं सोच रहा हूँ कि क्यों ना एक सलाह विश्व बाज़ार के रहनुमाओं को दे दी जाए कि भइयेआज ही खेल ले इसको सारी मुद्रास्फीति तपाक से ऊपर चढेगी और प्रधानमन्त्री जी तथा वित्तमंत्री जी तो शायद बैठे भी चौपड़ पर जिनकी गोटियाँ शायद रिजर्व बैंक के गवर्नर सजायेंगे। जब इतने बड़े लेवल पर यह गेम (गेम कहना तो मजबूरी हो ही जायेगी जब हमारे नीति-नियंता ही बिसात बिछायेंगे )खेला जाने लगेगा अपने-आप ही कानूनी शक्ल अख्तियार कर लेगा । अब लेगा ,हो जायेगा की बात ना करके इसी बात की फरमाईश कर दी जानी चाहिए कि "जुआ कम-से-कम एक दिन के लिए तो लीगलआईज करो। "-शायद वैश्विक मंदी का असर कुछ कम हो क्योंकि यह तो हम भी मानते हैं ना कि इस दिन की जीत माने साल-भर मामला सही रहेगा,फ़िर इस बार की बाज़ी जीत कर साल भर मामला सही कर लेते हैं और फ़िर दिक्कत आए तो फ़िर है ही अगली दीपावली......
इस बीच कमोबेश सभी पार्टियों ने दिल्ली विधान-सभा चुनाव हेतु अपने-अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं,तो उनके लिए दीपावली का मंत्र भी इस बार बदल जायेगा,जैसा कि आमतौर पर लक्षी और गणेश का जो मंत्र अब तक पढ़ा जाता रहा है वह नही पढ़ा जाएगा. लक्ष्मी का मंत्र यूँ होता आया है..'महालक्ष्मी नमस्तुभ्यम,नमस्तुभ्यम सुरेश्वरी,हरिप्रिया नमस्तुभ्यम,नमस्तुभ्यम दयानिधि"की जगह लक्ष्मी आह्वान का "काका हाथरसी" मंत्र पढ़ा जायेगा-
हे प्रभु आनंददाता नोट हमको दीजिये
लक्ष्मी का और अपना वोट हमको दीजिये
बुद्धि ऐसी शुद्ध कर दो -एक का ढाई करें
जोड़ कर मर जाएँ लाखो खर्च न एक पायी करें ...
(यहाँ थोड़ा सुधार कर पढ़े लाख की जगह करोड़ पढ़े,पंक्तियों में बदलाव काका के प्रति गुस्ताखी होती)
दीपावली की ढेरों शुभकामनाओं के साथ
आपका "मुसाफिर"
Comments
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
प्रकाशपर्व आप के और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए।
जश्न का दिन होगा कल
ना जाने कितनो की दिवाली होगी
और कितनो का दिवाला निकलेगा ।........."
ये मेरी आज लिखी पोस्ट की पंक्तियाँ हैं तुम्हारी पोस्ट से मैच खा रही थी इसलिए कमेंट के रूप में लिख दीं ।
मुन्नु ........ताश वाला जुआ मुझे उतना खतरनाक नहीं जान पड़ता जितना शेयर वाला । असली लिगलाइज़ फेक्टर तो वहाँ काम करता है जहाँ गवर्नमेंट खुद इस जुए में हाथ बँटाती है जहाँ शेयर मार्केट ( सट्टा बाज़ार ) एक देश की अर्थव्यवस्था को नियंञित और परिचालित करता है। जिस जुए की तुम बात कर रहे हो वो तो फिर भी कभी-कभी मनोरंजन की गलियों मे तफरी मार आता है लेकिन ये जुआ तो आदमी को ही मार जाता है । सैकैंडो मे अरबों रुपये इधर से उधर हो जाते हैं । हमारे देश में ऐसे आदमियों की मौत बेकार नहीं जाती इनकी वजह से ज़िदा बचे ब्रोकरो के लिए सरकार अपने सभी राहत कोष खोल देती है। तरलता अनुपात और नकद निधि अनुपात के नाम पर एक लाख ४५ हज़ार करोड़ की सहायता योजनाए लागू की जाती हैं।
ये और बात है कि इसी देश में १० लाख से ज़्यादा किसानो के मरने पर भी ६०-७० हज़ार करोड़ रुपये की सहायता देकर सरकार यह सोचती है कि उसने किसानो के ज़ख्मों पर मरहम लगा दिया है ।
खैर इन सवसे हमें क्या लेना .......किसान मरते है तो मरे , मज़दूरों को पीटा जाता है तो पीटा जाए ।
हमें पटाखे जलाने है दिवाली मनानी है । दोस्तो के घर जाना है । और अगर ये सब करने में किसी की दिलचस्पी ना हो तो इंडिया-ऑस्ट्रेलिया का टैस्ट मैच तो है ही । समय आयेगा (जब मीडिया उछालेगा) तो हम इन मुद्दों पर दोबारा बात करेंगे । तब तक के लिए दिवाली मुबारक हो दोस्त ।
दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.